अमृतसर के प्रसिद्ध गुरुद्वारों एवं मंदिरों सैर करें और शहर के आध्यात्मिक रंग में सराबोर हो जाएँ 

स्वर्ण मंदिर

अमृतसर यहां स्थित सुंदर एवं अत्यधिक सम्मानित स्वर्ण मंदिर या श्री हरमंदिर साहिब के लिए विश्व प्रसिद्ध शहर है, जो देश के बेहद लोकप्रिय आध्यात्मिक गंतव्यों में से एक है। यह मंदिर दो मंज़िला है, जिसका आधा गुम्बद 400 किलोग्राम विशुद्ध सोनपत्र से सुसज्जित है, इसी के कारण इसका अंग्रेज़ी में नाम गोल्डन टेम्पल पड़ा। ऐसा माना जाता है कि सिख साम्राज्य के नेता महाराजा रणजीत सिंह ने 19वीं सदी में इसके निर्माण का जिम्मा उठाया था। मंदिर का शेष परिसर सफेद संगमरमर से बनाया गया जिसमें बहुमूल्य तथा कम कीमती रत्न जड़े गए थे। भित्तिचित्र बनाने के लिए पच्चीकारी तकनीक का उपयोग किया गया था। इस शानदार मंदिर का विशाल आकार सभी को प्रभावित करता है। 

स्वर्ण मंदिर में प्रवेश करने से पहले श्रद्धा-स्वरूप किसी भी महिला/पुरुष को अपना सिर ढकना होता है तथा अपने जूते उतारने पड़ते हैं। जब कोई यहां मधुर गुरुवाणी सुनता है तब मंदिर में व्याप्त आध्यात्मिक शांति आत्मा तक को संतुष्ट कर देती है। कोई भी व्यक्ति वहां मिलने वाला गुरु का लंगर खा सकता है, जहां जाति, धर्म या लिंग का भेदभाव किए बिना यहां प्रतिदिन लगभग 20 हज़ार लोगों को निःशुल्क भोजन कराया जाता है। लंगर की समस्त प्रक्रिया कारसेवकों द्वारा पूरी की जाती है तथा यह सबसे सादगीपूर्ण अनुभवों में से एक हो सकता है।

स्वर्ण मंदिर

दुर्गियाना मंदिर

दुर्गा मां को समर्पित हिंदुओं का यह पारंपरिक मंदिर 16वीं सदी में बनाया गया था तथा इसमें हिंदू धर्मग्रंथों का प्रसिद्ध भंडार व्याप्त है। इसलिए, यहां असंख्य विद्वान इन ग्रंथों को पढ़ने तथा श्रद्धालुगणों सहित हिंदू संत यहां हिंदुओं की देवी मां लक्ष्मी व भगवान नारायण की पूजा करने आते हैं। यह मंदिर लक्ष्मी नारायण मंदिर भी कहलाता है।     

इस मंदिर की बनावट बिलकुल स्वर्ण मंदिर की भांति है, जो स्वर्ण मंदिर के निकट ही स्थित है। दुर्गियाना मंदिर में भी प्रसिद्ध स्वर्ण मंदिर की तरह मंडप एवं केंद्रीय गुंबद बना हुआ है जो एक पावन तालाब के बीच में बना हुआ है। महान सुधारक एवं राजनेता पंडित मदन मोहन मालवीय ने 20वीं सदी के तीसरे दशक में इसका पुनर्निर्माण किया था। शांतिपूर्ण परिसर वाले इस मंदिर के सुंदर द्वार चांदी से बने हुए हैं। इसी कारण से यह चांदी का मंदिर कहलाता है।  

दुर्गियाना मंदिर

राम तीर्थ

अमृतसर की पश्चिम दिशा में 12 किलोमीटर दूर राम तीर्थ स्थित है। ऐसा माना जाता है कि प्राचीन समय में यहीं पर वाल्मीकि ऋषि (महाग्रंथ रामायण के रचयिता) का आश्रम हुआ करता था। कइयों का मानना है कि रामायण में इसी जगह का उल्लेख किया गया है जहां लव व कुश का जन्म हुआ था। ऐसा कहा जाता है कि जिस झोंपड़ी में देवी सीता ने भगवान राम के बच्चों को जन्म दिया था वाल्मीकि ऋषि की झोंपड़ी के साथ वह उसी स्थान पर विद्यमान है। प्राचीन संस्कृत महाग्रंथ से लिए गए परिदृश्य एवं मूर्तियां यहां के प्रमुख आकर्षण हैं।  

