पीपर एक्सचेंज

जब आप इंटरनेशनल पीपर एक्सचेंज में जाते हैं एक अनूठा अनुभव आपके इंतजार में होता है। यह दुनिया में एकमात्र जगह है जहां काली मिर्च एक विनिमय मुद्रा है। ज्यू टाउन में स्पाइस मार्केट के पास स्थित, यह केरल राज्य का एकमात्र ऑनलाइन वस्तु विनिमय केंद्र भी है। यह 1957 में स्थापित किया गया था और आज तक प्राचीन वस्तु विनिमय प्रणाली की पद्धति यहां चलती है। पर्यटक यहां से विभिन्न सुगंधित किस्मों की काली मिर्च और अन्य दिलचस्प मसालों की खरीदारी कर सकते हैं।

कोच्चि में मसाला व्यापार अनिवार्य रूप से यहूदियों द्वारा चलाया जाता था, जो लंबे समय से यहां बसे थे। हालांकि, ब्रिटिश शासन समाप्त होने और इज़राइल राष्ट्र बनने के बाद, यहूदियों ने अपने मसाला गोदामों को छोड़ दिया और इज़राइल चले गए। आज, उस संस्कृति के केवल अवशेष मौजूद हैं और पर्यटक को सड़क पर टहलते हुए उस समृद्ध विरासत का पता लगता है, क्योंकि तब वे अदरक और काली मिर्च की खुशबू में सांस लेते हैं।

पीपर एक्सचेंज

परेड ग्राउंड

चार एकड़ के क्षेत्र में फैला परेड ग्राउंड वह स्थान है जहां ब्रिटिश, डच और पुर्तगालियों ने अपने सैन्य अभ्यास और परेड किए। परेड ग्राउंड पुर्तगाली निर्माण का एक हिस्सा था जहां वे अपने शस्त्र जमा करते थे। इस मैदान का उपयोग कभी पुर्तगाली और डच उपनिवेशवादियों द्वारा हॉकी और फुटबॉल के मैदान के रूप में किया जाता था, जबकि अंग्रेजों ने इसे क्रिकेट पिच के रूप में इस्तेमाल किया था। औपनिवेशिक शासन के दौरान, मैदान में पुर्तगालियों, डचों और ब्रिटिशों के झंडे फहराए गए। स्वतंत्रता के बाद, भारतीय तिरंगे को फहराने के लिए ब्रिटिश यूनियन जैक को उतारा गया था, और तब से वहां नौसेना और स्थानीय क्लबों के बीच हॉकी मैच नियमित रूप से आयोजित किए जाते रहे हैं। राष्ट्रीय स्तर के कुछ फुटबॉल टूर्नामेंट भी यहां खेले गए हैं। आज, मैदान उन लोगों के लिए एक क्षेत्र है जो फुटबॉल और क्रिकेट खेलने आते हैं। कोच्चि-मुज़रीस बिन्नाले, कोच्चि का एक अंतरराष्ट्रीय समकालीन कला उत्सव का उद्घाटन भी यहीं किया गया था। 

