सुंदर बालूचरी साड़ियां, इस क्षेत्र की पहचान हैं। इन बालूचरी साड़ियों की खरीदारी के बिना बिष्णुपुर की यात्रा अधूरी है। इन साड़ियाें के किनारों (ब़ॉर्डर) और पल्लू पर विस्तृत रूप से महीन कारीगरी मिलती है, जिसके लिए ये साड़ियां प्रसिद्ध हैं। ये साड़ियां पहली बार मुर्शिदाबाद जिले के बालूचर नामक गांव में बनाई गई थीं। बंगाल के नवाब मुर्शिदकुली खान इस शिल्प को ढाका (अब बांग्लादेश) से बालूचर ले आए और स्थानीय बुनकरों को इन साड़ियों की बुनाई के लिए प्रोत्साहित किया। भयंकर बाढ़ से बालूचर गांव के जलमग्न होने के बाद यह उद्योग बिष्णुपुर चला गया।

बालूचरी साड़ियों के किनारों पर पौराणिक कथाओं का चित्रण इन साड़ियों की विशेषता है। बुनकरों को ऐसी एक साड़ी को बुनने में कम से कम एक सप्ताह का समय लगता है। इन साड़ियों की खास बात यह है, कि इसकी एक ही साड़ी की किनारियों पर महाकाव्य महाभारत का एक पूरा प्रसंग भी हो सकता है! इन साड़ियों को बनाने में मुख्य रूप से रेशम का इस्तेमाल किया जाता है। बुनाई पूरी होने के बाद साड़ी को पॉलिश किया जाता है। बदलते समय के अनुसार बिष्णुपुर के कारीगरों ने पर्यावरण के अनुकूल तकनीक तथा हानिरहित रंगों और धागों को अपनाया है।

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