अंबाजी

अंबाजी का भव्य मंदिर देवी अम्बा का प्रमुख मंदिर है, जिन्हें देवी दुर्गा का अवतार कहा जाता है। यह हिंदुओं के 51 शक्ति पीठों में से एक है। उन मंदिरों को शक्तिपीठ कहा जाता है, जहां देवी शक्ति के शरीर के अलग-अलग हिस्से गिरे थे)। यह मंदिर नागर ब्राह्मणों द्वारा बनवाया गया था। सफ़ेद संगमरमर से बना यह मंदिर बेहद खूबसूरत है। चाचर चौक नाम के एक खुले वर्गाकार भाग से यह मंदिर चारों तरफ से घिरा हुआ है, यह हवनों (अनुष्ठानिक प्रार्थना) की स्थली है। गर्भगृह की दीवार में एक ताख है जिसे गोख कहते हैं। इसमें वीसो यंत्र रखा गया है। इस वीसो यंत्र पर एक लेख है जिसमें पवित्र ज्यामिति के बारे में बताया गया है। इसे वैदिक टेक्स्ट माना जाता है। इस मंदिर के चांदी की परत वाले भव्य दरवाजे आंतरिक गर्भगृह में भक्तों का स्वागत करते हैं। मंदिर में कोई मूर्ति नहीं है और पुजारी देवी की मूर्ति को दूर से देखने के लिए शिलालेख को ही देवी की तरह सजाते हैं। मंदिर राजस्थान के प्रसिद्ध हिल स्टेशन माउंट आबू से कुछ ही दूरी पर स्थित है।

अंबाजी

रुद्र महालय

सिद्धपुर का एक और प्रसिद्ध मंदिर रुद्र महालय मंदिर है, जिसे रुद्रमल मंदिर भी कहा जाता है। इस मंदिर का निर्माण 10वीं शताब्दी में राजा मूलराज ने करवाया था। किंवदंतियों के अनुसार, संभवतः 12वीं शताब्दी में सिद्धराज जयसिम्हा ने इसका पुनर्निर्माण करवाया था। मंदिर को पहला और सबसे बड़ा चालुक्य मंदिर कहा जाता है। यह एक बहु-मंजिला मंदिर है। इसमें एकादश रुद्रों को समर्पित 11 सहायक मंदिर हैं। उत्खननों से इनमें से कुछ सहायक मंदिरों, एक तोरण, दो ड्यौढ़ियों और मुख्य मंदिर कपिली के चार स्तंभों का पता चला है। इसके बगल में सुंदर तराशे हुए विशाल स्तंभ, विशाल दरवाजा और तोरण मेहराब पाए गए हैं। स्तंभ और तोरण आज मंदिर के एकमात्र अवशेष के रूप में खड़े हैं। उन पर व्यापक और विस्तृत नक्काशी सिद्धपुर के शासकों के समृद्ध इतिहास के प्रमाण हैं।

रुद्र महालय

जंगली गधा अभ्यारण्य, कोडा

भारत में जंगली गधे का एक मात्र घर, जंगली गधा अभ्यारण्य कच्छ के छोटे रण में है। स्थानीय लोग इसे घुडखर कहते हैं। जंगली गधे की पीठ पर काली धारी होती है। इस अभ्यारण्य में लगभग 3,000 जंगली गधे हैं। यह अभ्यारण्य कच्छ की खाड़ी में, कई पक्षियों के प्रवास मार्ग पर स्थित है। इस कारण यह पक्षियों के भोजन और प्रजनन का एक महत्वपूर्ण स्थल है। लगभग 75,000 पक्षी प्रतिवर्ष यहां घोंसला बनाते हैं। यहां रुकने वाले पक्षियों में मिस्र, साइबेरिया, यूरोप, ईरान, और इराक से आने वाले पक्षी हैं।

अभ्यारण्य में पाए जाने वाले अन्य जीवों में 32 स्तनधारी जैसे चिंकारा (भारतीय गज़ेल), दो प्रकार की रेगिस्तानी लोमड़ी (भारतीय और सफेद पैर वाले), सियार, कैरकैल, नीलगाय (एशिया का सबसे बड़ा मृग), भारतीय भेड़िये, कृष्णमृग और धारीदार हाइना शामिल हैं। यह स्थान कोर्सर, स्टोनप्लोवर्स, झींगुरों, बतख, हंस, आइबिस, स्पूनबिल, गोडिट, सैंड-पाइपर, शैंक्स, खादर कुक्कुट, सारस क्रेन, दोनों भारतीय राजहंसों और पेलिकन सहित प्रवासी पक्षियों का भी घर है। यहां पर अकशेरुकियों (रीढ़विहीन) जन्तुओं की 93 प्रजातियां जैसे क्रस्टेशियन, कीट, मोलस्क, मकड़ियां, एनेलिड और जंतु प्लवक, भी पाई जाती हैं।

जंगली गधा अभ्यारण्य, कोडा

वडनगर

वडनगर गांव का इतिहास 7वीं शताब्दी से शुरू होता है। यहां पर बहुत सारे बौद्ध विहार हैं जिसे दूसरी से सातवीं शताब्दी के बीच बनाया गया था। यहां का सबसे लोकप्रिय बौद्ध विहार अपने स्तूपों के लिए जाना जाता है। इसमें एक खुला केंद्रीय प्रांगण भी है। इस बौद्ध विहार के चारों ओर नौ कक्षों का निर्माण इस तरह से किया गया था कि वे एक स्वस्तिक, एक पवित्र हिंदू प्रतीक के समान एक पैटर्न बनाते हैं। वडनगर अपने खूबसूरत तोरणों या मेहराबों के लिए भी प्रसिद्ध है। लाल और पीले बलुआ पत्थरों से निर्मित 40 फिट की ऊंचाई वाला कीर्ति तोरण इनमें सबसे प्रसिद्ध है।

चीनी यात्री ह्वेनत्सांग के यात्रा वृत्तांतों में इस गांव का उल्लेख मिलता है। यह चीनी यात्री 7वीं शताब्दी में भारत आया था। पुराणों में भी इसका उल्लेख किया गया है। वडनगर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी जन्मस्थान है।

वडनगर

सहस्त्रलिंग तालाब

इसे सहस्त्रलिंग टैंक या सहस्रलिंग तालाब कहा जाता है। इस मानव निर्मित टैंक को दुर्लभ सरोवर (झील) पर बनाया गया है। मध्यकाल में निर्मित, यह सोलंकी या चालुक्य शासन द्वारा शुरू किया गया था। तालाब वर्ष 1084 में सोलंकी काल के सबसे बड़े जलीय निर्माणों में से एक है। यह तालाब उस समय की अभियांत्रिकी (इंजीनियरिंग) का एक बेहतरीन उदाहरण है। इस झील में जिस प्रक्रिया से सरस्वती नदी से पानी आता था, इसे देख सभी आश्चर्य में पड़ जाते हैं। आप यह देख सकते हैं कि चैनल को चतुराई से पत्थर के अन्दर कैसे तराशा गया है, ताकि पानी इकट्ठा हो सके और फिर टैंक में प्रवाहित हो सके। कहा जाता है कि सहस्त्र राजा, तलाब में पानी को स्वतः साफ करने के लिए प्राकृतिक फ़िल्ट्रेशन (छनाई) की पूरी प्रक्रिया अपनाई गई थी।

दीवारों और स्तंभों पर की गई देवताओं की जटिल नक्काशी के कारण यह जलाशय एक कलाकृति की तरह दिखता है। यह स्मारक आज भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा संरक्षित है।

सहस्त्रलिंग तालाब