परेड ग्राउंड

मट्टनचेर्री

मसाले, हस्तशिल्प, संस्कृति और भोजन का एक मिश्रण, कोच्चि में मट्टनचेर्री शायद सबसे जीवंत स्थान है। इसके बारे में जानना है तो इसकी हलचल भरी सड़कों पर टहलें और सुगंधित मसालों की गंध को महसूस करते हुए, पारंपरिक व्यंजनों का स्वाद लें। हर मोड़ पर संस्कृति और परंपरा हर मोड़ पर आपको यहां बिखरी नजर आएगी। यह बात विशेष रूप से चमकीले रंग की दीवारों से स्पष्ट होती है जो आधुनिक कला के उत्कृष्ट रूप की तरह दिखते हैं। एक प्रमुख आकर्षण मट्टनचेर्री पैलेस या डच पैलेस है, जो केरल का एक सुंदर संयोजन और वास्तुकला की औपनिवेशिक शैली है। एर्नाकुलम से लगभग 12 किमी दूर, यह महल 1545 ई. में पुर्तगालियों द्वारा कोच्चि वंश के वीरा केरल वर्मा को उपहार में देने के लिए बनाया गया था। चूंकि महल में डच शासन के दौरान कई नवीकरण हुए, इसलिए इसे डच पैलेस के रूप में जाना जाने लगा। पर्यटक इसकी लंबे और विशाल हॉल और दीवारों पर सुशोभित भित्ति-चित्रों की प्रशंसा किए बिना नहीं रह पाते हैं। इनमें से कुछ रामायण और महाभारत जैसे भारतीय महाकाव्यों के दृश्य प्रदर्शित करते हैं। दो मंजिला इस इमारत में महान कवि, कालिदास की कुछ रचनाएं भी हैं। पर्यटक कोचीन के शासकों द्वारा जारी शाही टोपी और सिक्कों के साथ-साथ, कोचीन के शासकों के बड़े आकार के चित्रों, शीशों, तलवारों, खंजर और पंखों से अलंकृत भालों के द्वारा शाही जीवन शैली की झलक भी पा  सकते हैं।

मट्टनचेर्री

फोर्ट इमैनुअल

भारत में बना पहला यूरोपीय किला, फोर्ट इमैनुअल 1503 में पुर्तगालियों द्वारा बनाया गया था। फोर्ट कोच्चि में स्थित, यह कभी कोच्चि के शासक और पुर्तगाल के सम्राट के बीच गठबंधन का प्रतीक था। समुद्र तट के किनारे एक भव्य इमारत, इसे देख मन में दिलचस्पी पैदा होती है। इसके आकर्षक खंडहर पुर्तगाली राजघराने और उस समय की स्थापत्य कला को दर्शाते हैं।

किंवदंती है कि कोच्चि के शासक द्वारा 1500 में पुर्तगालियों का स्वागत किया गया था। राजा के साथ एक संधि पर हस्ताक्षर करने के बाद, पुर्तगालियों ने धीरे-धीरे अपनी शक्ति का विस्तार करना शुरू कर दिया और भारत में पहला यूरोपीय शहर सांता क्रूज़ सिटी बनाई। डच उपनिवेशवादियों द्वारा कब्जा किए जाने तक यह शहर एक पुर्तगाली गढ़ रहा।

फोर्ट इमैनुअल

क्लॉक टॉवर

कोच्चि में मट्टनचेर्री क्षेत्र के परिदृश्य पर शानदार क्लॉक टॉवर घूमता है। यह परदेसी सिनागॉग के ठीक बगल में स्थित है, जो एक अन्य प्रसिद्ध स्थल चिह्न है। 45 फुट ऊंची इस इमारत में चार अग्रभाग हैं जो हिब्रू, लैटिन और मलयालम में लिखे संख्या-सूचक-शब्दों से चिह्नित हैं, जिसमें से एक भाग खाली है। टॉवर का डायल जो महाराजा के चेहरे की ओर है, मलयालम संख्या-सूचक-शब्द हैं, एक जो आराधनालय की ओर है उसमें हिब्रू संख्या-सूचक-शब्द हैं और तीसरे में रोमन। ऐसा यहूदी, लैटिन और मलयाली आबादी के एक उदार मिश्रण के रूप में किया गया था, जो इस क्षेत्र को अपना निवास मानते थे। गुजरते वक्त पर सभी समुदायों के लोगों का ध्यान खींचने के लिए, टावर जो प्रत्येक घंटे के बाद बजता है, को विभिन्न भाषाओं में चिह्नित किया गया था। क्लॉक टॉवर बनाने का काम 1760 में एक प्रसिद्ध स्थानीय व्यवसायी, ईजेकील राहबी द्वारा सौंपा गया था और 1930 तक यह काम करता रहा था।

जब आप आराधनालय में जाने के लिए लेन में मुड़ते हैं, तो टॉवर आपके ठीक सामने होता है और पहला विचार जो मन में आता है वह यह है कि वास्तव में जब घड़ी चलती होगी, तो कैसी लगती होगी!

