रानी की वाव

रानी-की-वाव या रानी की बावडी, यूनेस्को का विश्व धरोहर स्थल है। गुजरात के कई स्थल यूनेस्को के संरक्षण में हैं, रानी-की-वाव उसमें से एक है। यह बावडी सरस्वती नदी के तट पर स्थित है। बेहद खूबसूरत इस वास्तुशिल्प चमत्कार का निर्माण रानी उदयमति ने अपने पति चालुक्य (या सोलंकी) वंश के राजा भीम I (950-1300 ईस्वी) की स्मृति में करवाया था।
वास्तुकला की मरु-गुर्जर शैली का यह एक उत्कृष्ट नमूना है। यूनेस्को ने बावडी को ऐसे स्मारक के रूप में माना है जो "बावडी निर्माण में कारीगरों की दक्षता" को प्रदर्शित करती हैं। इसका डिजाइन उल्टे मंदिर की तरह है। यह सात स्तरों वाली सीढ़ियों में विभाजित है। हर स्तर पर बेजोड़ कलात्मक गुणवत्ता की मूर्तियों से सजावट की गई है। इन सातों स्तरों में से चौथा स्तर सबसे गहरा है जो एक आयताकार कुएं में मिलता है। 23 मीटर की गहराई वाला यह 9.5 मीटर, 9.4 मीटर का एक आयताकार कुआं है।

यहां धार्मिक, पौराणिक और धर्मनिरपेक्ष छवि को दर्शाती कुल 500 प्रमुख और एक हजार से अधिक छोटी-छोटी मूर्तियां हैं। अधिकांश मूर्तियां भगवान विष्णु, भगवान राम, भगवान कृष्ण, भगवान नरसिंह, भगवान वामन आदि के विभिन्न रूपों की हैं।

रानी की वाव

सहस्त्रलिंग तालाब

इसे सहस्त्रलिंग टैंक या सहस्रलिंग तालाब कहा जाता है। इस मानव निर्मित टैंक को दुर्लभ सरोवर (झील) पर बनाया गया है। मध्यकाल में निर्मित, यह सोलंकी या चालुक्य शासन द्वारा शुरू किया गया था। तालाब वर्ष 1084 में सोलंकी काल के सबसे बड़े जलीय निर्माणों में से एक है। यह तालाब उस समय की अभियांत्रिकी (इंजीनियरिंग) का एक बेहतरीन उदाहरण है। इस झील में जिस प्रक्रिया से सरस्वती नदी से पानी आता था, इसे देख सभी आश्चर्य में पड़ जाते हैं। आप यह देख सकते हैं कि चैनल को चतुराई से पत्थर के अन्दर कैसे तराशा गया है, ताकि पानी इकट्ठा हो सके और फिर टैंक में प्रवाहित हो सके। कहा जाता है कि सहस्त्र राजा, तलाब में पानी को स्वतः साफ करने के लिए प्राकृतिक फ़िल्ट्रेशन (छनाई) की पूरी प्रक्रिया अपनाई गई थी।

दीवारों और स्तंभों पर की गई देवताओं की जटिल नक्काशी के कारण यह जलाशय एक कलाकृति की तरह दिखता है। यह स्मारक आज भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा संरक्षित है।

सहस्त्रलिंग तालाब

बिन्दु सरोवर, मटरू तर्पण स्थल, सिद्धपुर

सिद्धपुर सरस्वती नदी के तट पर स्थित है। पाटन जिले में स्थित, यह सिद्धपुर तालुका का मुख्यालय है। यह शहर मंदिरों, कुंडों, आश्रमों और अन्य पवित्र संरचनाओं के कारण एक पवित्र स्थल है। बिंदु सरोवर यहां के मटरू तर्पण स्थल में स्थित एक प्राचीन बावडी है। यह भारत की पांच सबसे पवित्र और प्राचीन झीलों में एक है। सरोवर ज्यादातर लोग अपनी मां का अंतिम संस्कार करने आते हैं। हिन्दू परंपरा के अनुसार सिद्धपुर मटरूगया तीर्थ के नाम से भी जाना जाता है। यहां पुत्र अपनी माता का ऋण चुका सकता है, आभार प्रकट कर सकता है। बिंदु सरोवर "पिंड दान" करने के सबसे पसंदीदा स्थलों में से एक है। पिंड दान एक हिंदू प्रथा है जो अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति से के लिए किया जाता है।

बिन्दु सरोवर, मटरू तर्पण स्थल, सिद्धपुर

वडनगर

वडनगर गांव का इतिहास 7वीं शताब्दी से शुरू होता है। यहां पर बहुत सारे बौद्ध विहार हैं जिसे दूसरी से सातवीं शताब्दी के बीच बनाया गया था। यहां का सबसे लोकप्रिय बौद्ध विहार अपने स्तूपों के लिए जाना जाता है। इसमें एक खुला केंद्रीय प्रांगण भी है। इस बौद्ध विहार के चारों ओर नौ कक्षों का निर्माण इस तरह से किया गया था कि वे एक स्वस्तिक, एक पवित्र हिंदू प्रतीक के समान एक पैटर्न बनाते हैं। वडनगर अपने खूबसूरत तोरणों या मेहराबों के लिए भी प्रसिद्ध है। लाल और पीले बलुआ पत्थरों से निर्मित 40 फिट की ऊंचाई वाला कीर्ति तोरण इनमें सबसे प्रसिद्ध है।

चीनी यात्री ह्वेनत्सांग के यात्रा वृत्तांतों में इस गांव का उल्लेख मिलता है। यह चीनी यात्री 7वीं शताब्दी में भारत आया था। पुराणों में भी इसका उल्लेख किया गया है। वडनगर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी जन्मस्थान है।

वडनगर