यह एक ऐतिहासिक महत्व वाला स्मारक है, जो दुनिया के बेहतरीन रेलवे स्टेशनों में से एक है। छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस में रोजाना 3 मिलियन से भी अधिक यात्री आते हैं। महारानी विक्टोरिया के ब्रिटिश राज के पचास वर्ष होने पर गोल्डन जुबली दिवस (वर्ष 1887) पर, उनके सम्मान में इस रेलवे टर्मिनस का नाम 'विक्टोरिया टर्मिनस' कर दिया गया था। बाद में वर्ष 1996 में इसे मराठा साम्राज्य के संस्थापक के सम्मान में 'छत्रपति शिवाजी टर्मिनस' कर दिया गया और वर्तमान (2017) में इसे 'छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस' के नाम से ही जाना जाता है। ये इस उपमहाद्वीप का सबसे पहला टर्मिनस स्टेशन था। इसे ब्रिटिश वास्तुकारों और भारतीय शिल्पकारों ने मिलकर बनाया था। यह विक्टोरियन गोथिक पुनर्जागरण वास्तुकला और पारंपरिक भारतीय वास्तुकला के मेल का एक अनूठा उदाहरण है। इसने उस समय के बॉम्बे को एक अलग पहचान दी थी। ब्रिटिश वास्तुकार एफ डब्ल्यू स्टीवंस द्वारा डिजाइन की गई इस संरचना को, शानदार पत्थर के गुंबद, कैंटिलीवरी सीढ़ियां, सजावटी बुर्ज, अनोखे स्तंभों, नुकीले आर्च, ऊंची छतों और विशाल सजावटी मूर्तियों और नक्काशियों के लिए जाना जाता है। इमारत के मुख्य द्वार पर दो स्तंभ हैं, जिसमें एक पर ब्रिटेन के प्रतीक बैठे हुए शेर की मूर्ति है और दूसरे स्तंभ पर भारत का प्रतीक दुबककर बैठे हुए चीते की मूर्ति है। इसके सामने के हिस्से अनेक मूर्तियों से सजे हैं, जैसे बाहर की ओर झांकते गोरगोइल के सिर, छलांग लगाते ग्रिफ़िन, खुले पंखों वाले मोर और एक नेवले के साथ लड़ता कोबरा। अपनी विस्तृत, जटिल और पत्थर की 3-डी नक्काशी वाली सजावट के कारण, टर्मिनस को बनने में लगभग 10 साल लग गए। सपनों के शहर के नाम से प्रसिद्ध मुंबई में हर दिन सैंकड़ों लोग आते हैं और इसमे से ज़्यादातर यहां ट्रेन के ज़रिए पहुंचते हैं। ये लोग आमतौर पर इसी राजसी और अद्भुत दिखने वाले छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस को सबसे पहले देखते हैं। इनमें से कईयों ने इस विशाल विरासत स्थल के उन पर पड़े प्रभावों के बारे में लिखा है।

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