क्लॉक टॉवर

डच कब्रिस्तान

फोर्ट कोच्चि बीच पर स्थित डच कब्रिस्तान देश का सबसे पुराना कब्रिस्तान है। उस समय की डच वास्तुकला को दर्शाते हुए, कब्रिस्तान  ऊंची दीवारों से घिरा हुआ है। एक प्राचीन स्तंभ उसके प्रवेश द्वार पर खड़ा है जिस पर वर्ष 1724 अंकित है। कब्रिस्तान में 104 स्मृति-लेख  और मकबरे हैं जो डच और ब्रिटिश राष्ट्रीयता के सैकड़ों लोगों के प्रामाणिक रिकॉर्ड का ब्यौरा देते हैं। कई कब्रें ग्रेनाइट और लाल मिट्टी से बनी हैं और जिन पर क्रास का चिह्न नहीं है। बड़े और साथ ही छोटे मकबरे भी हैं और स्मृति-लेखों पर जो शिलालेख हैं वे पुरानी डच लिपि में हैं। ऐतिहासिक स्रोतों के अनुसार, यहां पर दफनाया गया आखिरी व्यक्ति था कैप्टन जोसेफ एथेलबर्ट विनकलर, जिसे 1913 में दफनाया गया था।

डच कब्रिस्तान

एसएनसी मेरीटाइम म्यूजियम

भारतीय नौसेना के लिए एक संबोधन कविता, मेरीटाइम म्यूजियम देखने योग्य एक शानदार स्थल है जो फोर्ट कोच्चि में आईएनएस द्रोणाचार्य के भीतर स्थित है। संग्रहालय में प्रवेश करते ही, आपको दोनों तरफ लगे लकड़ी के बोर्ड दिकाई देते हैं जो भारतीय नौसेना के 712 सीई से लेकर वर्तमान विकास के बारे में बताते हैं। संग्रहालय की दीर्घाओं को पुराने बंकरों में स्थापित किया गया है। एक बंकर में   केरल के इतिहास की झलक देखने को मिलती है, तो दूसरा नौसेना के समृद्ध इतिहास और सिंधु घाटी सभ्यता के समय से भारत के समुद्री इतिहास को चित्रित करता है। संग्रहालय का एक आकर्षण यूरोपीय लोगों द्वारा कोंकण तट तक पहुंचने के लिए उठाए गए समुद्री मार्ग का एक विस्तृत नक्शा है। आपको वहां प्रसिद्ध पुर्तगाली खोजकर्ता, वास्को डी गामा, और महान समुद्री योद्धा, कुंजली मारककर के मॉडल भी देखने को मिलेंगे, जिन्होंने पुर्तगाली नौसेना के खिलाफ बहादुरी से लड़ाई लड़ी थी। संग्रहालय में पूरे देश में किए गए जहाज-निर्माण पर विस्तृत साहित्य के अभिलेखागार भी हैं। इसके अलावा, पाकिस्तान, कारगिल युद्ध और गोवा मुक्ति के साथ 1965 और 1971 के युद्धों में भारतीय नौसेना के योगदान का विस्तृत प्रदर्शन भी वहां देखा जा सकता है। इसे इतिहास के अलग-अलग समय के झंडों, रैंक बैज, वर्दी, नौसेना के पुरस्कारों और विभाजन के दौरान अपने पाकिस्तानी समकक्षों द्वारा नौसेना को दिए गए एक स्मृति चिन्ह के रूप में दिखाया गया है। स्मृति चिन्ह पर लिखा है, "अलविदा और गुड लक।" पर्यटकों यहां शस्त्रागार, नौसेना के मॉडल और अन्य उपकरण भी देख सकते हैं।समुद्री इतिहास के बारे में जागरूकता पैदा करने के उद्देश्य से 2001 में यह संग्रहालय बनाया गया था।

