भगवान विष्णु को समर्पित अनंत-वासुदेव मंदिर 13 वीं शताब्दी के दौरान रानी चंद्रिका द्वारा बनाया गया था । यह मंदिर वैष्णव प्रतीकों को दर्शाता है, और भुवनेश्वर के लिंगराज मंदिर जैसा दिखता है। इसके अंदर भगवान कृष्ण, भगवान बलराम और देवी सुभद्रा की मूर्तियाँ हैं। बलराम की मूर्ति सात फनों वाले सर्प के नीचे स्थापित है, सुभद्रा के हाथों में गहनों का एक पात्र है, और भगवान कृष्ण ने गदा, चक्र, कमल और शंख धारण किया हुआ है। इसके अलावा, मंदिर में शिखर नामक लघु मंदिर स्थापित हैं और अधिकांश स्त्री-रूपी मूर्तियां अत्यधिक सुसज्जित हैं। अनंत वासुदेव भगवान विष्णु का ही एक नाम है, और किंवदंती है कि इस मंदिर के निर्माण से पहले भी यहाँ भगवान विष्णु की एक मूर्ति की पूजा की जाती थी। स्थानीय लोगों का मानना है कि यह किंवदंती यह साबित करती है कि इस स्थान पर एक पुराना मंदिर मौजूद था। ऐसा कहा जाता है कि मराठों ने, जिन्होंने इस क्षेत्र में महानदी नामक नदी तक अपना साम्राज्य बढ़ा लिया था, 17 वीं शताब्दी के अंत में अनंत वासुदेव मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था।

वर्तमान काल में इस मंदिर में दैनिक आरती आयोजित की जाती है, जो आगंतुकों के बीच काफी लोकप्रिय है। जन्माष्टमी के त्योहार के दौरान इस मंदिर में एक विशाल उत्सव का आयोजन होता है जिसमें प्रार्थना और भक्ति गीत गाए जाते हैं। इस मंदिर का प्रारूप ओडिशा राज्य के अन्य मंदिरों से काफी अलग है। इसकी एक ख़ासियत इसे प्राचीन मंदिर में अपनी तरह का इकलौता मंदिर बनाती है - मुख्य मंदिर एक उच्च मंच पर स्थापित है।

अन्य आकर्षण