भव्य कुंभ मेले का आयोजन प्रति बारह वर्ष बाद बहुत व्यापक स्तर पर किया जाता है, जिसमें लाखों-करोड़ों की संख्या में तीर्थयात्री पूरी दुनिया से हरिद्वार आते हैं। आंकड़े बताते हैं कि कुंभ मेले में भाग लेने वाले श्रद्धालुओं की संख्या का आंकड़ा 10 करोड़ को भी पार करने लगा है। कुंभ मेला जहां बारह वर्ष में एक बार लगता है कि वहीं अर्ध कुंभ का आयोजन हर छह वर्ष बाद किया जाता है और यह मेले भी कुंभ की ही तरह बहुत पवित्र और भव्य मेला होता है। इसकी तैयारियां आदि भी बिलकुल कुंभ के समान ही होती हैं। इस पवित्र मेले की शुरूआत के पीछे एक-दो बेहद प्रसिद्ध पौराणिक कथाएं है। 

कहते हैं कि सुरों और असुरों के बीच अमृत को लेकर छिड़े युद्ध में अमृत पान को लेकर दोनों के बीच छीनाझपी होने लगी। देवता जानते थे कि असुर उनसे ज्यादा शक्तिशाली हैं। इसलिए अमृत कलश को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी ब्रह्स्पति देव, सूर्य देव, शनिदेव और चंद्रदेव को दो गयी, जो उस पात्र को लेकर भागने लगे। राक्षसों ने पूरे 12 और रात, देवताओं के पीछे भागते हुए पृथ्वी के चक्कर लगाए। इस पूरी भागदौड़ के दौरान इन चारों देवों ने अमृत कलश को धरती पर चार स्थानों- हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक पर रखा। एक अन्य कहानी के अनुसार सुरों और असुरों के बीच हो रही इस खींचतान में अमृत पात्र छलकने लगा और अमृत की चांर बूंदें इन्हीं चार स्थानों पर गिर गयीं। आगे चलकर इन चार स्थानों पर कुंभ मेले का आयोजन किया जाने लगा, जो 12 वर्ष में एक बार लगता है। 

इस पवित्र मेले में हजारों-लाखों साधु-संत और योगी भारत के कोने-कोने से हिस्सा लेने आते हैं। कुंभ मेला अपने अनूठेपन की वजह से विदेशी सैलानियों में भी बहुत लोकप्रिय है। यहां आपको एक ओर भस्म लपेटे नागा साधु दिखेंगे, जो अपने शरीर पर एक भी वस्त्र धारण नहीं करते, तो दूसरी ओर सर्वशक्तिशाली परमात्मा की खोज में बेहद कठिन तपस्या करने वाले ऊर्ध्वाधर साधु भी दिखई देंगे। इसके साथ-साथ मौन साधना में लीन परिव्राजक साधु भी यहां आकर्षण का केन्द्र होते हैं, जो केवल घंटी बजाकर बात करते हैं। साधना का एक अन्य रूप योग के माध्यम से शीर्षआसनी साधुओं के रूप में भी यहां दिखाई देता है, जो सिर के बल खड़े होकर घंटों ध्यान लगाए रहते हैं। इन सबके अलावा कुंभ में बड़ी संख्या में कल्पवास के लिए श्रद्धालु आते हैं, जिन्हें कल्पवासी कहा जाता है। कल्पवासी, पूरे कुंभ के दौरान गंगा के तट पर ध्यान लगाते हैं और सारे धार्मिक अनुष्ठानों का पालन करते हुए प्रतिदिन तीन बार गंगा नदी के पावन जल में स्नान करते हैं। ऐसा कहा जाता है कि कुंभ के दौरान सूर्य, चंद्रमा और ब्रहस्पति से निकलने वाली विद्युत चुम्बकीय विकिरणों (इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडियेशंस) की वजह से गंगा नदी का जल सकारात्मक ऊर्जा से भर जाता है और उसमें अलौकिक गुण आ जाते हैं। 

अन्य आकर्षण