यहां से 53 किलोमीटर दूर हरिद्वार में स्थित माया देवी मंदिर इस क्षेत्र में स्थित तीन शक्तिपीठों में से एक है जहां देवी सती के अंग कट कर गिरे थे। अन्य दो शक्तिपीठ चंडी मंदिर और मनसा देवी मंदिर हैं। कथा है कि एक बार राजा दक्ष प्रजापति ने एक विशाल यज्ञ करवाया लेकिन उसमें अपने दामाद भगवान शिव को नहीं बुलाया। इससे खुद को अपमानित जान कर उनकी पुत्री देवी सती ने उसी यज्ञ की आग में कूद कर खुद की आहुति दे दी। दुखी और क्रुद्ध शिव सती के शव को कंधे पर लेकर विनाशकारी तांडव नृत्य करते हुए संसार को नष्ट करने पर उतारू हो गए।संसार को उनके क्रोध की ज्वाला से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने अपने चक्र से सती के शव के टुकड़े कर डाले। देवी सती के शरीर के अंग जहां-जहां गिरे उन्हीं स्थानों को ही शक्तिपीठ के रूप में पूजा जाता है। मान्यता है कि इस जगह पर सती का हृद्य और नाभिस्थल गिरा था। मंदिर परिसर में माया देवी, कामाख्या देवी और देवी काली की प्रतिमाएं हैं। इस मंदिर में नवरात्रों और कुंभ मेले के दौरान श्रद्धालुओं की भारी भीड़ रहती है।

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