नौका विहार

हर सुबह वाराणसी के घाट श्रद्धालुओं से भरे रहते हैं जो पावन नदी के पवित्र जल में डुबकी लगाने के लिए एकत्रित होते हैं। ऐसी मान्यता है कि गंगा में नहाने से सारे पाप धुल जाते हैं। पावन नगरी वाराणसी आने वाले किसी भी आगंतुक के लिए न भूलने वाला अनुभव वह होता है जब वह गंगा नदी में सूर्योदय के समय नौका विहार करता है। नदी के किनारे उसे अनेक रंग देखने को मिलेंगे। शंख की ध्वनि सूर्य की पहली किरण तथा नवदिवस पर आगंतुकों का स्वागत करती प्रतीत होती है।

अनगिनत मंदिरए पुराने भवनए आश्रम व नदी के किनारे स्थित घाट मनोहारी दृश्य प्रस्तुत करते हैं। ऐसे ही अद्भुत अनुभव का आनंद संध्या को भी मिलता है जब गंगा नदी पर आरती होती है। नदी पर नौका की सवारी करते हुए यहां से भव्य धार्मिक अनुष्ठान का अवलोकन मंत्रमुग्ध कर देगा। यद्यपि इन नौकाओं की सवारी एक घंटे के लिए होती हैए लेकिन आप लंबी अवधि के लिए भी बुकिंग कर सकते हैं।

नौका विहार

खरीदारी

The old bazaars of Varanasi, in the galis around Vishwanath Mandir, and at Chowk are the most famous street shopping areas in the city. From souvenirs, metal craft items, handcrafted wooden toys, jewellery, glass beads, gulabi minakari work and traditional perfumes to Banarasi sarees and brocade, there is a lot on offer here. Explore the maze of alleyways at the Vishwanath Temple lane, Thathera Bazaar and Godaulia to find some of the most authentic Banarasi wares and weaves. Varanasi also has a plethora of shopping complexes that offer most modern day conveniences found in the metropolitan cities.

खरीदारी

सुबह-ए-बनारस

वाराणसी को देखने का एक अनोखा तरीका सवेरे इस शहर में चहलकदमी करना है। यह सुबह.ए.बनारस कहलाता है जो एक ऐसा अनुभव है जिसे छोड़ना नहीं चाहिए। शहर के पुराने हिस्से में रहने वाले लोग तड़के ही उठ जाते हैं। मंदिरों की सफाई की जाती है तथा पुजारी सवेरे होने वाले अनुष्ठानों की तैयारी में लग जाते हैं। जब सूर्योदय होता है और आकाश गहरे लाल.रंग का हो जाता हैए तब शहर का परिदृश्य ही बदल जाता है। श्रद्धालुगण गंगा नदी के पावन जल में स्नान करते हैं।

जब गलियां में लोग नए दिन का आरंभ करते हैं तो संपूर्ण शहर में घंटियों की ध्वनि तथा मंत्रोच्चारण की गूंज सुनाई देती है। गंगा में प्रथानुसार स्नान करने के पश्चात् श्रद्धालुगण लकड़ी की छतरी वाले पंडालों का रुख करते हैं। वहां पर वे रोलीए चंदन एवं रक्षासूत्र ख़रीदते हैं जो प्रार्थनाओं के अनुष्ठान के घटक होते हैं। इस समय सड़कों पर न तो अधिक वाहन होते हैं और न ही लोगए इसलिए बिना किसी अड़चन अथवा परेशानी के पुराने शहर की आभा व रहस्यवाद तथा नए युग की भव्यता एवं गौरवमयी अनुभव एक ही स्थान पर लेने का यह उपयुक्त समय होता है।    

