मामंडूर

कांचीपुरम से लगभग 15 किमी दूर पलार नदी के किनारे ममंदूर का चट्टानों को काटकर बनाया गया गुफा मंदिर है। पल्लव शासन के प्रारंभिक वर्षों में निर्मित इस गुफा मंदिर को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा राष्ट्रीय महत्व का स्मारक घोषित किया गया है।

मंदिर का मुख्य आकर्षण तमिल ब्राह्मी लिपि का एक शिलालेख है। ब्राह्मी सबसे प्रारंभिक भारतीय वर्णमाला लिपि है और इसमें कई क्षेत्रीय विविधताएं मिलती हैंए जिनमें से एक तमिल ब्राह्मी है। कहा जाता है कि यह शिलालेख 300 ईसा पूर्व और 300 ईण् के बीच किसी समय का है।

मामंडूर

कांचीपुरम मठ

कांचीपुरम मठए कांचीपुरम में बौद्ध धर्म का सबसे बड़ा केंद्र है। इस क्षेत्र के एक प्राचीन साहित्यिक आलेख से पता चलता है कि इस मठ की स्थापना दूसरी शताब्दी ईण् में एक स्थानीय राजा ने की थी। अन्य साक्ष्यए इस स्थल के 14वीं शताब्दी तक सक्रिय होने का संकेत देते हैं। वर्तमान में यह एक शांतिपूर्ण स्थल हैए जो शांति के कुछ क्षणों का आनंद लेने वाले आगंतुकों को शहर के इतिहास की झलक दिखाता है।

प्राचीन शहर कांचीपुरम में कई प्रसिद्ध बौद्ध भिक्षु रहते थेए जो एक महत्वपूर्ण बौद्ध केंद्र था। इनमें से कुछ केंद्र अभी भी शहर में मौजूद हैं। सुमतिए बुद्धघोषए जोतिपालए आचार्य धर्मपालए अनिरुद्धए दीपांकर तेरोए आनंद तेरोए सद्धम्मा जोतिपाल कुछ ऐसे प्रख्यात बौद्ध भिक्षु थेए जिन्होंने कांचीपुरम को अपना घर बनाया।

कांचीपुरम मठ

उठिरमेरूर

उथिरामुर के अनूठे शहर का मुख्य आकर्षण भगवान विष्णु को समर्पित प्राचीन वैकुंठ पेरुमल मंदिर है। दक्षिण भारत की द्रविड़ शैली की वास्तुकला का एक सुंदर उदाहरणए यह मंदिर लगभग आधा एकड़ क्षेत्र में फैला है।

यहां पर विष्णु की दिव्य संगिनी को आनंदवल्ली के रूप में पूजा जाता है। इसके गर्भगृह में भगवान विष्णु की मूर्ति हैए जिसके दोनों ओर श्रीदेवी और भूदेवी हैं। सभाकक्ष में कोई स्तंभ नहीं हैए उसकी छत केवल दीवारों पर टिकी है। मंदिर का सबसे अनूठा और प्रभावशाली पहलू यह है कि इसकी दीवारों परए 10वीं शताब्दी के शिलालेख पाए गए थेए जो कुशल राजनीतिक और प्रशासनिक कार्यप्रणाली के साथ ही चोलों की स्वशासन प्रणाली को दर्शाते हैं। अब इस मंदिर को एक धरोहर स्मारक घोषित कर दिया गया है। यह मंदिर अब भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित है।

उठिरमेरूर

थिरुवलंगड़ू

यहां का मुख्य मंदिर वाडारण्येश्वर के नाम से जाना जाता हैए जो भगवान शिव को समर्पित हैए और तमिलनाडु राज्य के 275 शैव.स्थलों में से एक है।

यह भी पांच भव्य वृहत नृत्यशालाओं ;पंचसभाईद्ध में से एक है। इस खास नृत्यशाला को श्रत्न सभाईश् नाम से जाना जाता है। किंवदंती के अनुसारए जब स्वामी एक सृष्ट्यात्मक नृत्य कर रहे थेए तो उनका नूपुर टूटकर पृथ्वी पर गिर गया और उसके पांच टुकड़े हो गएए उनमें से एक थिरुवलंगडु था। वास्तव मेंए नृत्य के स्वामी नटराज की एक कांस्य प्रतिमा भी यहां मिली थीए जो अब चेन्नई सरकार संग्रहालय के कला अनुभाग में संरक्षित है।

थिरुवलंगड़ू

तिरुतनी

भगवान सुब्रह्मण्य ;मुरुगद्ध को समर्पितए थिरुथानी का मंदिर एक छोटी.सी पहाड़ी पर स्थित है और कहा जाता है कि यह भगवान मुरुग के छह निवास.स्थानों या ष्पैड़ई वीदुष् में से एक है। किंवदंती है कि भगवान मुरुगा ने यहां अपनी दो संगिनियों में से एकए वल्ली से शादी की थी। वे सुरापदमन नामक राक्षस को हराने के बाद थिरुथानी में रह गये।

