मध्य प्रदेश के बीचोंबीच स्थित ग्वालियर एक राजसी शहर है जो पहाड़ी पर स्थित अपने शानदार किले एवं शोभायमान जय विलास पैलेस के साथ शान से खड़ा हुआ है। बिखरी विरासत संरचनाओं के साथ भारत का दिल कहे जाने वाला ग्वालियर जंगलों का प्रवेश द्वार भी है। यहां अनेक घने वन एवं बाघ अभयारण्य विद्यमान हैं। मज़ेदार बात यह है कि ग्वालियर का इतिहास पौराणिक कथाओं में निहित है। ऐसा कहा जाता है कि आठवीं सदी में स्थानीय राजा सूरज सेन एक बार बीमार पड़ गए थे। उनकी हालत बहुत बिगड़ गई थी, जब ग्वालिप नामक एक साधु ने उन्हें भला-चंगा कर दिया तब इसके एवज़ में सूरज सेन ने आभार प्रकट करते हुए उस संत के नाम पर यह शहर बसाया था। 

यह शहर पहाड़ी पर नाटकीय रूप से स्थित दुर्ग के लिए प्रसिद्ध है, जिसके बारे में मुग़ल सम्राट बाबर ने कहा था कि यह ‘‘भारत में स्थित किलों के बीच यह एक मोती के समान है।‘’ ग्वालियर भारतीय शास्त्रीय संगीत में अतुलनीय प्रतिष्ठा के लिए भी बेहद लोकप्रिय है। संगीत के क्षेत्र में ग्वालियर की बेमिसाल प्रतिष्ठा है, जो भारतीय परंपराओं एवं संगीत की समृद्ध विरासत को सदियों से सहेजकर रखे हुए है। ग्वालियर घराना पुरानी परंपराओं में से एक है तथा अधिकांश शास्त्रीय भारतीय संगीतकार अपनी शैली की उत्पत्ति का पता लगा सकते हैं। तानसेन एवं बैजू बावरा जैसे महान संगीतकारों का संबंध ग्वालियर से ही था।

ग्वालियर कच्छपघाटा, तोमर, मुग़ल, मराठा एवं सिंधिया जैसे अनेक राजवंशों की सत्ता का प्रमुख केंद्र रह चुका है। यह शहर अनेक युद्धों का साक्षी रह चुका है। इनमें से सबसे प्रसिद्ध अंग्रेज़ों एवं भारतीयों के बीच हुआ वह भीषण युद्ध था जो तात्या तोपे एवं झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के नेतृत्व में लड़ा गया था। रानी लक्ष्मीबाई यहीं पर शहीद हुई थीं। तात्या तोपे और लक्ष्मीबाई के किस्से आज भी इस क्षेत्र की पौराणिक कथाओं में मिलते हैं।

ग्वालियर