अंबाजी

अंबाजी का भव्य मंदिर देवी अम्बा का प्रमुख मंदिर है, जिन्हें देवी दुर्गा का अवतार कहा जाता है। यह हिंदुओं के 51 शक्ति पीठों में से एक है। उन मंदिरों को शक्तिपीठ कहा जाता है, जहां देवी शक्ति के शरीर के अलग-अलग हिस्से गिरे थे)। यह मंदिर नागर ब्राह्मणों द्वारा बनवाया गया था। सफ़ेद संगमरमर से बना यह मंदिर बेहद खूबसूरत है। चाचर चौक नाम के एक खुले वर्गाकार भाग से यह मंदिर चारों तरफ से घिरा हुआ है, यह हवनों (अनुष्ठानिक प्रार्थना) की स्थली है। गर्भगृह की दीवार में एक ताख है जिसे गोख कहते हैं। इसमें वीसो यंत्र रखा गया है। इस वीसो यंत्र पर एक लेख है जिसमें पवित्र ज्यामिति के बारे में बताया गया है। इसे वैदिक टेक्स्ट माना जाता है। इस मंदिर के चांदी की परत वाले भव्य दरवाजे आंतरिक गर्भगृह में भक्तों का स्वागत करते हैं। मंदिर में कोई मूर्ति नहीं है और पुजारी देवी की मूर्ति को दूर से देखने के लिए शिलालेख को ही देवी की तरह सजाते हैं। मंदिर राजस्थान के प्रसिद्ध हिल स्टेशन माउंट आबू से कुछ ही दूरी पर स्थित है।

अंबाजी

श्री पार्श्वनाथ मंदिर, शंखेश्वर

पाटन जिले के शंखेश्वर शहर में शंखेश्वर जैन मंदिर है। भगवान पार्श्वनाथ को समर्पित, यह जैन तीर्थयात्रियों का एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थान है। विक्रम संवत् 1155 में रूपेन नदी के तट पर सज्जनशाह ने शंकेश्वर जैन मंदिर बनवाया था। माना जाता है कभी यहां 52 मूर्तियां हुआ करती थी। आप जो मंदिर आज देखते हैं, उसका निर्माण सन् 1811 में किया गया था। इस मंदिर में हिंदू तीर्थयात्री पौष के दसवें दिन हजारों की संख्या में दो दिनों का उपवास रखकर यहां आते हैं। दीपावली के त्यौहार के महीने में भी तीर्थयात्रियों द्वारा इसी तरह का उपवास रखा जाता है। इस मंदिर का सबसे ज्यादा पसंदीदा आर्कषण मूलनायक भगवान शंकेश्वर की 182 से. मी. ऊंची मूर्ति है।

श्री पार्श्वनाथ मंदिर, शंखेश्वर

रुद्र महालय

सिद्धपुर का एक और प्रसिद्ध मंदिर रुद्र महालय मंदिर है, जिसे रुद्रमल मंदिर भी कहा जाता है। इस मंदिर का निर्माण 10वीं शताब्दी में राजा मूलराज ने करवाया था। किंवदंतियों के अनुसार, संभवतः 12वीं शताब्दी में सिद्धराज जयसिम्हा ने इसका पुनर्निर्माण करवाया था। मंदिर को पहला और सबसे बड़ा चालुक्य मंदिर कहा जाता है। यह एक बहु-मंजिला मंदिर है। इसमें एकादश रुद्रों को समर्पित 11 सहायक मंदिर हैं। उत्खननों से इनमें से कुछ सहायक मंदिरों, एक तोरण, दो ड्यौढ़ियों और मुख्य मंदिर कपिली के चार स्तंभों का पता चला है। इसके बगल में सुंदर तराशे हुए विशाल स्तंभ, विशाल दरवाजा और तोरण मेहराब पाए गए हैं। स्तंभ और तोरण आज मंदिर के एकमात्र अवशेष के रूप में खड़े हैं। उन पर व्यापक और विस्तृत नक्काशी सिद्धपुर के शासकों के समृद्ध इतिहास के प्रमाण हैं।

रुद्र महालय

वराना मंदिर

सामी कस्बे के ग्राम वराना में, श्री खोडियार माताजी का मंदिर स्थित है। इस मंदिर का इतिहास 100 साल पुराना है। मंदिर जाकर आप यहां की अद्भुत आवासीय सुविधाओं के साथ एक नए डिजाइन वाले मंदिर देखेंगे। यह मंदिर देवी खोडियार को समर्पित है, जिनकी पूजा गुजरात के चारण समुदाय के लोग करते हैं। इस देवी को एक योद्धा देवी भी कहा जाता है, जिनका जन्म 700 ईस्वी में हुआ था। पूरे गुजरात, राजस्थान और मुंबई में इस देवी का मंदिर बना हुआ है। यहां पर हर वर्ष हिंदू कैलेंडर के अनुसार माघ महीने में मेला भी लगता है। वराना गांव मेहसाणा-राधनपुर राज्य राजमार्ग पर पाटन से 45 किमी दूर है। इस गांव के निवासी जीविकोपार्जन के लिए अधिकतर फसलें और सब्जियां उगाते हैं।

वराना मंदिर

जैन मंदिर

पाटन, सोलंकी शासन (950-1300 ईस्वी) के दौरान जैनों के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान हुआ करता था। उन्होनें इस क्षेत्र में कई सुंदर मंदिर बनवाए। 100 से भी अधिक संरचनाओं वाला पंचसर पार्श्वनाथ जैन देरसर मंदिरों का सबसे बड़ा समूह है। श्वेत संगमरमर के फर्शों की असाधारण वास्तुकला और पत्थरों की बारीक नक्काशी इसकी विशिष्टता है। उनमें से कपूर महेतानो पादो सबसे प्रसिद्ध है, जो लकड़ी के सुंदर अंदरूनी नक्काशी के लिए प्रसिद्ध है।

कहा जाता है कि मंदिरों के प्रधान निर्माता उदमेहता द्वारा एक दिलचस्प अवलोकन से पाटन के जैन मंदिरों के निर्माण का तरीका बदल गया। एक रात, मेहता ने एक चूहे को जलती हुई मोमबत्ती ले जाते देखा। जिससे उन्हें पता चल गया कि एक छोटी सी दुर्घटना से भी बड़ी आग लग सकती है और पूरा मंदिर जल सकता है। तब से, जैन मंदिरों की संरचना में बदलाव किए गए। फिर पत्थर से मंदिर निर्माण को प्राथमिकता दी गई। मंदिर के शानदार ढांचे को इस तरह खड़ा किया गया जो अपने जटिल नक्काशीदार पैटर्न के कारण सबको मंत्रमुग्ध कर देता है।

जैन मंदिर