एसएनसी मेरीटाइम म्यूजियम

केरल ललिता कला अकादमी

1962 में स्थापित, यह ललित कलाओं के लिए एक अकादमी है जिसे कला और कलात्मक विरासत को बढ़ावा देने के लिए स्थापित किया गया था। अकादमी का उद्देश्य संस्कृति, चित्रकला, प्लास्टिक और दृश्य कला को प्रोत्साहित करना है। यह संस्कृति विभाग के राज्य के तहत संस्कृति के कामकाज का एक स्वायत्त संस्थान है। त्रिशूर में अकादमी की संरचना, एक वास्तुशिल्प चमत्कार है। पर्यटक वहां केसीएस पन्निकर और स्वर्गीय टीके पद्मिनी जैसे प्रसिद्ध चित्रकारों द्वारा बनाए गए चित्रों को भी देख सकते हैं। केरल में सांस्कृतिक और कला चर्चा और कार्यक्रमों का केंद्र, अकादमी एक अनूठा मंच प्रदान करती है जहां अनुभवी कलाकार, नए कलाकारों के साथ बातचीत कर सकते हैं। अकादमी मूर्तिकला, फोटोग्राफी, चीनी मिट्टी की चीज़ें, ग्राफिक्स और चित्रों जैसी दृश्य कला को विकसित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

केरल ललिता कला अकादमी

म्यूजियम ऑफ केरल हिस्ट्री

एडापल्ली क्षेत्र में स्थित, म्यूजियम ऑफ केरल हिस्ट्री, में जब आप प्रवेश करते हैं तो सबसे पहले नजर आती है ऋषि परशुराम की मूर्ति। जिनके बारे में माना जाता है कि उन्होंने केरल राज्य को समुद्र से बाहर निकाला है। जैसे-जैसे आप आगे बढ़ते हैं, आपको केरल के इतिहास के विभिन्न चरणों से संबंधित कई दिलचस्प प्रदर्शन दिखाई देते हैं। नवपाषाण से आधुनिक युग तक, विकास को बड़ी-बड़ी आकृतियों के माध्यम से दर्शाया गया है। संग्रहालय में तीन गैलरी हैं- म्यूजियम ऑफ केरल हिस्ट्री, गैलरी ऑफ मॉडर्न आर्ट, और डऑल्स म्यूजियम। म्यूजियम ऑफ केरल हिस्ट्री सबसे पुराना है और 36 चित्रावलियों के माध्यम से केरल के इतिहास के बारे में बताता है। गैलरी ऑफ़ मॉडर्न आर्ट में भारत के कुछ आधुनिक कलाकारों जैसे राजा रवि वर्मा, एमएफ हुसैन, एफ एन सूजा, रामकिंकर बैज आदि के द्वारा बनाईं लगभग 230 कृतियों का संग्रह है। डॉल्स म्यूजियम में लगभग 150 गुड़िया हैं जो भारत की संस्कृति व नृत्य परंपराओं को दर्शाती हैं। एक अविश्वसनीय कार्यक्रम है अंग्रेजी और मलयालम में होने वाला लाइव साउंड और लाइट शो, जिसे भूल कर भी आप देखने से चूक नहीं सकते हैं।

