वाराणसी से लगभग 51 किलोमीटर दूर स्थित है मिर्ज़ापुर जो श्रद्धालुओं एवं प्रकृति-प्रेमियों को समान रूप से आकर्षित करता है। मिर्ज़ापुर ज़िले के इस छोटे से शहर का मुख्य आकर्षण विंध्याचल है। गंगा नदी के किनारे स्थित इस शहर में विंध्यवासिनी देवी की प्रसिद्ध शक्तिपीठ (वह स्थान जहां पर देवी शक्ति के अंग गिरे थे) है। प्राचीन ग्रंथों में भी इसका उल्लेख मिलता है, इस संदर्भ में कहा गया है कि विंध्यवासिनी देवी अपने अनुयायी को तुरंत आशीष प्रदान करती हैं। इस शहर में देवी को समर्पित अनेक मंदिर विद्यमान हैं। चूंकि यह गंगा नदी के किनारे स्थित है, यहां का सुंदर परिदृश्य एवं घनी हरियाली पर्यटक के अंतरमन को तुरंत आकर्षित करते हैं। यहां ऐसे अनके घाट एवं भवन हैं, जो अंग्रेज़ों के ज़माने में बनाए गए थे, वे भी देखने लायक जगह हैं। इस शहर का व्यवस्थित रूप से गठन ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा 1735 में किया गया था। यद्यपि यहां पर सभ्यता के निशान 5000 ईसा पूर्व में ही पाए गए थे। कलाकृतियों एवं चित्रित चट्टानों जैसे साक्ष्यों से भी ज्ञात होता है बेलन नदी की घाटी क्षेत्र में पुरापाषाण युग था। विंध्य श्रृंखला में कुछ बलुआ चट्टानों पर पाई गईं चित्रकारी 17000 ईसा पूर्व की हैं।

मिर्ज़ापुर पीतल के बर्तनों एवं कालीन उद्योग के लिए भी प्रसिद्ध है। हाथ से कालीन बनाने का प्रक्रिया मुग़लों द्वारा 16वीं सदी में आरंभ की गई थी। ऐसा माना जाता है कि वर्तमान में, भारत में बनने वाले फ़ारसी एवं पश्चिमी शैली के कालीनों का अत्यधिक प्रतिशत हिस्सा मिर्ज़ापुर में ही बनता है।

इस क्षेत्र में व्याप्त नैसर्गिक सुंदरता भी देखने लायक है तथा कोई भी नर घाट एवं पक्का घाट जैसे लोकप्रिय घाटों को देखने जा सकता है।        

अन्य आकर्षण

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