श्यामराय मंदिर

ईंटों से निर्मित, कोनों पर चौकोर आकार की मीनारों वाला श्यामराय मंदिर अपने विशाल आकार और अलंकरणों में अनुपम है। इसका निर्माण वर्ष 1643 में, मल्लभूम के राजा रघुनाथ सिंह (1702-1712 ई.) द्वारा, भगवान विष्णु के अवतार भगवान कृष्ण को सम्मान देने के लिए किया गया था। यह पंचरत्न स्थापत्य शैली (जिसमें पांच खंभे छत पर खड़े हैं) में बनाया गया है और संभवतः यह राज्य का इस शैली में बना सबसे पुराना मंदिर है। इसकी दीवारों पर गंधार शैली (बौद्ध कला) की झलक भी देखी जा सकती है। कलाकारों ने मंदिर बनाने के लिए पक्की ईंटों पर जटिल उत्कीर्णन नमूनों में उल्लेखनीय कौशल और शिल्प कौशल का प्रदर्शन किया है। मंदिर के चारों तरफ बने धनुषाकार द्वार गर्भगृह की ओर जाते हैं। मंदिर में छोटी मूर्तियां हैं, इसमें पुष्पों के आकार उकेरित किये गये हैं, जो राज्य में अपनी तरह का पहला प्रयोग था। इसकी भीतरी और बाहरी दीवारों तथा छतों पर, कृष्णलीला तथा रामायण और महाभारत जैसे महान भारतीय महाकाव्यों के अनेक प्रसंगों का चित्रण करने वाली टेराकोटा की नक्काशी की गई है।

 श्यामराय मंदिर

जोर बंगला मंदिर

 वर्ष 1655 ईं में मल्लभूम के राजा रघुनाथ सिंह (1702-1712 ईं) द्वारा बनवाए गए, इस मंदिर को केशता राय मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर में एक साथ जुड़ीं दो घास-फूस की छप्पर वाली झोपड़ियां हैं, जिन्हें दो-छाला के नाम से जाना जाता है। जबकि उनमें से एक ड्योढ़ी है और दूसरा मंदिर। ईंटों से बना यह मंदिर एक मीटर-ऊंचे चबूतरे पर स्थित है। दीवारें चमकदार और आकर्षक टेराकोटा की पट्टिकाओं से परिपूर्ण हैं, जो रामायण और महाभारत महाकाव्यों के दृश्यों को चित्रित करती हैं तथा फूलों और रेखागणितीय नमूनों के साथ संयोजित हैं।

 जोर बंगला मंदिर

कमरपुकुर

 प्रकृति की सुंदरता से सुशोभित कमरपुकुर वह स्थान है, जहां वर्ष 1836 में एक हिंदू आध्यात्मिक संत श्री रामकृष्ण परमहंस का जन्म हुआ था। यहां श्री रामकृष्ण को समर्पित 45 फिट लंबा और 12 फिट चौड़ा एक मंदिर है। मंदिर में एक सफेद कमल पर ध्यानस्थ स्थिति में बैठे परमहंस जी की संगमरमर की मूर्ति है। मंदिर के पूर्वी भाग में एक आम का वृक्ष है, जिसे श्री रामकृष्ण परमहंस ने स्वयं लगाया था। इस वृक्ष पर हर साल मीठे आम फलते हैं।

 कमरपुकुर

जयरामबती

यह पवित्र माता श्री श्री सारदा देवी का जन्म-स्थान है। श्री सारदानंद जी द्वारा वर्ष 1923 में निर्मित श्री श्री मातृ मंदिर यहां का एक लोकप्रिय दर्शनीय स्थल है। इस 45 फुट ऊंचे मंदिर में एक सफेद चोटी पर सारदा देवी विराजमान हैं, जिस पर 'मां' शब्द उकेरा हुआ है। इसमें पवित्र माता के जीवन और शिक्षाओं की झलक मिलती है। मंदिर में प्रतिमा ठीक उसी स्थान पर स्थित है, जहां श्री श्री सारदा देवी का जन्म हुआ था। मंदिर के पास एक पवित्र तालाब है, जिसका उपयोग श्री श्री मां द्वारा किया जाता था। भक्त अब इसमें डुबकी लगाते हैं।

 जयरामबती

मदनमोहन मंदिर

बांकुरा जिले में स्थित मदनमोहन मंदिर भगवान कृष्ण को समर्पित है। वर्ष 1694 ईं में मल्ल राजा दुर्जन सिंह देव द्वारा निर्मित यह मंदिर बिष्णुपुर के सबसे बड़े मंदिरों में से एक है। इसकी दीवारें, ड्योढ़ी और स्तंभ टेराकोटा की ईंटों से निर्मित हैं।

 मदनमोहन मंदिर

बहुलारा

 बहुलारा, अपने सिद्धेश्वर शिव मंदिर के लिए प्रसिद्ध है, जो अपनी शिल्प-विधा शैली और उत्कृष्ट ईंटों की कटाई के कारण अनूठा है। कलिंग वास्तुकला की तर्ज पर बना यह मंदिर, एक ऊंचे पवित्र स्तूप पर स्थित है। चूंकि इस क्षेत्र के अधिकांश मंदिरों में एक समान टीले हैैं, अत: पुरातत्वविदों का मानना है, कि बिष्णुपुर इतिहास के एक निश्चित काल में संपन्न बौद्ध केंद्र था। निकटवर्ती इलाकों में दीहर, गोकुलनगर, जॉयकृष्णनपुर आदि में भी इसी तरह की शैलियां मिलती हैं। यहां के कुछ खंडहर स्तूपों के अवशेष माने जाते हैं।

 बहुलारा

रासमंच मंदिर

राजा बीर हम्बीर ने, सन् 1600 ई. में, वार्षिक उत्सव 'रास' के लिए रासमंच मंदिर का निर्माण कराया था। इस मंदिर की आकृति पवेलियन की तरह है। यह मंदिर दाल, मसाले, दूध, चावल, भूसी आदि से तैयार किये गये चूने से पतली ईंटों को जोड़कर एक ऊंचे चबूतरे पर बना है। इस मंदिर के चारों ओर अपेक्षाकृत छोटे धनुषाकार गलियारे हैं, जो कि चारों ओर से पिरामिड की आकृति वाले मंदिर को घेरे रहते हैं। मंदिर की छत को सहारा देने वाले 40 खंभों पर फूलों और मानव मूर्तियां को उकेरा गया है। इस गर्भगृह या मंदिर के भीतरी कक्ष में किसी देवता की मूर्ति नहीं हैै।

 रासमंच मंदिर