म्यूजियम ऑफ केरल हिस्ट्री

बिशप हाउस

फोर्ट कोच्चि में परेड ग्राउंड के पास एक छोटी सी पहाड़ी पर बिशप हाउस एक वास्तुशिल्प चमत्कार है। बड़े-बड़े गॉथिक मेहराब और एक बगीचे तक पहुंचने के लिए बना गोलाकार रास्ता, मुख्य द्वार तक घुमावदार पथ, देखने वाले को सम्मोहन में बांध लेता है। अन्य उल्लेखनीय विशेषताएं हैं इसका गलियारों का चक्रव्यूह, विशाल बैठकें, रंगीन कांच की खिड़कियां, लकड़ी की सीढ़ी, मुख्य सीढ़ी के पास एक संगमरमर की पट्टिका आदि। घर की दीवारों पर 36 उत्कृष्ट चित्र  सजी हैं जो ऐतिहासिक घटनाओं को दर्शाते हैं जिसके कारण केरल में कैथोलिक चर्च का निर्माण हुआ। घर को 1506 में पुर्तगाली गवर्नर के निवास के रूप में बनाया गया था। इसके बगल में, इंडो-पुर्तगाली संग्रहालय है, जिसमें अनमोल कलाकृतियां हैं, जो कोचीन बिशपक्षेत्र के तहत विभिन्न चर्चों से एकत्र की गई हैं।

बिशप हाउस

पल्लीपोर्ट (पल्लीपुरम) किला

भारत में सबसे पुराने जीवित यूरोपीय किलों में से एक, 1503 में पुर्तगालियों द्वारा बनाया गया, पल्लिपपुरम किला, वाइपेन द्वीप पर, शहर का एक प्रतिष्ठित स्थल है। यूरोपीय धरोहरों के संरक्षण के लिए, किले को एक षट्भुजीय आकार में बनाया गया है और चूने, लाल मिट्टी और लकड़ी के साथ बना हुआ है। संरचना की वास्तुकला उल्लेखनीय है क्योंकि इसे पांच फीट की ऊंचाई पर एक निचले तल पर बनाया गया है। किले की संरचना ऐसी है कि किले के चारों ओर सैन्यवासों को नियंत्रित करने के लिए बंदूकें लगाना आसान होता। इसके अंदर, एक विशाल खुला स्थान है जो तहखाने की ओर जाता है। स्थानीय लोगों के अनुसार तहखाना एक सुरंग है जो आपको कोडुंगलोर के चेरमन मस्जिद में ले जाती है।

पल्लीपोर्ट (पल्लीपुरम) किला

पियर्स लेस्ली बंगलो

शहर में एक अनूठा और आकर्षक स्थान, पियर्स लेस्ली बंगलो, 1892 में बनाया गया था। शहर की सबसे लोकप्रिय विरासत इमारतों में से एक, यह अपने स्थापत्य वैभव के कारण दूर-दूर से पर्यटकों को आकर्षित करता है। केरल, डच और पुर्तगाली शैलियों का एक अनूठा समायोजन, इस हवेली में लकड़ी के पैनल लगे हैं जो भूतल की छत की तरह काम करते हैं। मेहराबदार दरवाजे, विशाल कमरे और नक्काशीदार दरवाजे इसकी शान को और बढ़ाते हैं। विशाल आहाते और हवेली के बड़े-बड़े कमरे देख पर्यटक हैरान रह जाते हैं। बंगले में कोडर हाउस और ओल्ड हार्बर हाउस नाम के दो घर हैं, जिनके बरामदों के सामने से पानी बहता है, जो बंगले की शान में चार चांद लगाता है। एक समय में यह इमारत पियर्स लेस्ली एंड कंपनी का कार्यालय हुआ करती थी, जो भारत में कॉफी व्यापारियों का एक प्रमुख समूह था।

पियर्स लेस्ली बंगलो

दरबार हॉल

शहर के केंद्र में स्थित, 100 साल पुराना दरबार हॉल एक शांतिपूर्ण स्थान है, जो ऐतिहासिक आकर्षण से गूंजता है। राजाओं द्वारा आयोजित सम्मेलनों और बैठकें जिस हॉल में हुआ करती थीं, वह एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक स्थल है।

