वास्तुकला की दृष्टि से चमत्कारिक एकम्बरेश्वर मंदिर 40 एकड़ के विशाल क्षेत्र में फैला हुआ है। इसकी मुख्य विशेषता 172 फीट ऊंचा मुख्य प्रवेशद्वार या राजगोपुरम है। इस द्वार की संरचना इतनी भव्य है कि इसमें प्रवेश करते ही लगता है कि हम किसी अलग ही युग में कदम रख रहे हैं। गर्भगृह के सामने एक स्तम्भों वाले हॉल के इस छोर से उस छोर तक 63 नयनारों की मूर्तियां हैं। मंदिर में आगे बढ़ने पर शिवगंगा और कम्पा नदी नामक दो पानी से भरे सरोवर आते हैं। मुख्य मंदिर में सोमास्कंद पट्टिका हैए जिस पर भगवान शिवए देवी पार्वती और स्कंद महाकाव्य के दर्शन होते हैं।

पल्लव शासकों द्वारा निर्मित एकम्बरेश्वर मंदिर में 1000 स्तंभों वाले हॉल और पांच पराक्रम या प्रांगण हैं। इस मंदिर में पीठासीन देवता के रूप में भगवान शिव हैंए जिन्हें यहां पृथ्वी के रूप में पूजा जाता है। इस मंदिर का नवीनीकरण कालांतर में चोल और विजयनगर शासकों द्वारा किया गया। कृष्णदेव राय के शासनकाल के दौरानए 1509 ईस्वी में गोपुरम ;प्रवेश द्वार बुर्जद्ध और इस मंदिर की बाहरी दीवारों का निर्माण किया गया। गर्भगृह के ठीक पीछे एक 3ए500 साल पुराना आम का पेड़ हैए जो अभी भी फल देता है। यह मंदिर हिंदू धर्म के शैव उपासकों का एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। यह मंदिर पंच भूत या पांच तत्वों वाले मंदिरों में से एक है। इस मंदिर में भगवान शिव को उनके सबसे प्रसिद्ध प्रतीक लिंगम द्वारा दर्शाया गया हैए और इसे विशेष रूप से पृथ्वी लिंगम के रूप में जाना जाता है। भगवान की दिव्य पत्नी देवी पार्वती को भी गौरी देवी अम्मा के अवतार में पूजा जाता है।

यहां आने का सबसे अच्छा समय फाल्गुनी का त्यौहार हैए जो 13 दिनों तक चलता है। इस दौरान एकम्बरेस्वर मंदिर को भगवान शिव और देवी पार्वती के विवाह के लिये अलंकृत किया जाता है।

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