अमानत ख़ान की सराय मुग़लों ने ग्रांड ट्रंक मार्ग पर अमृतसर के दक्षिण-पश्चिम में एक छोटे से गांव में आरामगाह के रूप में बनवाई थी। मुग़लों द्वारा बनवाई गईं अनेक सरायों में से यह एक है। यह सराय इस उद्देश्य से बनवाई गई थी कि आगरा से लाहौर जाते समय यहां पर आराम किया जा सके।

इस सराय का नाम अमानत ख़ान के नाम पर रखा गया, जिन्होंने ताज महल पर फ़ारसी सुलेखक अंकित की थी। ऐसा कहा जाता है कि पहले यह अमानत ख़ान का निवासस्थल था, बाद में यह उनका मकबरा बना। उन्हें ताजमहल पर कुरान की आयतें लिखने का श्रेय जाता है। वह द्वार जिससे होकर सराय तक जाते हैं, वह बहुत ही सुंदर है और उस पर मुग़लशैली की वास्तुकला की स्पष्ट छाप देखने को मिलती है। इस पर किया गया नीली-चमकीली टाइलों का कार्य भी विशेष रूप से उल्लेखनीय है। लाहौरी दरवाज़ा एवं दिल्ली दरवाज़ा इसके दो अन्य द्वार हैं जो बड़े व खुले आंगन के दोनों ओर स्थित हैं। इस आंगन में एक मस्जिद एवं अस्थाई अस्तबल भी है। यद्यपि वर्तमान में इस सराय के अवशेष ही विद्यमान हैं किंतु यहां आकर इतिहास से अवगत हुआ जा सकता है।  

अन्य आकर्षण