इस मंदिर की स्थापना वर्ष 1950 में पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य ‘गुरुदेव’ द्वारा 2400 तीर्थ स्थलों से एकत्र पवित्र मिट्टी से की गई थी। इसके बाद उन्होंने यहां चैबीस गायत्री महापुराण का समापन किया, जहां प्रत्येक महापुरुषचार्य में प्रतिवर्ष 2.4 लाख गायत्री मंत्रों का जाप किया जाता है। यह स्थान ‘गायत्री परिवार’ नामक भारत के सबसे बड़े धार्मिक परिवारों में से एक है।
मंदिर के अंदर एक बड़ी यज्ञशाला है, जिसमें अखण्ड अग्नि अर्थात पवित्र ज्योति कहा जलती रहती है। इसे एक संत द्वारा सात सौ वर्ष पूर्व प्रज्वलित किया गया था। गायत्री की मूर्ति के साथ-साथ धार्मिक स्थल पर गुरु देव द्वारा उच्चरित मंत्रों को भी सुरक्षित रखा गया है। वर्ष 1958 में इस यज्ञशाला में एक यज्ञ (अर्थात अग्नि अनुष्ठान) आयोजित किया गया था, जिससे गायत्री मिशन की शुरूआत की गई थी। इसके बाद गुरुदेव के संदेश और भक्तों को उपदेश देने वाले 1000 से अधिक केंद्र स्थापित किए गए थे। जैसे-जैसे अधिक से अधिक अनुयायी जुड़ते गये, मंदिर की मुख्य इमारत में प्रजा नगर या तपोभूमि में बढ़ती हुई आबादी के लिए आवास भी बनाया गया।
इसकी स्वर्ण जयंती के अवसर पर गायत्री तपोभूमि में पूज्य गुरुजी और वंदनीय माताजी के चित्र लगाए गए थे। आप गुरुदेव जी द्वारा अपने जीवन काल में लिखी गई पुस्तकों में से किसी भी पुस्तक को प्रकाशन लागत पर खरीद सकते हैं।

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