नील पर्वत की चोटी पर स्थित प्राचीन चण्डी देवी मंदिर को लेकर भक्तों में अटूट आस्था देखने को मिलती है। हालांकि मंदिर में मुख्य प्रतिमा की स्थापना आठवीं सदी में आदि शंकराचार्य द्वारा की गयी थी, जबकि भवन का निर्माण सन 1929 में कश्मीर के राजा सुचत सिंह द्वारा करवाया गया था। चण्डी घाट से मंदिर तक पहुंचने के लिए तीन कि.मी. की पैदल यात्रा करनी पड़ती है या फिर ट्राली के जरिये भी मंदिर तक पहुंचा सकता है। इस मंदिर के बारे में एक पौराणिक कथा बेहद प्रचलित है, जिसके अनुसार एक बार शुम्भ-निशुम्भ नामक दो दानवों ने इंद्र देवता से उनका राज-पाट छीन कर उन्हें स्वर्ग से बाहर कर दिया था। तब देवी पार्वती के शरीर से चण्डिका देवी की उत्त्पत्ति हुई। शुम्भ की देवी शक्ति पर आसक्ति हो गयी, लेकिन जब देवी चण्डिका ने उसको दुत्कार दिया तो क्रोध में आकर शुम्भ ने अपने सेनानायक चण्ड और मुण्ड को देवी का वध करने के लिए भेजा, जिनका वध कालिका देवी ने कर डाला। कालिका देवी की उत्त्पत्ति मां चण्डिके के क्रोध से हुई थी। चण्ड-मुण्ड के वध के पश्चात देवी चण्डिका, स्वंय शुम्भ-निशुम्भ का संहार करने निकल पड़ीं। एक बेहद लंबे चले युद्ध के बाद देवी ने थक कर नील पर्वत पर विश्राम किया और उसी जगह आज यह प्रसिद्ध मंदिर बना हुआ है। 

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