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विंध्य पर्वतों के बीच 78 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में व्याप्त चंद्रप्रभा वन्यजीव अभयारण्य का नाम चंद्रप्रभा नदी के नाम पर पड़ा है। इसका मतलब चांद की चांदनी होता है। यह नदी कर्मनाशा नदी की सहायक नदी है और दोनों नदियां इस वन से होते हुए गंगा नदी में जा मिलती हैं। इस अभयारण्य की स्थापना 1957 में की गई थी जो कभी एशियाई सिंह के लिए लोकप्रिय था। वर्तमान में, यहां तेंदुआ, लकड़बग्घा, भेड़िया, जंगली सुअर, नील गाय, सांभर, चिंकारा, चीतल, काले हिरण, घड़ियाल, अजगर जैसे जंगली जानवरों तथा पक्षियों की अनेक प्रजातियां देखने को मिलती हैं। जलप्रपात एवं ट्रैकिंग के रास्ते होने के कारण यह अभयारण्य वाराणसी से दूर एक दिन बिताने के लिए उपयुक्त जगह है। इसके अलावा, कई गुफ़ाएं तथा पहाड़ इसे साहसिक यात्रा के लिए एक उपयुक्त जगह बनाते हैं। आगंतुक यहां पर गुफ़ाओं में बनी सुंदर चित्रकला, बाग, मचान, सनसेट प्वाइंट एवं चट्टानी गुफ़ा भी देख सकते हैं। इस वन में स्वदेशी कबाइली आबादी भी निवास करती है। वे अपने पारंपरिक नृत्य एवं संगीत के साथ उत्सव मनाते हैं जो उन आदिवासियों की अनकही कथाओं का उल्लेख करते हैं। इन समुदायों की सुर-लहरियां सुनकर कोई भी यहां पर अपनी शाम बिता सकता है।
यहां जाने का उचित समय जुलाई से फरवरी है तथा इसका प्रवेश द्वार चंद्रप्रभा बांध पर स्थित है। वाराणसी से लगभग 70 किलोमीटर की दूरी पर चंद्रप्रभा वन्यजीव अभयारण्य स्थित है।