वर्तमान में, इसे दरबार हॉल आर्ट गैलरी के रूप में जाना जाता है। इमारत का अग्रभाग एकदम आडंबरपूर्ण है जिस पर डच संस्कृति का प्रभाव साफ दिखाई देता है। वहां एक चौड़ा बरामदा भी है और  आधुनिक सज्जा और संगमरमर का फर्श है। राजा रवि वर्मा, मनु पारेख, सूजा और पद्मिनी जैसे प्रसिद्ध कलाकारों की पेंटिंग इसकी भीतरी दीवारों पर लटकी हैं। पहली मंजिल केरल ललिता कला अकादमी को दी गई थी, जिसने 1991 में गैलरी ऑफ कंटेम्प्रेरी आर्ट खोली थी। यहां नियमित रूप से कला प्रदर्शनियों भी आयोजित की जाती हैं।

दरबार हॉल

ग्रीनिक्स विलेज

केरल में स्थित यह एक अद्वितीय सांस्कृतिक कला गांव, ग्रीनिक्स विलेज किसी ऐतिहासिक अनुभव से कम नहीं है जो आगंतुकों का परिचय राज्य की पारंपरिक संपदा से कराता है। हर शाम कथकली के प्रसिद्ध नृत्य नाटक, एक मार्शल आर्ट रूप कलारीपयट्टू के साथ, दिखाया जाता है, जो पर्यटकों को विस्मित कर देता है। इसके अलावा, पर्यटक संग्रहालय में एक ऑडियो-विज़ुअल सांस्कृतिक इतिहास, शाम को भारतीय शास्त्रीय नृत्य और सुबह योग कक्षाओं में भी भाग ले सकते हैं। एक आर्ट गैलरी, रेस्तरां, एक किताब की दुकान, केरल के शिल्प और कुटीर उद्योग की छाप और दुर्लभ वस्त्ओं का संग्रह करने वाली एक दुकान विलेज के आकर्षण को बढ़ाती है। ग्रीनिक्स की स्थापना 2006 में हुई थी और यह कई कारीगरों का घर भी है। इसे 'डिपार्टमेंट ऑफ टूरिज्म, केरल स्टेट' की ओर से 'बेस्ट इनोवेटिव प्रोजेक्ट' का पुरस्कार भी दिया गया है।

ग्रीनिक्स विलेज

फोर्ट कोच्चि

औपनिवेशिक आकर्षण में डूबा, फोर्ट कोच्चि भारत में पहली यूरोपीय बस्ती में से एक था। फ़ॉसे स्ट्रीट के दक्षिण में स्थित, फोर्ट कोच्चि एक शांत विराम स्थल है जो घने पेड़ों और रंगीन फूलों से सजी संकरी गलियों से घिरे पुराने घरों की खिड़कियों से झांकता प्रतीत होता है। 1506 में पुर्तगालियों द्वारा निर्मि,त किला आज भी अपने गौरवशाली अतीत की झलक दिखाता है। विशेष रूप से फोर्ट कोच्चि की सड़कें ऐसी हैं जो संस्कृति और विरासत को से प्रदर्शित करती हैं जिसे देख कोई भी विस्मय से भर जाता है। कुछ लोकप्रिय देखने लायक जगहे हैं प्रिंसेस स्ट्रीट, बर्गर स्ट्रीट, रोज़ स्ट्रीट, टॉवर रोड आदि। आप मट्टेंचेरी सड़कों जैसे कि ज्यू स्ट्रीट, पैलेस रोड और टीडी स्कूल रोड पर आराम से टहलने का आनंद ले सकते हैं, जो आपको एक अलग ही युग में ले जाते हैं। फोर्ट कोच्चि बीच, पास ही में स्थित है, जो यहां का एक और आकर्षण है। शांत पानी से घिरा सुनहरी रेत का बिछौना, फोर्ट कोच्चि बीच, शहर के सबसे अच्छे प्राकृतिक स्थलों में से एक है। झूमते ताड़ के वृक्षों और घनी झाड़ियों के साथ पंक्तिबद्ध, यह आसपास का एक सुरम्य दृश्य प्रस्तुत करता है। यह समुद्र तट रोमांच पसंद करने वाले लोगों को भी अपनी ओर खींचता है, जो स्नॉर्कलिंग, विंडसर्फिंग, कैनोइंग, कयाकिंग, स्कूबा डाइविंग, कैटरमैन नौकायन और पैरासेलिंग जैसे खेलों में शामिल हो सकते हैं। शायद समुद्र तट का सबसे अच्छा आकर्षण सूर्यास्त का शानदार दृश्य है जिसे यहां से देखा जा सकता है। सूरज का जलता हुआ गोला जब  शांत पानी में डूबता है और आकाश को लाल और नारंगी रंग का एक फलक बना देता है, तो एक अलौकिक दृश्य होता है। चाइनीज फिशिंग नेट और नौकायन जहाज इस सुरम्य दृश्य में और इजाफा करते हैं। कई यूरोपीय शैली के बंगले तटरेखा पर बने हैं, और तटरेखा के पास कई छोटे-छोटे स्टॉल हैं, जहां से ताज़ी पकड़ी गई मछलियों से बने मुंह में पानी लाने वाले पारंपरिक व्यंजनों का स्वाद लिया जा सकता है।

