छत्रपति शिवाजी महाराज वास्तु संग्रहालय, जिसे पहले प्रिंस ऑफ़ वेल्स संग्रहालय के नाम से जाना जाता था, भारत का एक प्रमुख कला और इतिहास का संग्रहालय है। वर्ष 1900 के दशक में, कलाकारों और आम जनता ने मुंबई (तब बंबई) में एक अच्छा सांस्कृतिक संस्थान बनाने के बारे में सोचा। यह मांग जनता की तरफ से लगातार बढ़ती गई, आखिर में जनता की धनराशि से बॉम्बे प्रेसिडेंसी की तत्कालीन सरकार ने एक संग्रहालय की स्थापना की। वर्ष 1909 में इस संग्रहालय की डिजाइन और निर्माण के लिए वास्तुकार चुनने की एक प्रतियोगिता आयोजित की गई। गेटवे ऑफ इंडिया और बैलार्ड एस्टेट सहित मुंबई के कई स्थलों को डिजाइन करने वाले ब्रिटिश वास्तुकार जॉर्ज विटेट ने इस प्रतियोगिता को जीता। इन्होंने मुगल और ब्रिटिश वास्तुकला को मिलाकर बनाई गई इंडो सरसेनिक शैली को लोकप्रिय बनाया। यह इमारत मुंबई के दक्षिणी सिरे पर क्रिसेंट साइट पर स्थित है। इसकी वास्तुकला में एक बगीचा भी शामिल है जो इसकी मूल योजना को बरकरार रखता है। हॉल के अंदर पतले स्तंभ, नक्काशीदार पवेलियन और इसके ऊपर बनाया गया विशाल गुंबद, एक साथ मिलकर एक सुंदर ज्यामितीय पैटर्न बनाते हैं। रोशनी और वेंटिलेशन के लिए बनाई गई छोटी-छोटी जालियां इस इमारत की खूबसूरती को और भी बढ़ा देती हैं। जॉर्ज विटेट ने नासिक के एक शाही घराने से खरीदी गई मूलतः लकड़ी से बनी धनुषाकार पवेलियन को इमारत की पहली मंजिल पर गोलाकार रेलिंग के रूप में बहुत अच्छे से बनाया है। इस इमारत के गुंबद को बीजापुर के गोल गुम्बज के आधार पर बनाया गया है। यह इमारत आगरा के ताजमहल से प्रेरित है। संग्रहालय में भारतीय उपमहाद्वीप के साथ-साथ चीन, जापान और यूरोपीय देशों की लगभग 50,000 से अधिक विभिन्न कलाकृतियों का संग्रह है। इसके अलावा, इसमें प्राकृतिक इतिहास के अध्ययन के नमूनों का संग्रह भी है। इसके ज्यादा लोकप्रिय प्रदर्शनों में भारतीय मिनिएचर और अन्य महत्वपूर्ण पुरावशेषों का एक विशाल संग्रह है, जिसमें विशेष रूप से एक जाने माने कला संग्रही सेठ पुरुषोत्तम मावजी के संग्रह से हथियार और कवच और मराठा पोशाकें भी शामिल हैं। यह संग्रह कभी पेशवा शासन के सबसे प्रभावशाली मंत्री नाना फड़नवीस के खजाने का हिस्सा थी। संग्रहालय का एक विशेष आकर्षण इसका कला और संरक्षण केंद्र है, जो विरासत संरक्षण और अनुसंधान के लिए प्रसिद्ध है।

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