पैठणी साड़ी अपने आप में ही एक लक्जरी है। इसकी अपनी विशेषता यह है कि साड़ी के दोनो तरफ, और पाड़ और पल्लू दोनों पर समान आकृतियां रहती हैं। यह साड़ी, महाराष्ट्र में शादी में वधू के लिबास का एक अहम हिस्सा होती हैं और यह समय के साथ अपनी चमक नहीं खोती हैं, जैसा कि बाकी सिल्क की साड़ियों का होता है। यह साड़ी मुख्य रूप से आसमानी नीले, लाल, पीले, हरे, मैजेंटा और बैंगनी रंगों में आती है, और इसमें दो प्रमुख रंग हावी होते हैं: एक रंग जो साड़ी पर होता है, और दूसरा रंग जो पाड़ और पल्लू पर होता है।यह कला सतवाहन राजवंश के जमाने की है जिनका शासन ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी से दूसरी ईस्वी शताब्दी तक था। चूंकि यह औरंगाबाद के पैठण में उत्पन्न हुई थी, इस महीन रेशमी हथकरघे साड़ी का नाम इस शहर से ही पड़ा है। पैठणी साड़ियां मुगल काल के दौरान प्रसिद्ध हुईं, खासकर औरंगजेब के समय में। ब्रिटिश शासन के दौरान इसको एक झटका लगा। पेशवाओं ने 17 वीं शताब्दी में इस कला को फिर से प्रचलित किया। वास्तव ने उन्होंने साड़ी बुनने वालों को येओला में बसाया, जो आज पैठणी का केंद्र है।बुनाई की ये तकनीक काफी कुछ चित्र बने कपड़े (टेपेस्ट्री) की बुनाई की तरह है। किसी समय साड़ियों को चीन से आने वाले रेशम और स्थानीय असली सोने और चांदी के ज़री धागों से बुना जाता था। आज इन साड़ियों की बुनाई के लिए सूरत की ज़री और बैंगलोर के मलबेरी सिल्क का प्रयोग किया जाता है। एक असली छह गज की पैठणी साड़ी को बनाने के लिए लगभग 500 ग्राम रेशम के धागे और 250 ग्राम ज़री के धागे का उपयोग किया जाता है। नौ गज की साड़ी के लिए ये वजन 900 ग्राम तक बढ़ जाता है।इसे बनाने की प्रक्रिया में कच्चे रेशम के धागों को खनिज, पौधों, सब्जियों और चट्टानों से लिए गए प्राकृतिक रंगों से डाई किया जाता है। इन धांगो को फिर रीलों पर लपेटा जाता है और करघे पर चढ़ाया जाता है। इस प्रक्रिया का सबसे मेहनत वाला काम है करघे को तैय्यार करना है, जिसमें लगभग एक दिन का समय लग जाता है। इसी कदम से उत्पाद के रंग, डिजाइन और बाकी सभी विवरण निर्धारित होती हैं। साड़ी बनाने में लगभग एक या दो महीने का समय लगता है और इसे बुनने में हाथ, पैर और आंखों का सटीक मेलजोल चाहिए होता है। जहां एक रंग के धागे का उपयोग लंबाई की दिशा में किया जाता है, वहीं दूसरे रंग का उपयोग चौड़ाई की दिशा में किया जाता है। इसके चलते साड़ी को रोशनी में चमकने की क्षमता मिलती है और जिस चलते झिलमिलाते सुंदर रंग उभर कर सामने आते हैं। ऐसा लगता है कि मानो साड़ी अपना रंग बदल रही हो।

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