फोर्ट कोच्चि

मट्टनचेर्री पैलेस

मुख्य एर्नाकुलम से 10 किमी दूर स्थित, मट्टनचेर्री पैलेस या डच पैलेस, औपनिवेशिक प्रभावों के साथ मिश्रित मलयालम शैली की वास्तुकला का सबसे अच्छा उदाहरण है। इसके अंदरूनी भाग सुंदर रूप से सुशोभित हैं, जिनमें 17 वीं और 18 वीं शताब्दी के महाकाव्यों रामायण और महाभारत के दृश्यों का चित्रण है। इसके अलावा, पर्यटक 1864 के बाद के चीन के सभी राजाओं के बड़े आकार के चित्रों को भी वहां देख सकते हैं। तलवार, खंजर और कुल्हाड़ियों के अतिरिक्त, पंख, शाही टोपी, कोचीन के राजाओं द्वारा जारी किए गए सिक्के, रूपहले सितारों वाले गाउन, रेशम व पीतल की शाही छतरियों के साथ यहां  डच द्वारा कोचीन के बनाए नक्शे भी यहां रखे हैं। सबसे आकर्षक तो राजा के शयनकक्ष में लगे चित्र हैं जो रामायण की कहानियों का चित्रण करते हैं, राज्याभिषेक हॉल में लगे भित्ति-चित्र हैं जिनमें देवी लक्ष्मी कमल पर चित्रित हैं, भगवान विष्णु, भगवान शिव और अर्धनारीश्वर रूप में देवी पार्वती, भगवान राम का राज्याभिषेक, भगवान कृष्ण का गोवर्धन पर्वत उठाना और अन्य देवी देवताओं के चित्र भी यहां हैं। कोरोनेशन हॉल के सामने वाले कमरे में भगवान शिव, भगवान विष्णु और देवी के चित्र हैं और एक अधूरा चित्र भी, और एक अन्य कमरे में कुमारसंभव के भित्ति-चित्र हैं और प्रसिद्ध कवि कालीदास द्वारा बनाए गए कुछ चित्र भी वहां प्रदर्शित हैं। महल को पुर्तगालियों ने राजा वीरा केरल वर्मा (1809-1828) को उपहार स्वरूप देने के लिए बनाया था। यह डच पैलेस के रूप में जाना जाने लगा क्योंकि डचों ने इसमें कई बदलाव व नवीनीकरण किए थे। महल में शाही परिवार की पीठासीन देवी पझायनन्नूर भगवती (पझायनन्नूर की देवी) का मंदिर भी है। 