मंदिर तक पहुंचने के लिये 365 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। यहां चार बाड़े हैंए साथ में आप्त सहाय विनायकर को समर्पित मंदिर हैए जिन्होंने कथित रूप से शादी में वल्ली का हाथ जीतने में भगवान मुरुग की सहायता की थी। स्वयं भगवान मुरुग की उत्तम आभूषणों से सज्जित छवि को रुद्राक्ष टावर में रखा गया है।

तिरुतनी

थिरुपुरुर

पल्लव काल में बनाए थिरूपुरूर का यह प्राचीन मंदिर भगवान मुरुग के 33 सबसे महत्वपूर्ण मंदिरों में से एक है। थिरूपुरूर नाम धार्मिक युद्ध स्थल का अनुवाद है। प्रणव पर्वत के साथ लगा यह मंदिर पूर्वामुखी है।

मंदिर की अवस्थिति भगवान मुरुग की विजय का प्रतिनिधित्व करता है। पुराणों के अनुसारए थिरूपुरूर को अभयमार्ग ;आसमानद्ध के रूप में जाना जाता हैए जहां भगवान ने राक्षसों के खिलाफ लड़ाई में विजय प्राप्त की थी।

थिरुपुरुर

श्रीपेरुमबुदुर

रामानुज स्वामी मंदिरए जिसे आदिकेशव मंदिर भी कहा जाता हैए के लिए प्रसिद्ध श्रीपेरुम्बुदूर कांचीपुरम के बाहरी इलाके में स्थित है। इस दर्शनीय मंदिर में संत रामानुज की तीन छवियां हैंए जिन्हें संत के जीवनकाल के दौरान ही श्रीरंगम मेंए उनके जन्मस्थान पड़ोसी राज्य कर्नाटक के श्रीपेरंबुदूर और मेलकोटे में बनाई गई थीं।

श्री रामानुज मंदिर के सामने एक शानदार स्वर्ण मंडप हैए जिसे मैसूर के पूर्व महाराजा ने बनवाया था। इस मण्डप में चार वेदों का प्रतिनिधित्व करने वाले चार कलश बनाए गए हैं। कलशों के नीचे मंडप पर अनेकों मूर्तियां हैंए यही वजह है कि मंडप मंदिर की तरह ही दिखता है।

श्रीपेरुमबुदुर

श्री वैकुंठ पेरुमल मंदिर

8वीं शताब्दी में पल्लव राजा नंदीवर्मन ;731.796द्ध द्वारा निर्मितए उथिरामेरुर के अनूठे गांव में स्थितए श्री वैकुंठ पेरुमल मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित हैए जो वैकुंठ पेरुमल के रूप में यहां पूजे जाते हैं। वे यहां अपनी पत्नी देवी लक्ष्मी के साथ स्थापित हैंए जो आनंदवल्ली के रूप में पूजनीय हैं। यद्यपि यह मंदिर मूल रूप से पल्लवों द्वारा बनवाया गया थाए किंतु कालांतर में चोलों द्वारा इसके कुछ भाग का नवीनीकरण किया गया।

इस मंदिर को भगवान विष्णु को समर्पित 108 दिव्य देसम मंदिरों में से एक माना जाता हैए और यहां तक कि 6वीं और 9वीं शताब्दी ईस्वी के बीच रहने वालेए अजहवार संतों के प्रारंभिक मध्ययुगीन तमिल कैनन का भी वर्णन किया गया है।

श्री वैकुंठ पेरुमल मंदिर

एकम्बारेश्वर मंदिर

वास्तुकला की दृष्टि से चमत्कारिक एकम्बरेश्वर मंदिर 40 एकड़ के विशाल क्षेत्र में फैला हुआ है। इसकी मुख्य विशेषता 172 फीट ऊंचा मुख्य प्रवेशद्वार या राजगोपुरम है। इस द्वार की संरचना इतनी भव्य है कि इसमें प्रवेश करते ही लगता है कि हम किसी अलग ही युग में कदम रख रहे हैं। गर्भगृह के सामने एक स्तम्भों वाले हॉल के इस छोर से उस छोर तक 63 नयनारों की मूर्तियां हैं। मंदिर में आगे बढ़ने पर शिवगंगा और कम्पा नदी नामक दो पानी से भरे सरोवर आते हैं। मुख्य मंदिर में सोमास्कंद पट्टिका हैए जिस पर भगवान शिवए देवी पार्वती और स्कंद महाकाव्य के दर्शन होते हैं।

