भारत में जंगली गधे का एक मात्र घर, जंगली गधा अभ्यारण्य कच्छ के छोटे रण में है। स्थानीय लोग इसे घुडखर कहते हैं। जंगली गधे की पीठ पर काली धारी होती है। इस अभ्यारण्य में लगभग 3,000 जंगली गधे हैं। यह अभ्यारण्य कच्छ की खाड़ी में, कई पक्षियों के प्रवास मार्ग पर स्थित है। इस कारण यह पक्षियों के भोजन और प्रजनन का एक महत्वपूर्ण स्थल है। लगभग 75,000 पक्षी प्रतिवर्ष यहां घोंसला बनाते हैं। यहां रुकने वाले पक्षियों में मिस्र, साइबेरिया, यूरोप, ईरान, और इराक से आने वाले पक्षी हैं।

अभ्यारण्य में पाए जाने वाले अन्य जीवों में 32 स्तनधारी जैसे चिंकारा (भारतीय गज़ेल), दो प्रकार की रेगिस्तानी लोमड़ी (भारतीय और सफेद पैर वाले), सियार, कैरकैल, नीलगाय (एशिया का सबसे बड़ा मृग), भारतीय भेड़िये, कृष्णमृग और धारीदार हाइना शामिल हैं। यह स्थान कोर्सर, स्टोनप्लोवर्स, झींगुरों, बतख, हंस, आइबिस, स्पूनबिल, गोडिट, सैंड-पाइपर, शैंक्स, खादर कुक्कुट, सारस क्रेन, दोनों भारतीय राजहंसों और पेलिकन सहित प्रवासी पक्षियों का भी घर है। यहां पर अकशेरुकियों (रीढ़विहीन) जन्तुओं की 93 प्रजातियां जैसे क्रस्टेशियन, कीट, मोलस्क, मकड़ियां, एनेलिड और जंतु प्लवक, भी पाई जाती हैं।

यह अभ्यारण्य 5,000 वर्ग किमी में फैला हुआ है। इस अभ्यारण्य का विस्तार सुंदरनगर, राजकोट, पाटन, बनासकांठा और कच्छ जिलों में है। यहां आने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर और नवंबर के बीच का समय है।

इस अभ्यारण्य में कई जनजातियां भी रहती हैं। यहां बसी जनजातियों में राबड़ी और भारवास जनजातियों की आबादी बहुत अधिक है। यदि आप अभ्यारण्य में घूमना चाहते हैं तो जीप सफारी अच्छा विकल्प है। लिटिल रण में भारत की सबसे बड़ा लवण क्यारी भी है। आज यह एक फलता-फूलता व्यापार है, इन क्यारियों में नमक की खेती करने की प्राचीन परम्परा है। इतिहास कहता है कि सदियों पहले यह क्षेत्र समुद्र का एक हिस्सा था, भूकंप ने इसे एक शुष्क भूमि में बदल दिया। बाद में, अग्रिया (नमक किसान) नामक एक स्थानीय समुदाय ने देखा कि भूमि में दरार वाली कठोर जमीन के नीचे पानी था। इस पानी में नमक की मात्रा काफी अधिक थी। इस पानी से नमक का उत्पादन करना आसान था। इस तरह, यहां नमक निकालने का व्यवसाय शुरू हुआ।

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