अंत्येष्टि किए जाने वाले दो घाटों में से एक हरीशचंद्र घाट है। यह आदि मणिकर्णिका भी कहलाता है, जिसका अर्थ मूल सृजन मैदान है। यह घाट मणिकर्णिका से काफ़ी छोटा है, जो अंत्येष्टि के लिए एक महत्वपूर्ण घाट माना जाता है। यद्यपि, हिंदू दूर-दराज़ के क्षेत्रों से इस घाट पर आकर अपने मृतक परिजनों का अंतिम संस्कार करते हैं। कइयों का मानना है कि उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होगी। यह घाट पवित्र नगरी वाराणसी का सबसे प्राचीन घाट है और इसका नाम पौराणिक कथाओं में वर्णित राजा हरीशचंद्र के नाम पर रखा गया है। ऐसा कहा जाता है कि सत्यवादिता एवं परोपकार के लिए किसी समय राजा इस घाट पर काम किया करता था। उसकी नेकी से प्रसन्न होकर देवताओं ने वरदान देते हुए उसे उसका खोया हुआ राज्य लौटाया तथा उसके मृत पुत्र को भी जीवित कर दिया। 1980 में इस घाट का आधुनिकीकरण करते हुए यहां विद्युत संचालित श्मशान गृह की स्थापना की।                                                  

अन्य आकर्षण

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