पल्लव शासकों द्वारा निर्मित एकम्बरेश्वर मंदिर में 1000 स्तंभों वाले हॉल और पांच पराक्रम या प्रांगण हैं। इस मंदिर में पीठासीन देवता के रूप में भगवान शिव हैंए जिन्हें यहां पृथ्वी के रूप में पूजा जाता है। इस मंदिर का नवीनीकरण कालांतर में चोल और विजयनगर शासकों द्वारा किया गया। कृष्णदेव राय के शासनकाल के दौरानए 1509 ईस्वी में गोपुरम ;प्रवेश द्वार बुर्जद्ध और इस मंदिर की बाहरी दीवारों का निर्माण किया गया। गर्भगृह के ठीक पीछे एक 3ए500 साल पुराना आम का पेड़ हैए जो अभी भी फल देता है। यह मंदिर हिंदू धर्म के शैव उपासकों का एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। यह मंदिर पंच भूत या पांच तत्वों वाले मंदिरों में से एक है। इस मंदिर में भगवान शिव को उनके सबसे प्रसिद्ध प्रतीक लिंगम द्वारा दर्शाया गया हैए और इसे विशेष रूप से पृथ्वी लिंगम के रूप में जाना जाता है। भगवान की दिव्य पत्नी देवी पार्वती को भी गौरी देवी अम्मा के अवतार में पूजा जाता है।

एकम्बारेश्वर मंदिर

कैलासनाथर मंदिर

कैलाश पर्वत के स्वामी भगवान शिव को समर्पित कैलासनाथर मंदिर शहर के सबसे महत्वपूर्ण मंदिरों में से एक है। एक बड़े मंदिर परिसर में 60 छोटे मंदिर हैंए लेकिन सबसे अनोखी आकृति में भगवान शिव की मुख्य मूर्ति हैए जिसमें 16 धारियां हैं। मंदिर की वास्तुकला पारंपरिक पल्लव शैली में स्तंभ वाले हॉलए एक ड्योढ़ी और एक पिरामिड टॉवर के रूप में है। मंदिर की दीवारों पर लगभग 240 पैनल उत्कीर्ण हैंए जो नगारा और पल्लव ग्रंथ लिपियों को प्रदर्शित करते हैं। संयोगवशए कैलासनाथर मंदिर में हस्तलिपि के कुछ शुरुआती नमूने भी मिलते हैं। यहां ज्येष्ठ लक्ष्मी ;मूदेवीद्ध और वाली की प्रारंभिक मूर्तियां रखी गई हैं। वास्तुकला में द्रविड़ शैली की छाप लिये हुएए यह स्थान ध्यान और गहन चिन्तन के लिए आदर्श है।

कैलासनाथर मंदिर का निर्माण पल्लव राजा राजसिम्हा ;695 ईण्.722 ईण्द्ध के शासन काल में शुरू हुआ और 8वीं शताब्दी में पल्लव वंश के महेंद्रवर्मन तृतीय द्वारा पूरा किया गया।

कैलासनाथर मंदिर

श्री वरदराजा पेरुमल मंदिर

विजयनगर के शासकों द्वारा निर्मितए वरदराज पेरुमल मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। यह दिव्य देसम मंदिरों में से एक है। कहा जाता है कि 12 कवि संतों या अलवारों ने इन 108 मंदिरों के दर्शन किये थे।

परिसर में कई अन्य मंदिर हैं। मुख्य मंदिर में एक 100.स्तंभ वाला हॉल हैए जिसमें कुछ सुंदर नक्काशीदार मूर्तियां हैं। 40 फीट लंबी और अथि लकड़ी से बनी भगवान अथि वरदराज पेरुमल की मूर्ति लेटी हुई मुद्रा में दिखाई देती है। यह प्रतिमा 40 साल में केवल एक बार दर्शनार्थ बाहर लाई जाती है। इसका 96 फीट ऊंचा राजा गोपुरम ;मुख्य प्रवेश द्वारद्ध तो विशेष रूप से दर्शनीय है।

श्री वरदराजा पेरुमल मंदिर

श्री कामाक्षी मंदिर

कामाक्षी नाम देवी सरस्वती ;विद्या की देवीद्ध और देवी लक्ष्मी ;धन की देवीद्ध से संबंधित है। इसमें श्काश् का अर्थ सरस्वतीए श्माश् का अर्थ लक्ष्मी और श्अक्षीश् का अर्थ है आंख। यह भव्य मंदिर देवी कामाक्षी ;देवी पार्वती का परम रूपद्ध को समर्पित है।

इस मंदिर की देवी इस मायने में विशिष्ट हैं कि उनकी मूर्ति पारंपरिक खड़ी स्थिति के बजाय पद्मासन की स्थिति में है। वह अपने दो निचली भुजाओं में एक गन्ने का धनुष और पांच फूल धारण की हुई हैंए और दो ऊपरी भुजाओं में एक पाश ;फन्दाद्ध और एक अंकुश है। देवी के पार्श्व में पवित्र त्रिमूर्ति ;भगवान शिवए भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्माद्ध स्थित हैं।

श्री कामाक्षी मंदिर