ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे नीलाचल पर्वत पर स्थित है कामाख्या देवी का भव्य एवं प्रसिद्ध मंदिर। यह मंदिर गोवाहाटी की सबसे बड़ी पहचान के रूप में भी प्रचलित है। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 8वीं सदी में किया गया था और यह शहर के प्राचीन मंदिरों में से एक है। यह मंदिर चार भागों में बंटा हुआ है। मंदिर का गर्भ ग्रह दरअसल एक गुफा है, जिसमें देवी की मूर्ति के स्थान पर एक चट्टान की पूजा की जाती है और बाकी के तीन मंडपों को कलंत, पंचरत्न और नटमंदिर के नाम से जाना जाता है। वर्तमान में जो मंदिर है उसका निर्माण आहोम राजवंश द्वारा किया गया था। इस मंदिर की वास्तु कला का एक महत्वपूर्ण हिस्सा यहां के शिखर हैं, जिनपर बहुत बारीकी से अनेकों हिन्दु देवी-देवताओं की मूर्तियां उकेरी गयी हैं। 

पौराणिक कथाओं के अनुसार जब देवी सती के मायके में उनके पति भगवान शंकर का अनादर हुआ तो वह इसे सह नहीं पायीं और क्रोध में आकर उन्होंने यज्ञ कुंड में कूद कर अपने प्राण त्याग दिये थे। भगवान शिव इस घटना से इतने व्यथित हो गये कि वह देवी सती का मृत शरीर अपने कंधों पर लादकर पूरी दुनिया में घूमने लगे, जिससे पूरे ब्रह्मण्ड में हलचल मच गयी। तब महादेव के इस प्रलयकारी क्रोध को शांत करने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से देवी सती के शरीर को छिन्न छिन्न कर दिया और जिन जिन स्थानों पर देवी सती के यह शरीर के टुकड़े गिरे, वह स्थल शक्तिपीठ कहलाए गये। इस स्थान देवी का गर्भ गिरा था। इसलिए यह मंदिर स्त्री शक्ति और समृद्धि का भी प्रतीक माना जाता है। सबसे पवित्र शक्तिपीठों में से एक यह शक्तिपीठ पूरे साल श्रद्धालुओं से भरा रहता है। जून के महीने में यहां प्रसिद्ध अंबूबची मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें और अधिक भारी संख्या में भक्तगण पहुंचते हैं।  

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