यहां पर पानी का प्राचीन कुंड भी देखने को मिलेगा, जिसके आसपास कई मंदिर स्थित हैं। प्रत्येक वर्ष नवम्बर में पूर्णिमा से चार दिवसीय मेला आयोजित किया जाता है, जिसमें आसपास के क्षेत्रों के लोग आते हैं।

राम तीर्थ

गुरुद्वारा श्री तरनतारन साहिब

ऐसा माना जाता है कि यह इस क्षेत्र का सबसे प्राचीन गुरुद्वारा है। सिखों के पांचवें गुरु, गुरु अर्जन देव ने गुरुद्वारा श्री तरनतारन साहिब का निर्माण करवाया था। ऐसा कहा जाता है कि पंजाब में स्थित सभी गुरुद्वारों में से केवल इसी के आसपास सबसे बड़ा जलकुंड है। गुरु अर्जन देव ने सन् 1590 में इस सुंदर गुरुद्वारे की नींव रखी थी। इस गुरुद्वारे की एक अन्य विशेष यह है कि केवल यही गुरुद्वारा स्वर्ण मंदिर का प्रतिरूप है। अमावस्या पर यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालुगण एकत्रित होते हैं। 

गुरुद्वारा श्री तरनतारन साहिब

अकाल तख़्त

अकाल तख़्त, सिख धर्म के पांच आधिकारिक तख़्तों में से एक है। ‘अकाल’ शब्द का अर्थ अनंत समय तथा ‘तख्त’ का मतलब सिंहासन होता है। अतः इसका शाब्दिक अर्थ ‘अमर सिंहासन’ होता है। सिखों के छठे गुरु, गुरु हरगोबिंद जी ने अकाल तख्त का निर्माण करवाया था, जिन्होंने 1605 में इसकी आधारशिला रखी थी। इसे 17वीं तथा 18वीं सदी में शासकों के अत्याचार व न्याय का प्रतिनिधित्व करने के प्रतीक के रूप में बनवाया गया था। यह ख़ालसा का पहला सर्वोच्च तख़्त है, जो सिखों का सैन्य व नागरिक प्राधिकरण है। उस समय सिख योद्धाओं द्वारा उपयोग में लाए जाने वाले हथियार भी यहीं पर रखे जाते थे। अकाल तख्त स्वर्ण मंदिर परिसर में ही स्थित है। यह इमारत दर्शनी द्योढ़ी के सामने स्थित है, उस समय यहां से स्वर्ण मंदिर जाते थे। 

अकाल तख़्त

बाबा अटल राय बुर्ज

बाबा अटल राय बुर्ज स्वर्ण मंदिर के दक्षिण में स्थित है। 40 मीटर ऊंचा यह बुर्ज नौ मंज़िला है, जो अमृतसर की सबसे ऊंची इमारतों में से एक है। पौराणिक कथाओं के अनुसार सिखों के छठे गुरु, गुरु हरगोबिंद के नौ वर्षीय पुत्र अटल राय ने अपने मृत मित्र मोहन को पुनर्जीवित कर दिया था। अपनी आध्यात्मिक शक्तियों का प्रदर्शन करने के लिए गुरु हरगोबिंद ने नौ वर्षीय बालक को बहुत फटकारा था। कानून तोड़ने की भरपाई स्वरूप अटल राय ने समाधि ले ली थी। इस अष्टकोणीय बुर्ज की हर एक मंज़िल अटल राय के जीवन के हर साल को दर्शाती है। आरंभ में, यह इमारत एक बुर्ज के रूप में बनाई गई थी, किंतु फलतः इसे गुरुद्वारे में परिवर्तित कर दिया गया। इस बुर्ज के प्रथम तल पर गुरुनानक के जीवन से लिए गए परिदृश्यों को भित्तिचित्रों के माध्यम से दर्शाया गया है। बुर्ज की ऊपरी मंज़िल से अमृतसर शहर का व्यापक व मनोरम परिदृश्य देखा जा सकता है।      

बाबा अटल राय बुर्ज