हिंदुओं के बेहद मांगलिक एवं पावन घाटों में से एक मणिकर्णिका घाट का अंत्येष्टि के लिए बहुत महत्व है। यह दशाश्वमेध घाट एवं सिंधिया घाट के मध्य में स्थित है। मणिकर्णिका घाट के निकट एक जलकुंड है, ऐसा माना जाता है कि इसे भगवान विष्णु ने बनाया था ताकि भगवान शिव एवं देवी पार्वती (शक्ति) स्नान कर सकें। इस तालाब के निकट पैर का निशान बना हुआ है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यह भगवान विष्णु का है जो तब अंकित हुआ था जब वह वाराणसी में ध्यान लगाने आए थे। कोई जब सीढ़ियां चढ़कर घाट के ऊपर जाता है तब उसे मणिकर्णिका नामक प्रतिष्ठित जलकुंड देखने को मिलता है। पौराणिक कथा के अनुसार देवी पार्वती ने यहां पर अपने कान का कुंडल गिरा दिया था, जिसे खोजने के लिए भगवान शिव ने तालाब खोद दिया था। ऐसा कहते हैं कि उनके पसीने से यह कुंड भर गया था। 

इस घाट का उल्लेख 5वीं सदी में रचित कुछ साहित्य में भी मिलता है। ऐसा माना जाता है कि देवी शक्ति ने अपने पिता के यज्ञ में अपने शरीर की आहुति दे दी। इस कारण से उनके पति भगवान शिव शोकग्रस्त तथा क्रोधित हो गए। उन्होंने उनका शव अपने कंधों पर रखा और पूरे ब्रह्मांड का चक्कर लगाया। इस बात से भयभीत कि कहीं शिव तांडव करके समस्त ब्रह्मांड का सर्वनाश न कर दें, उन्होंने सुदर्शनचक्र से शक्ति के शरीर को अलग कर दिया। जिस स्थान पर पार्वती के कान का कुंडल गिरा, वह मणिकर्णिका कहलाया। 

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