56 मीटर ऊंचा चारमीनार, हैदराबाद का सबसे प्रतिष्ठित ऐतिहासिक स्थल है। इसके भव्य चौतरफा मेहराब की चार मीनारें, अपने चारों ओर के हलचल भरे बाजार के बीच से, ऊपर निकलती हुई दिखती हैं। शहर को तबाह करने वाले एक प्लेग के अंत के बाद, सन् 1591 में कुतुब शाही वंश के पांचवें राजा, मोहम्मद कुली कुतुब शाह द्वारा इसे हैदराबाद शहर की स्थापना को चिह्नित करने के लिए बनवाया गया था।

संरचना के चारों सिरे चार मूल दिशाओं की ओर हैं, और एक तीक्ष्ण मेहराब प्रत्येक दिशा की ओर है। ये मेहराब, इस संरचना के सभी रास्तों और ऊपर बने कमरों की दो मंजिलों का भार वहन करती हैं। स्मारक के चौकोर ढांचे के प्रत्येक किनारे की लम्बाई लगभग 20 मीटर है जिसके प्रत्येक कोने पर एक मीनार है, और प्रत्येक मीनार 24 मीटर ऊंची है। संरचना के इन चार मीनारों के चलते इसका नाम चारमीनार पड़ा। प्रत्येक मीनार पर चढ़ने के लिये 149 कदमों की घुमावदार सीढ़ी हैं। ये मीनारें कमल-पत्ते के आकार के आधार पर खड़ी हैं, जो आकार कुतुब शाही इमारतों के शैली का एक मोटिफ (विशिष्ट प्रतीक) है। चारमीनार का निर्माण, वास्तुकला की भारतीय-अरबी (इंडो-सारासेनिक) शैली में किया गया है। इसके निर्माण में ग्रेनाइट और चूना मोर्टार सामग्री का उपयोग किया गया है।

स्मारक की पहली मंजिल का इस्तेमाल कुतुब शाही के समय में, मदरसे के रूप में किया गया था। दूसरी मंजिल पर पश्चिमी दिशा में एक मस्जिद है, जो शहर की सबसे पुरानी मस्जिद है। इस राजसी मस्जिद के गुंबद को काफी दूर सड़क से देखा जा सकता है। कोई पहली मंजिल पर चढ़ कर, इसके चारों ओर के पुराने बाजारों के दृश्य और उनकी भूलभुलैया गलियों को देख सकता है। इसके ऊपरी हिस्से आम जनता के लिए खुले नहीं हैं। प्लास्टर से बनी सजावटें, जटिल रूपांकनों, बालकनियां और उसके लघु स्तम्भ, इसके डिजाइन की विशिष्टताएं हैं।

सन् 1889 में, इस स्मारक की चार मूल दिशाओं में, चार घड़ियों को लगाया गया। रात 7 बजे से 9 बजे तक, अंधेरे आकाश के परिपेक्ष में बिजली से सजी चारमीनार एक अद्भुत और विलक्षण दृश्य प्रस्तुत करती है। चारमीनार सिर्फ हैदराबाद के वास्तुशिल्प का एक विलक्षण उदाहरण ही नहीं, बल्कि यह शहर का शाही परिवेश और इसकी धीमी रफ्तार की जीवन शैली को भी दर्शाता है, जिसकी छाया में हैदराबाद की विरासत जीवंत रहती है।

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