यह शहर के सबसे बड़े घाटों में से एक है तथा मुख्य घाटों के दक्षिण में स्थित है। यह स्थान इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यहां पर गंगा का अस्सी नदी से संगम होता है। आगंतुक यहां पर भगवान शिव के लिंग की पूजा-अर्चना करने आते हैं, जो पीपल के पेड़ के नीचे रखा गया है। हर किसी को शाम को होने वाली गंगा आरती में हिस्सा लेना चाहिए तथा वहां पर समय व्यतीत करना चाहिए, यह आरती देखने लायक होती है। यह घाट नौका विहार का आरंभिक स्थान भी है तथा कोई भी यहां आकर तड़के योग एवं संगीत का भरपूर आनंद ले सकता है। 

पौराणिक कथा के अनुसार देवी दुर्गा ने शुम्भ-निशुम्भ नामक असुरों को मारकर अपनी तलवार इसी नदी (जो अस्सी कहलाई) में फेंक दी थी। इसीलिए यह घाट भी उसी के नाम पर पड़ा। यद्यपि शाम को होने वाली आरती में आगंतुक नियमित रूप से आते हैं, किंतु चैत्र (मार्च/अप्रैल) तथा माघ (जनवरी/फरवरी) में यहां विशेष रूप से श्रद्धालुओं का तांता लग जाता है। चंद्रग्रहण/सूर्यग्रहण, मकर संक्रांति एवं प्रबोधिनी एकादशी कुछ ऐसे अन्य महत्त्वपूर्ण आयोजन हैं, जब यहां लोगों की भीड़ उमड़ पड़ती है।

अन्य आकर्षण

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