हरिद्वार के तीन शक्तिपीठों में से एक माया देवी का यह मंदिर श्रद्धालुओं के बीच एक प्रमुख आस्था स्थली है। चण्डी देवी और मनसा देवी की तरह इस स्थान पर भी देवी सती के छिन्न-भिन्न शरीर का अंश गिरा था। पौराणिक कथा के अनुसार जब राजा दक्ष ने अपने यज्ञ अनुष्ठान में महादेव को आमंत्रित नहीं किया था तो देवी सती ने आहत होकर उसी यज्ञ कुंड में छलांग लगा दी थी। भगवान शिव इस घटना से इतने आहत हुए कि वह देवी सती का क्षत-विक्षप्त शरीर अपने कंधों पर डालकर पूरे ब्रहंड में घूमते रहे। इससे देवताओं में भ व्याप्त हुआ कि इस तरह तो शिव अपने मार्ग में आने वाली हर चीज को नष्ट कर देंगे। इसलिए भगवान विष्णु ने सती के शरीर को अपने चक्र से काट डाला था और जिस स्थान पर देवी सती की नाभि और हद्य आकर गिरे, वहां आज माया देवी का मंदिर स्थापित है। 

मंदिर परिसर में देवी माया के अलावा कामख्या देवी और मां काली की मूर्तियां भी स्थापित हैं। इस मंदिर में नवरात्र तथा कुंभ मेले के दौरान श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है। 

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