माया देवी मंदिर

हरिद्वार के तीन शक्तिपीठों में से एक माया देवी का यह मंदिर श्रद्धालुओं के बीच एक प्रमुख आस्था स्थली है। चण्डी देवी और मनसा देवी की तरह इस स्थान पर भी देवी सती के छिन्न-भिन्न शरीर का अंश गिरा था। पौराणिक कथा के अनुसार जब राजा दक्ष ने अपने यज्ञ अनुष्ठान में महादेव को आमंत्रित नहीं किया था तो देवी सती ने आहत होकर उसी यज्ञ कुंड में छलांग लगा दी थी। भगवान शिव इस घटना से इतने आहत हुए कि वह देवी सती का क्षत-विक्षप्त शरीर अपने कंधों पर डालकर पूरे ब्रहंड में घूमते रहे। इससे देवताओं में भ व्याप्त हुआ कि इस तरह तो शिव अपने मार्ग में आने वाली हर चीज को नष्ट कर देंगे। इसलिए भगवान विष्णु ने सती के शरीर को अपने चक्र से काट डाला था और जिस स्थान पर देवी सती की नाभि और हद्य आकर गिरे, वहां आज माया देवी का मंदिर स्थापित है। 

मंदिर परिसर में देवी माया के अलावा कामख्या देवी और मां काली की मूर्तियां भी स्थापित हैं। इस मंदिर में नवरात्र तथा कुंभ मेले के दौरान श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है। 

माया देवी मंदिर

दक्ष महादेव मंदिर और सति कुंड

कनखल के दक्षिण में स्थित दक्ष महादेव मंदिर, भगवान शिव का एक प्रसिद्ध मंदिर है। इस मंदिर को यह नाम भगवान की शिव अद्धांगिनी देवी सती के पिता दक्ष प्रजापति के नाम से मिला है। कहा जाता है कि एक बार महाराज दक्ष ने इस स्थान पर यज्ञ अनुष्ठान का आयोजन किया और उसमें उन्होंने भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया। अपने पिता की इस हरकत से देवी सती ने खुद को बहुत अपमानित महसूस किया और क्रोधित होकर उसी यज्ञ कुंड में छलांग लगा दी। शिव के गणों ने दक्ष की इस हरकत पर क्रुध होकर दक्ष का वध कर डाला। बाद में भगवान शिव ने दक्ष के धड़ पर बकरे का सिर लगाकर उसे जीवनदान दिया। राजा दक्ष को अपनी इस हरकत पर बहुत ग्लानि हुई और उन्होंने भगवान शिव से इसकी शमा याचना की। फिर दक्ष ने घोषणा की, कि जून से अगस्त के बीच पूरे सावन के महीनों में वह कनखल में रहा करेंगे। यहां गंगा नदी के किनारे स्थित सती कुंड को बेहद पवित्र माना जाता है और इस प्राचीन कुंड का उल्लेख महाभारत में भी मिलता है।     

दक्ष महादेव मंदिर और सति कुंड

सप्तर्षि आश्रम और सप्त सरोवर

सप्त सरोवर, वह स्थान है जहां से गंगा नदी सात अलग-अलग धाराओं में बंट जाती है। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार एक बार ऋषि कश्यप, ऋषि वशिष्ठ, ऋषि अत्री, ऋषि विश्वामित्र, ऋषि जमदग्नि, ऋषि भारद्वाज और ऋषि गौतम यहां ध्यानमग्न थे। तब इन सप्त ऋषियों के ध्यान में व्यवधान ना डालने के उद्देश्य मां गंगा सात अलग-अलग धाराओं में बंट गयी थीं। सन 1943 में गोस्वामी गुरुदत्त ने यहां एक आश्रम की स्थापना की। हरिद्वार से करीब 5 किमी दूरी स्थित यह आश्रम आज ध्यान लगाने तथा तपस्या करने वाले साधु-संतों के बीच बहुत प्रसिद्ध है। शहर के कोलाहल और भागदौड़ से दूर यह आश्रम ध्यान केन्द्र और मानसिक शांति प्राप्त करने के हेतु एक बेहतरीन स्थल के रूप में जाना जाता है, जहां पर्यटक और इच्छुक व्यक्ति कई कई दिनों के आते हैं और ध्यान आदि लगाते हैं। 

सप्तर्षि आश्रम और सप्त सरोवर