इस गुरुद्वारे का निर्माण सिख साम्राज्य के नेता महाराजा रणजीत सिंह ने उस स्थान पर करवाया था जहांं सिख धर्म के अंतिम गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपनी अंतिम सांस ली थी। एक धार्मिक मान्यता के अनुसार, यह वह जगह है जहांं गुरु गोबिंद सिंह से गुरु ग्रंथ साहिब को 'गुरु' की उपाधि दी थी। गुरु गोबिंद सिंह जी ने यह महसूस किया कि मानव, भले ही कितना भी महान क्यूं न हों, नष्ट हो जाते हैं, लेकिन गुरु ग्रंथ साहिब में लिखे विचार कभी नष्ट नहीं होंगे। गुरु गोविंद सिंह जी ने पवित्र ग्रंथ पर 'गुरु' की उपाधि देते हुए नान्देड़ को 'अभचलनगर' यानी एक दृढ़ शहर की उपाधि दी। 'सचखंड' नाम का शाब्दिक अर्थ है सत्य का क्षेत्र।इसे ईश्वर के घर के रूप मे बताया गया था। सिख धर्म के अनुसार, सत्ता के पांच तख्त यानी आसन हैं। यह गुरुद्वारा, जिसे 'तख्त साहिब' के नाम से भी जाना जाता है, उन सभी में सबसे पवित्र है। यह गोदावरी नदी के पास स्थित है। अद्भुत सफेद संगमरमर से बना, इसके मुख्य मंदिर के गुंबद पर सोने की परत चढ़ी है। इस परिसर में दो और मंदिर हैं-पहला है बुंगा माई भागो जी, जिसमें गुरु ग्रंथ साहिब है, और दूसरा पंज प्यारे (पांच प्यारे) में से दो -अंगीता भाई दया सिंह और धर्म सिंह का है। इस दो मंजिला परिसर की सजावट अमृतसर के हरमंदिर साहिब यानी स्वर्ण मंदिर के समान है। भीतर के कमरे को अंगीठा साहेब कहा जाता है। इसकी दीवारें सुनहरी परतों से ढकी हुई हैं। यहां संरक्षित गुरु गोबिंद सिंह की वस्तुओं में एक सोने का कृपाण, एक मैचलौक बंदूक, एक जड़ाऊ इस्पात की ढाल और पांच सुनहले तलवार शामिल हैं। गर्भगृह को संगमरमर से सजाया गया है जो फ़ूलों की आकृतियों के साथ जड़ा हुआ है। दीवारों और छतों को प्लास्टर और टुकरी वर्क से सजाया गया है। दिन के दौरान, गुरु ग्रंथ साहिब को बाहर लाया जाता है और गर्भगृह के सामने एक कमरे में रखा जाता है। रात के समय इसे वापस गर्भगृह में रख दिया जाता है।

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