शानदार ग्वालियर किला तीन किलोमीटर लंबे पठारी भाग पर बना हुआ है। यहां से सारे शहर का अद्भुत नज़ारा देखने को मिलता है, जो देखने लायक होता है। ग्वालियर के आसमान को देखते हुए, आठवीं सदी में बना वास्तुकला का यह नायाब नमूना शहर के एक कोने में प्रहरी के रूप में खड़ा प्रतीत होता है। इस पर सदियों तक सैकड़ों राजाओं का अधिपत्य रहा, इस कारण से समय-समय पर किले के परिसर में अनेक महल, मंदिर एवं अन्य भवनों का निर्माण होता रहा। इनसे विभिन्न राजवंशों का पड़ने वाला प्रभाव परिलक्षित होता है।

इन भवन निर्माणों में, सबसे अधिक लोकप्रिय तेली-का-मंदिर और मानसिंह का महल है। द्रविड़ वास्तुशैली में बना तेली-का-मंदिर उत्कृष्ट नक्काशी से घिरा हुआ है। किला परिसर में यह मंदिर सबसे ऊंचा भवन है, जिसकी ऊंचाई 30 मीटर है। यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है, जो 9वीं सदी में बनाया गया था। इस किले में बने भवनों में से यह सबसे प्राचीन है। इसका ऊंचा-सा प्रवेश द्वार अथवा गोपुरम द्रविड़ वास्तुशिल्प तथा मंदिर की दीवारों पर की गई नक्काशी देश के उत्तरी भाग से प्रेरित लगते हैं। यहां पर बनी भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ की भव्य प्रतिमा यहां का लोकप्रिय आकर्षण है।

मानसिंह का महल, तोमर शासक मानसिंह ने 15वीं सदी में बनवाया था। यह नीले रंग की सिरेमिक टाइलों के डिज़ाइन के लिए लोकप्रिय है। दूर से भी इस महल का प्रवेशद्वार दिख जाता है, उसकी दीवारों पर बने नीले डिज़ाइन इस किले की प्रतिष्ठा है। 

रोचक बात यह है, किला परिसर में प्रवेश करने से पहले ही इसमें बने आकर्षक भवन देखने को मिलते हैं। जैन तीर्थंकरों की अनेक विशाल मूर्तियां किले के भीतर एवं उसके आसपास की चट्टानों पर बनी हुई हैं। इनका निर्माण तोमर राजवंश के राजाओं द्वारा किया गया था। इन भव्य प्रतिमाओं को देखकर किले के मुख्य द्वार से प्रवेश करने वाले किसी भी व्यक्ति के चेहरे पर मुस्कान बिखर जाती है। यहां पर नौ भव्य एवं अनेक छोटी प्रतिमाएं बनी हुई हैं। इनमें पहले तीर्थंकर आदिनाथ का प्रतिनिधित्व करती 17 मीटर ऊंची की खड़ी हुई प्रतिमा भी है, जो परिसर के आसपास स्थित है। 

इन महलों के अवशेषों के आसपास चहलकदमी के दौरान स्नानगृह वाला क्षेत्र भी देखने को मिलेगा, जहां पर राजा एवं रानियां भीषण गर्मी के महीनों में अपने को ठंडा रखते थे। इसके निकट ही जौहर कुंड है, जहां पर शाही घराने की महिलाओं ने 1231 ईस्वी में जौहर किया था, जब ग्वालियर सुल्तान इल्तुतमिश के कब्जा में होने के कगार पर था। इस किले में प्रसिद्ध सिंधिया स्कूल भी स्थित है। 

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