आधार सामग्री के रूप में बलुआ पत्थर के उपयोग से निर्मित राजरानी मंदिर भुवनेश्वर में पूजा-अर्चना के लिए एक प्राचीन स्थान है, जो इसकी 18 मीटर ऊँची मीनारों तक व्याप्त मूर्तियों के आकार और भव्यता के लिए प्रसिद्ध है। चारों ओर से भरपूर हरियाली से आच्छादित इस मंदिर में सुरम्य वातावरण व्याप्त है। दिलचस्प बात यह है कि कई बार दावा किया जाता रहा है कि यह पहले एक वैष्णव मंदिर हुआ करता था, लेकिन यहाँ कई मूर्तियों की उपस्थिति उस धारणा का खंडन करती है, क्योंकि मुख्य मंदिर परिसर में प्रधानतः शैव मूर्तियां स्थापित हैं। इस मंदिर की दीवारों पर इंसानों के साथ-साथ फूलों और जानवरों की भी नक्काशी की गई है और इन में से हर कृति अपने कलात्मक सौन्दर्य के लिए जानी जाती है। कई लोग दावा करते हैं कि राजरानी मंदिर की भव्यता खजुराहो के मंदिरों के समान है। इस मंदिर के चारों ओर आठ दिशाओं में अद्भुत नक्काशी से दिक्पाल या पालकों की छवियाँ गढ़ी गई हैं। यहाँ इंद्र, अग्नि, यम, निर्ऋति, वरुण, वायु, कुबेर और ईशान इत्यादि देवों की छवियाँ भी मौजूद हैं। राजरानी मंदिर अपनी दीवारों पर उकेरी गई नायिकाओं की अद्भुत छवियों के लिए भी जाना जाता है। इनमें अपने बच्चे की देखभाल करती माँ तथा एक दर्पण में अपने प्रतिबिंब को देखती, अपनी पायल उतारती, एक पक्षी के साथ खेलती, एक वाद्य बजाती, और पेड़ों की शाखाएँ पकड़ती स्त्री की छवियाँ शामिल हैं। इसके अलावा, भगवान शिव और उनकी अर्धांगिनी मुख्य मंदिर के अंदर तीन स्थानों पर संगीत-वाद्ययंत्र युक्त परिचारकों के सान्निध्य में नृत्यरत अवस्था में चित्रित किए गए हैं। हैरानी की बात है कि राजरानी मंदिर में किसी भी देवता की पूजा नहीं की जाती है।

हीरापुर (आध्यात्मिक)भुवनेश्वर के बाहरी इलाके में लगभग 15 किमी दूर स्थित हीरापुर एक छोटा शहर है जो योगिनी मंदिर नामक 64 योगिनियों के मंदिर के लिए जाना जाता है। यह मंदिर खुली छत वाला है, क्योंकि कहा जाता है की योगिनियाँ वायु, जल, अग्नि, पृथ्वी और आकाश रूपी पांच तत्वों की पूजा करती थीं। 9वीं शताब्दी में यह लघु मंदिर ओडिशा में अपनी तरह का दूसरा और भारत में मौजूद इस प्रकार के केवल चार मंदिरों में से एक है। ऐसा ही एक अन्य मंदिर ओडिशा के बोलंगर जिले में रानीपुर-झारील में स्थित है, जबकि अन्य दो मध्य प्रदेश में मौजूद हैं। इसके निर्माण का श्रेय राजा सुभकर देव द्वितीय की माता रानी हीरादेवी को दिया जाता है, जो भूमाकर वंश से थीं। कहा जाता है कि भारत में योगिनी पंथ, जिसमें तंत्र विद्या के साथ-साथ योग का भी सम्मिलन था 8वीं शताब्दी ईस्वी और 13वीं शताब्दी ईस्वी के बीच पनपा था। इसमें 64 तीलियों वाले एक चक्र की पूजा की जाती थी और देवी काली इसकी पीठासीन देवी हुआ करतीं थीं। माना जाता है कि सप्तमातृका की वंशज वह योगिनियाँ उत्साहपूर्ण व जीवन से भरपूर हुआ करती थीं। उन्हें देवी शक्ति का पुनर्जन्म माना जाता था और वे स्त्री शक्ति की उच्चतम प्रतिनिधि थीं। एक तालाब और पत्तेदार पेड़ों से घिरा हुआ हीरापुर का यह मंदिर एक गोलाकार संरचना है और कई कारणों से अद्वितीय है। पहला, क्योंकि यह एकमात्र मंदिर है जिसकी बाहरी दीवारों पर मूर्तियाँ स्थापित हैं। बलुआ पत्थर से बनी हुई 9 मूर्तियाँ महिला आकृतियों को निरूपित करती हैं। प्रत्येक आकृति को एक हाथ में हथियार पकड़े हुए एक मानव सिर के ऊपर खड़ा देखा जा सकता है। उनकी आकृति व रूप से इतिहासकारों ने अनुमान लगाया कि वे संरक्षक देवियों का प्रतिनिधित्व करती हैं। इस धर्मस्थल का मुख्य दरवाजा बहुत छोटा है। अंदर गोलाकार दीवार में 60 खाने या आले निर्मित हैं। एक को छोड़ कर प्रत्येक आले में योगिनी देवी की लघु मूर्ति स्थापित है। यह मंदिर ब्लैक क्लोराइड में गढ़ा गया है।

अन्य आकर्षण