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हरी-भरी पहाड़ियों की गोद में फैली, औरंगाबाद की गुफाएं किसी भी इतिहासकार के लिए काफी दिलचस्प विषय हैं। शहर के उत्तर में स्थित, 12 बौद्ध गुफाओं का एक समूह हैं जो लगभग तीसरी शताब्दी तक पुरानी हैं। हरी-भरी पहाड़ियों के बीच छिपी हुई इन रहस्यमयी गुफाओं की खूबसूरती, यहां की वास्तुकला और मूर्तिकला में तांत्रिक प्रभावों में देखा जा सकता है। इनमें से अधिकतर गुफाएं, विहार यानी आवासीय कक्ष हैं। विशेषज्ञों के अनुसार तीसरी और सातवीं गुफाएं सबसे आकर्षक हैं और उन्हें देखना न भूलें। इसके अलावा, पहली और तीसरी गुफाएं बाद के महायान काल की हैं। भूतल योजना की बात करें तो इसकी स्तंभों का खाका और इसके विस्तृत विवरण, अजंता की 21वीं और 24वीं गुफाओं के समान हैं। पश्चिमी समूह में पहली से पांचवी गुफाएं तक हैं, जबकि पूर्वी समूह में छठी से दसवी गुफाएं तक हैं। चौथी गुफा एक चैत्य है, जो अपने तरह की एकमात्र गुफा है और जिन्हें सतवाहना काल के आखिरी दौर में काट कर बनाया गया था। पत्थरों को काटकर बनाई गई इन गुफाओं से, यहां के शहरी परिदृश्य और बीबी के मकबरे की शानदार झलक दिखती है।छठी गुफा में सजी-धजी महिलाओं की मूर्तियां बनी हुई हैं। आज भी ये मूर्तियां अच्छी स्थिति में हैं और पर्यटकों को उस समय के सौंदर्यकला का आभास कराती हैं। गुफा में एक बुद्ध की और एक गणेश की मूर्ति भी है। सातवी गुफा में गहनों से सजी महिलाओं की मूर्तियां हैं और यहां की शैली उस समय के तांत्रिक बौद्ध धर्म के बढ़ते प्रभाव को दर्शाती है।वर्ष 1847 में जेम्स बर्ड, अपने ऐतिहासिक शोधों के द्वारा औरंगाबाद की गुफाओं का उल्लेख करने वाले पहले व्यक्ति थे। बाद में, जॉन विल्सन और जेम्स बर्गेस ने गुफाओं को महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्मारकों के रूप में इनका विवरण विस्तार के साथ दिया।