सुबह-ए-बनारस

गंगा महोत्सव

गंगा महोत्सव पांच दिवसीय बेहद लोकप्रिय उत्सव हैए जिसका आयोजन वाराणसी में गंगा किनारे हर वर्ष होता है। इसका आयोजन उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग द्वारा किया जाता है। संत रविदास घाट पर होने वाले इस महोत्सव में व्यापक प्रकार की भारतीय पारंपरिक कलाए शिल्पए व्यंजनों एवं संस्कृति की झलक एक ही जगह पर देखने को मिलती है। महोत्सव का अंतिम दिन बेहद अद्भुत होता हैए जब गंगा के किनारों पर हज़ारों दीये जलते दिखाई देते हैं। यह दृश्य मंत्रमुग्ध कर देने वाला होता है। वैदिक मंत्रोच्चारण से आसपास का वातावरण सुहाना हो जाता है। ऐसा माना जाता है कि यह समारोह उन देवताओं के स्वागत के लिए मनाया जाता है जब वे गंगा में स्नान करने धरती पर आते हैं। यह महोत्सव नौका चालनए पतंगबाज़ीए गंगा मैराथन एवं कुश्ती जैसी खेल प्रतियोगिताओं के लिए भी लोकप्रिय है। 

गंगा महोत्सव

भरत मिलाप

वाराणसी को मेलों एवं पर्वों की नगरी के रूप में जाना जाता है। यहां प्रत्येक माह मेले व त्योहार आयोजित किए जाते हैं। यहां आयोजित होने वाले अनेक समारोहों में से एक भरत मिलाप भी है। पारंपरिक रूप से यह दशहरे के अगले दिन बाद मनाया जाता है। 14 बरस के वनवास के बाद भगवान राम के अयोध्या लौटने एवं अपने भाई भरत से पुनः मिलाप की याद में यह पर्व मनाते हैं। यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का द्योतक है। वाराणसी में प्रत्येक वर्ष भरत मिलाप का आयोजन नाटी इमली तथा रामनगर किले पर किया जाता है। सैकड़ों श्रद्धालुगण भगवान राम व भरत के मिलाप का आनंद प्राप्त करने के लिए यहां पर एकत्रित होते हैं।

संगीत घरानों के दर्शन

वाराणसी हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत का विश्व विख्यात केंद्र है। सारंगीए तबलाए शहनाईए तानपुराए सितारए सरोदए संतूर एवं बांसुरी जैसे पारंपरिक भारतीय संगीत वाद्य वाराणसी के सांस्कृति ताने.बाने का अभिन्न हिस्सा रहे हैं। हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के महान कलाकार जैसे पंडित रविशंकरए पंडित गोपाल मिश्रए उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ान एवं गिरिजा देवी वाराणसी के ही निवासी थे। गुरु.शिष्य परंपरा वाराणसी में अब भी देखने को मिलती है। शहर में नदी किनारे स्थित तुलसी घाट पर मार्च में होने वाला पांच दिवसीय धु्रपद महोत्सव भारत के सभी प्रसिद्ध कलाकारों को आकर्षित करता है। 

महा शिवरात्रि

Varanasi is considered the city of Lord Shiva, so Maha Shivaratri – the great night of Lord Shiva's wedding - is a very important festival here. Maha Shivaratri falls on the 14th day of the dark fortnight of the Phalgun month (February/March), according to the Hindu calendar. All the Shiva temples of Varanasi are beautifully decorated for the occasion and a marriage procession of Lord Shiva is taken out starting from Mahamrityunjaya Temple in Daranagar to the Vishwanath Temple. A big fair is held on the occasion. On this day, devotees visit Shiva temples to offer prayers and the worship can continue well into the night. People offer flowers, coconut, bhang, dhatura, fruits etc., to shivlings and idols.

The origin of the festival has an interesting history. Legend has it that both gods and demons were once churning the ocean of milk to get amrita (water of immortality). While doing so, they came across a deadly poison which exploded into fumes that threatened to envelop the whole universe. The gods then went to Lord Brahma and Lord Vishnu for help, but they couldn't do anything. At last, they went to Lord Shiva to ask for help, who swallowed the poison in order to save the universe. This left a deep blue mark on his throat. A popular belief celebrates this incident on the festival.