यह एक ऐसा व्यंजन है, जिसमें मांस और बोन मैरो को धीमी आंच पर पकाया जाता है। निहारी को खाना कुछ ऐसा है मानो, मुंह में मांस के जबर्दस्त स्वाद का एक धमाका हुआ हो। मिर्च और मसालेदार स्ट्यू में पके इस नरम मांस को, तन्दूर में बनाई गई पतली खमीरी रोटी के साथ खाया जाता है।

कहा जाता है कि निहारी को बनाने की विधि 17 वीं या 18 वीं सदी की है। निहारी में एक इंडो फ़ारसी प्रभाव देखने को मिलता है, जो मुगलों द्वारा भारत लाया गया था। वास्तव में 'निहारी' शब्द अरबी शब्द 'नाहर' से आया है, जिसका अर्थ होता है सुबह या प्रातःकाल। कहा जाता है कि मुगल काल के दौरान नवाबों द्वारा उनकी फज्र की नमाज के बाद निहारी को नाश्ते में खाया जाता था। बाद में सेना के जवानों और मुगल सैनिकों को भी ऊर्जा बढ़ाने के लिए इस मांसाहारी व्यंजन को दिया जाने लगा। ऐसा कहा जाता है कि इसे पूरी रात बड़े-बड़े बर्तनों में पकाया जाता था और सुबह मजदूरों और सैनिकों को मुफ्त में परोस दिया जाता था।

इस सुबह के नाश्ते का एक अनूठा पहलू यह है कि बची हुई निहारी (टार) को अगले दिन तैयार किए जाने वाले पकवान में मिलाया जाता है, जिससे उस पकवान का अलग जायका निखर कर आता है। यह प्रथा एक सदी पहले भी चलन में थी।

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