ढोकरा कलाकृतियां

 ढोकरा धातु की ढलाई बिष्णुपुर के आदिवासी समुदायों द्वारा प्रचलित सबसे लोकप्रिय कला रूपों में से एक है। जो ढोकरा कलाकृतियाें को उनके मोहक और आकर्षक नमूने अद्वितीय रूप प्रदान करते हैं। कुछ प्रसिद्ध ढोकरा कलाकृतियों में भगवान कृष्ण, देवी दुर्गा और भगवान गणेश जैसे देवताओं की प्रतिमाएं हैं। पर्यटक यहां से ढोकरा कारीगरों द्वारा बनाई गई पशुओं की मूर्तियों, आभूषणों और अन्य उपयोगी वस्तुओं को भी खरीद सकते हैं। यह कला मोम की ढलाई की तकनीक का उपयोग करती है, जो अलौह धातु की ढलाई की सबसे पुरानी तकनीकी है। इन कलाकृतियों को बनाने के लिए, मिट्टी का उपयोग मुख्यतौर पर किया जाता है और इस पर मोम का लेप किया जाता है। इन कलाकृतियों पर मिट्टी के पेस्ट का एक लेप लगाया जाता है और आकार (मॉडल) को कुछ समय के लिए सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है। इसके पश्चात पारंपरिक तरीके से, खोखले सांचे के मोम को पिघले हुआ पीतल से बदल दिया जाता है। बिष्णुपुर के बाजार चूड़ियों, पेंडेंट, कानों की बालियां, पायल, पेन स्टैंड, की-होल्डर और छोटे-छोटे बाक्स जैसी खूबसूरत ढोकरा कलाकृतियों से भरे पड़े हैं।

 ढोकरा कलाकृतियां

बालूचरी साड़ियां

 सुंदर बालूचरी साड़ियां, इस क्षेत्र की पहचान हैं। इन बालूचरी साड़ियों की खरीदारी के बिना बिष्णुपुर की यात्रा अधूरी है। इन साड़ियाें के किनारों (ब़ॉर्डर) और पल्लू पर विस्तृत रूप से महीन कारीगरी मिलती है, जिसके लिए ये साड़ियां प्रसिद्ध हैं। ये साड़ियां पहली बार मुर्शिदाबाद जिले के बालूचर नामक गांव में बनाई गई थीं। बंगाल के नवाब मुर्शिदकुली खान इस शिल्प को ढाका (अब बांग्लादेश) से बालूचर ले आए और स्थानीय बुनकरों को इन साड़ियों की बुनाई के लिए प्रोत्साहित किया। भयंकर बाढ़ से बालूचर गांव के जलमग्न होने के बाद यह उद्योग बिष्णुपुर चला गया।

बालूचरी साड़ियों के किनारों पर पौराणिक कथाओं का चित्रण इन साड़ियों की विशेषता है। बुनकरों को ऐसी एक साड़ी को बुनने में कम से कम एक सप्ताह का समय लगता है। इन साड़ियों की खास बात यह है, कि इसकी एक ही साड़ी की किनारियों पर महाकाव्य महाभारत का एक पूरा प्रसंग भी हो सकता है! इन साड़ियों को बनाने में मुख्य रूप से रेशम का इस्तेमाल किया जाता है। बुनाई पूरी होने के बाद साड़ी को पॉलिश किया जाता है। बदलते समय के अनुसार बिष्णुपुर के कारीगरों ने पर्यावरण के अनुकूल तकनीक तथा हानिरहित रंगों और धागों को अपनाया है।

बालूचरी साड़ियां

पंचमुरा में टेराकोटा की कलाकृतियां

 बिष्णुपुर से 22 किमी की दूरी पर स्थित बांकुड़ा जिले का पंचमुरा गांव टेराकोटा निर्मित उत्पादों के लिए प्रसिद्ध है। इस गांव में टेराकोटा कलाकारों के लगभग 70 परिवार रहते हैं। यहां से सैलानी टेराकोटा की बनी पशु और मानव मूर्तियों से लेकर घर की सजावट और आभूषणों तक की कलाकृतियां प्रचुर मात्रा में खरीद सकते हैं। पर्यटक ग्रामीण शिल्प केंद्र को देखने भी जा सकते हैं, जिसे यूनेस्को के सहयोग से पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा स्थापित किया गया था। इस गांव का दौरा करते समय, पर्यटक कला की पूरी प्रक्रिया के बारे में जान सकते हैं और स्थानीय लोगों के साथ बातचीत भी कर सकते हैं। वार्षिक टेराकोटा महोत्सव यहां का प्रमुख आकर्षण है, जो पर्यटकों को अद्भुत जातीय कला- शिल्प के बारे में जानने का अवसर देता है और वे वहां से खरीदारी भी कर सकते हैं। यहां आने वाले यात्री लोक कला केंद्र में विभिन्न शिल्प-निर्माण कार्यशालाओं में भी भाग ले सकते हैं। माना जाता है कि पंचमुरा की कलाकृतियां, मानव द्वारा मिट्टी की मूर्तियां बनाने के पहले सफल प्रयासों में से एक है। इस कला की उत्पत्ति धार्मिक अनुष्ठानों के एक अंग के रूप में, बांकुरा घोड़े के निर्माण के साथ हुई। बांकुरा घोड़े को भक्ति और बहादुरी का प्रतीक माना जाता है। माना जाता है कि बिष्णुपुर के मल्ल राजाओं के शासनकाल 7वीं शताब्दी ईस्वी से ही, पंचमुरा के लोग इस कला का अभ्यास करते आ रहे हैं।

 पंचमुरा में टेराकोटा की कलाकृतियां