उत्तर प्रदेश का पुराना शहर मथुरा पवित्र नदी यमुना के तट पर स्थित है और भारत के सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में से एक है। मथुरा में मंदिरों, प्राचीन घाटों, भूल-भुलैया वाली गलियों से भगवान कृष्ण की कई कहानियां जुड़ी हुई हैं। ऐसा माना जाता है कि यहीं भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था और आज भी उनकी किलकारियां यहां गूंजती हैं। इसीलिए भक्त लोग दूर-दूर से यहां आते हैं।

यह शहर भगवान कृष्ण को समर्पित कई मंदिरों के लिए प्रसिद्ध हैं भगवान कृष्ण, भगवान विष्णु के सबसे प्रसिद्ध और प्रिय अवतारों में से एक हैं। भगवान कृष्ण के जीवन की अलग-अलग घटनाओं के मूर्तिमान होने से यहां दैवीय युग का अहसास होता है। यह शहर देश के सात पवित्र शहरों में से एक माना जाता है। मथुरा शहर अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के कारण हमारी आत्मा को छू जाता है। यह माना जाता है कि माता देवकी और वासुदेव के पुत्र भगवान कृष्ण का जन्म लगभग पांच हजार वर्ष पूर्व इस पवित्र भूमि पर जेल की एक कोठरी में हुआ था।
हिंदू महाकाव्य महाभारत में मथुरा का उल्लेख मिलता है और ईसा पूर्व पहली शताब्दी के दौरान कुछ समय तक यह शक्तिशाली मौर्य साम्राज्य का हिस्सा बना रहा। मौर्य शासन काल में यह फला-फूला और कला के मुख्य केंद्र के रूप में बदल गया। पत्थरों की नक्काशी और मूर्तिकला का कार्य अब मथुरा स्कूल ऑफ आर्ट्स के अंतर्गत आता है, जो ईसा पूर्व पहली शताब्दी और पहली सदी के बीच विकसित हुआ। मौर्य काल के महान सम्राट अशोक ने ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में मथुरा में और उसके आस-पास कोई बौद्ध स्मारकों का निर्माण करवाया था। वास्तव में उस काल में बनाई गई मूर्तियों और नक्कासियों में बौद्ध धर्म के उद्देश्यों को दर्शाया गया है। इनमें से अधिकांश कलाकृतियां बौद्ध मत से प्रेरित हैं और उनमें किसी न किसी रूप में भगवान बुद्ध को दर्शाया गया है। जैसे-जैसे मौर्य शासन का अंत होता चला गया, वैसे-वैसे यहां से भी बौद्ध धर्म का प्रभाव समाप्त होना शुरू हो गया और यह शहर हिंदू मंदिरों का गढ़ बन गया।