मट्टनचेर्री पैलेस

ज्यू टाउन और ज्यू आराधनालय

एक अत्यंत पतली सड़क जो मट्टनचेर्री पैलेस और यहूदी आराधनालय के बीच से निकलता है, ज्यू टाउन, शहर के सबसे पुराने स्थानों में से एक है, जहां किसी समय में यहूदी रहा करते थे। आज, भी यहां बहुत चहल-पहल रहती है और यहां अद्वितीय हस्तशिल्प, सुगंधित मसाले और उत्तम प्राचीन वस्तुएं मिलती हैं। शालोम बोलते हुए जब विक्रेता आपका गर्मजोशी से स्वागत करते करते हुए अभिवादन करते हैं तो आप स्वयं को समृद्ध यहूदी संस्कृति में सराबोर हुआ महसूस करते हैं। वहां से आप यहूदी संस्कृति के स्मारक, पीतल की मूर्तियां, पश्मीना शॉल, चीनी फूलदान, कैंडलस्टिक्स, गुलाब जल छिड़कने वाले पात्र, आदि खरीद सकते हैं। जब दुकानों पर जाएं, तो गर्म कॉफी का एक प्याला पीना मत भूलें। एकदम तरोताज़ा महसूस करेंगे और विभिन्न कैफों में मिलने वाले पारंपरिक व्यंजनों को भी अवश्य खाएं जो दुबारा से बनाए गए मसालों के गोदामों के ऊपर बने हैं। 

किंवदंती है कि कोच्चि के राजा ने वहां व्यापार करने आए यहूदियों को भूमि का एक टुकड़ा दिया था। स्थान को मट्टनचेर्री कहा जाता था क्योंकि 'मट्टन' शब्द एक हिब्रू शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ है दान और मलयालम में 'चेर्री' बस्ती को कहा जाता है। 1341 में पेरियार नदी में बाढ़ आने के बाद, कोच्चि बंदरगाह का निर्माण किया गया, जिसने शहर को मसाला-व्यापारिक केंद्र बनने में मदद की। 1948 में जब तक इजरायल नहीं बना था, तब तक ज्यू टाउन एक प्रमुख यहूदी बस्ती थी। आज, केवल कुछ मुट्ठी भर यहूदी ही यहां रहते हैं।

ज्यू टाउन और ज्यू आराधनालय

बोलगट्टी पैलेस, बोलगट्टी द्वीप

बोलगट्टी पैलेस, बोलगट्टी द्वीप पर स्थित एक डच महल है, और मुख्य भूभाग से थोड़ी ही दूर पर है, जहां नाव की सवारी कर पहुंचा जा सकता है। अब, यह एक हैरिटेज होटल है जिसे केरल पर्यटन विकास निगम (केटीडीसी) चलाता है, और यह शाही जीवन शैली की भव्यता का अनुभव करने का बेहतरीन माध्यम है। 1744 में, एक गुमनाम डच व्यापारी ने बोलगट्टी पैलेस का निर्माण किया था। 1909 और 1947 के बीच, इसने ब्रिटिश रेजीडेंसी के रूप में कार्य किया। पर्यटक वहां एक द्वीप भी देख सकते हैं जिसमें एक गोल्फ कोर्स भी बना हुआ है। बंदरगाह और बंदरगाह के मनोरम दृश्य इस जगह को परिवारों के लिए एक शानदार पिकनिक स्थल बनाते हैं। नियमित नाव सेवा मुख्य भूमि से उपलब्ध है, और पर्यटक हाई कोर्ट जेट्टी से नौका लेकर बोलगट्टी द्वीप तक पहुंच सकते हैं। यह द्वीप गोश्री पुल से अगर होते हुए जाएं तो लगभग 2 किमी की दूरी पर स्थित है।

बोलगट्टी पैलेस, बोलगट्टी द्वीप