बाटी चोखा

वाराणसी यहां मिलने वाली बाटी चोखा के लिए प्रसिद्ध है। यह पारंपरिक भोजन समस्त उत्तर प्रदेश एवं बिहार में बहुत लोकप्रिय है। बिना ख़मीर के आटे के पेड़ों में दाल, प्याज़, मटर या सत्तू भरकर उन्हें चूल्हे में पकाया जाता है। इन्हें चोखा के खाया जाता है जो पारंपरिक रूप से आलू, टमाटर एवं भुने हुए बैंगन से बनाया जाता है।

ऐसा कहा जाता है कि बाटी बनाने में इतना सरल पकवान होता है कि तांत्या तोपे एवं रानी लक्ष्मीबाई जैसे स्वतंत्रता सैनानी यात्रा के दौरान इसे बनाया करते थे। इसे बनाने में न तो पानी अथवा इसे भूनने के लिए किसी बर्तन की आवश्यकता होती है। यद्यपि, यह कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम, प्रोटीन एवं विटामिन जैसे पौष्टिक तत्त्व से भरपूर होता है।           

बाटी चोखा

लस्सी

दही से बनी लोकप्रिय लस्सी, वाराणसी में ठेठ नाश्ते की समाप्ति का बेहद सुखद तरीका होता है। यहां पर पारंपरिक रूप से लस्सी कुल्हड़ (मिट्टी का गिलास) में परोसी जाती है। इस पर गाढ़ी मलाई डाली जाती है और स्वाद बढ़ाने के लिए गुलाब जल डालते हैं तथा सजाने के लिए इलायची जैसे मसाले सलीके से छिड़के जाते हैं। वहां पर भांग भी बेहद लोकप्रिय पेय है जो दूध में मिलाकर पीते हैं। यह विशेषकर महाशिवरात्रि के दौरान अधिक पी जाती है।

लस्सी

कचौड़ी

यह मसालेदार नाश्ता उत्तर भारतीय खाने का मुख्य आधार है तथा वाराणसी में विशेष रूप से लोकप्रिय है। मैदे से बनी इन कचौड़ियों में दाल व मसाले भरे जाते हैं। पारंपरिक रूप से यह तीखी चटनी के साथ परोसी जाती है। गर्मागर्म एवं करारी कचौड़ी खाने की सबसे उपयुक्त जगह विश्वनाथ मंदिर के निकट कचौड़ी गली है।

कचौड़ी

चाट

पूरे भारत में स्वादिष्ट नाश्ते के रूप में खाए जाने वाले इस लोकप्रिय व्यंजन की उत्पत्ति उत्तर प्रदेश में ही हुई है। वाराणसी में अनेक प्रकार की चाट खाने को मिलती हैं जिनमें विभिन्न प्रकार की सामग्री डलती है। भले ही वह कटे टमाटर, मसालेदार या कुरकुरी तली हुई पालक को दही व सेव के साथ अथवा इमली की मीठी चटनी या फिर तीखी हरी चटनी के साथ परोसी जाए।

चाट

बनारसी पान

सुपारी एवं अन्य मसालों से बना पान वाराणसी में बहुत लोकप्रिय है। बनारसी पान बनाने वालों ने इस प्रक्रिया को एक कला के रूप में परिष्कृत एवं विकसित किया है। किसी ने सच कहा है कि वास्तव में अद्भुत स्वाद वाला बनारसी पान खाए बिना यहां की यात्रा सम्पूर्ण नहीं मानी जा सकती। पान बनाने की प्रक्रिया में सबसे पहले पान के पत्तों को साफ़ किया जाता है। उसका कसैलापन दूर हो जाए, इसलिए पान के पत्तों को कुछ देर तक पानी में भिगोकर रखा जाता है। इस पर लगने वाले कत्थे को पहले पानी तथा बाद में कुछ दिनों के लिए दूध में भिगोकर रखा जाता है। तब इसे उबालते हैं एवं सूखने के लिए छोड़ देते हैं। कुछ समय पश्चात इसे कपड़े में बांधकर रख देते हैं तथा उसे कसकर निचोड़ते हैं ताकि इसका कड़वापन दूर हो जाए। 

कत्थे को उसके बाद मंथते हैं। पान में पीला अथवा सादा तम्बाकू उपयोग में लाया जाता है। ये सभी उपाय बनारसी पान को स्वादिष्ट बनाता है।  

बनारसी पान