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हैदराबाद से लगभग 11 किमी दूर, 16 वीं शताब्दी का निर्मित प्रभावशाली गोलकुंडा किला, भारत के सबसे प्रसिद्ध किलों में से एक है। पूर्व गोलकोंडा साम्राज्य की राजधानी, यह किला इस क्षेत्र में गोलकोंडा राज्यशक्ति का केंद्र था और इसलिये इसे एक अभेद्य संरचना के रूप में बनाया गया था। इसका पूर्व गौरव और एश्वर्य आज भी इसके शक्तिशाली दीवारों और इसकी किलेबंदी में देखी जा सकती है। 120 मीटर ऊंची पहाड़ी पर स्थित, यह किला वैसा प्रमुख सुविधाजनक स्थान था जहां से दुश्मन पर दूर से ही नजर रखी जा सकती थी। आज, यह किला इस ऊंचाई से पर्यटकों को आसपास के क्षेत्रों के व्यापक दृश्य प्रस्तुत करता है, जहां से कोई भी काफी दूर तक, लगभग क्षितिज तक को देख सकता है। और ऊपर चढ़कर कोई, इस आश्चर्यजनक डेक्कन पठार को देख सकता है, और रोशनी से प्रज्वलित हलचल भरे शहर पर विहंगम दृष्टि डाल सकता है।
किले की यात्रा कर कोई भी इसके इतिहास की समृद्धता को महसूस कर सकता है, जिसने राज्य सिंहासन को विभिन्न राजवंशों के बीच हस्तांतरित होते हुए देखा है। जबकि यहां स्थित कई खूबसूरत महल इसके इतिहास की शाही भव्यता को प्रतिध्वनित करते हैं, वहीं पर यहां पर रखी प्रसिद्ध फतेह रहबेन तोप, किले पर हुए उस क्रूर हमले की याद दिलाती है जब मुगल सम्राट औरंगजेब ने इसकी घेराबंदी कर इसे जीत लिया था। शाम में होने वाला एक अनूठा प्रकाश और ध्वनि शो, आपको उस समय में वापस ले जाता है जब गोलकुंडा, समृद्धि और भव्यता से भरपूर था।
गोलकोंडा किला सबसे पहले एक मिट्टी के किले के रूप में बनाया गया था, जब यह देवगिरी के यादव और वारंगल के काकतीय राजवंश के अधिकार क्षेत्र में था। मुख्यतः यह किला, सन् 1687 में मुगल सम्राट औरंगजेब द्वारा जीते जाने के पहले तक, एक अभेद्य दुर्ग था।यह किला अपने समय की इंजीनियरिंग का एक शानदार नमूना है और शायद इसीलिए, अनेक शक्तिशाली सम्राटों ने इस पर कब्जा करने की कोशिश की। इसके विशाल फाटकों पर, हाथियों के प्रहार को रोकने के लिए, लोहे की अनेक बड़ी बड़ी कीलें लगी हैं, और किले की घेराबंदी के दौरान निर्बाध जल आपूर्ति को सुनिश्चित करने के लिये इसमें एक छिपी हुई पानी की पाइपलाइन भी बिछी है। सुरक्षा की दृष्टि से, किले में सबसे शानदार इसकी अनूठी ध्वनिकी (अकाउस्टिक) है जो यह सुनिश्चित करती है कि प्रवेश द्वार पर की गई हल्की सी आवाज भी, पूरे परिसर में गूंज उठेगी। इसमें चार कलदार पुल हैं जिसे हटाया जा सकता है, आठ दरवाजें हैं, और अनेक हॉल और अस्तबल भी हैं। बाहरी क्षेत्र में फतेह दरवाजा (विजय द्वार) है, जिसे ऐसा इसलिए पुकारा जाता है क्योंकि औरंगज़ेब की विजयी सेना इसी द्वार से किले के अंदर घुसी थी।