इस नगर का एक प्रतिष्ठित पर्यटन स्थलों में से एक उदयगिरि किला है। डे लानोय किला या दिलानी कोट्टई नाम से प्रसिद्ध यह किला त्रावणकोर के शासनकाल का अवशेष है। यह किला लगभग 260 मीटर ऊँची निर्जन पहाड़ियों से घिरा है और इसका राजा की सेनाओं के प्रशिक्षण स्थल के रूप में किया जाता था। शस्त्र निर्माण के लिए बनी हुई भट्टियों के अवशेष इसके प्रमाण हैं। कहा जाता है कि किले के परिसर में 16 फीट लम्बी पीतल की एक बन्दूक पायी गयी थी किन्तु इसे 16 हाथियों और अनेक लोगों को सम्मिलित प्रयास से भी कुछ दूरी तक भी सरकाना सम्भव नहीं हो पाया था। अब इस किले को प्राकृतिक उद्यान में परिवर्तित कर दिया गया है और इसमें अनेक वृक्ष, औषधीय बाग, पक्षी तथा हिरन के बाड़े और मत्स्यालय हैं।

इस किले का निर्माण वेनादु के शासक श्री वीर रविवर्मा (1595-1607 ई.) के शासन काल के दौरान मिट्टी से करवाया गया और बाद में मार्तण्डवर्मा (1729-1758 ई.) के शासन काल के दौरान पत्थरों से इसका पुनर्निर्माण करवाया गया। इसके निर्माण के लिए नांजिलनाडु के नत्तारों ने दान दिया था। यह किला डट कप्तान डे लानोय की छावनी था जिसे युद्ध के दौरान मार्तण्डवर्मा ने बन्दी बना लिया था और बाद में उसे यहाँ रखी तोपों सहित सैन्य साजोसामान का मुख्य कमाण्डर बना दिया। किले के परिसर में बन्दूकें, तोप के गोले, मोर्टार आदि की ढलाई के लिए ढलाई खाने भी बने हुए हैं। 18वीं शताब्दी के अन्त में टीपू सुल्तान की सेनाओं को यहाँ रखने के लिए इस किले का उपयोग जेल के रूप में भी किया गया था।

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