कन्याकुमारी से लगभग 85 किमी दूर तिरुनेलवेली भगवान शिव के मन्दिर नैलायप्पर मन्दिर के लिए प्रसिद्ध है जिनकी पूजा लिंगम के रूप में की जाती है। यहाँ उनकी पत्नी पार्वती की भी पूजा की जाती है। विशेष रूप से नवरात्रि के महीनों (हिन्दुओं का नौ दिनों का एक पवित्र त्यौहार) के दौरान यहाँ भारी भीड़ उमड़ती है। यदि आप यहाँ आते हैं तो आप पोंगल, ईस्टर, उत्सवम या वार्षिक त्यौहार तथा सरस्वती पूजा के दौरान आयें। वार्षिक त्यौहार फरवरी या मार्च माह के पुष्य के दिन आत्मशुद्धि तथा दैवीय शक्तियों को प्राप्त करने के लिए मनाया जाता है। यहाँ कांतिमती मन्दिर भी देखने योग्य जो इस शहर में भगवान शिव का सर्वाधिक प्रसिद्ध मन्दिर है। पर्यटक यहाँ वरदराज पेरूमल मन्दिर भी देख सकते हैं जो भगवान विष्णु को समर्पित है। एक अन्य दर्शनीय स्थल कलक्काड मुंडनतुरई टाइगर रिजर्व है जहाँ विभिन्न प्रकार के जीव-जन्तु एवं वनस्पतियाँ पायी जाती हैं। तिरुनेलवेली की यात्रा करते समय प्रसिद्ध तिरुनेलवेली हलवे का स्वाद लेना न भूलें जो तम्बरापर्णी नदी के जल में पकाये गये गेहूँ से बनाया जाता है जो अपने औषधीय गुणों के लिए प्रसिद्ध है। जिला विज्ञान केन्द्र इस नगर का एक अन्य पर्यटन स्थल है जो अनेक पर्यटकों को आकर्षित करता है और विज्ञान तथा तकनीक को विभिन्न रूपों में प्रस्तुत करता है। इस नगर के निकट प्राकृतिक सौन्दर्य का आनन्द उठाने के लिए जलप्रपात तथा पहाड़ियों जैसे कुछ सुन्दर स्थल भी हैं। तिरुनेलवेली यहाँ के स्थानीय हस्तशिल्प के लिए भी प्रसिद्ध है जिसे आप यादगार के रूप में खरीद सकते हैं। तिरुनेलवेली में पर्यटन के लिए अक्टूबर से फरवरी के बीच का समय सबसे उत्तम है।

कहा जाता है कि तिरुनेलवेली शहर 2,000 वर्षों से अधिक पुराना है और ऐसा प्राचीन उपनिवेश माना जाता है जहाँ पाण्ड्यों, मध्य एवं उत्तरवर्ती चोलों तथा उत्तरकाल के पाण्ड्यों, माबार, विजयनगर साम्राज्य, मदुरै नायकों, चाँदा साहब, कर्नाटक राज्य तथा तत्कालीन ब्रिटिश शासकों ने शासन किया। तिरुनेलवेली का मन्दिर नगर तीन तमिल शब्दों-तिरु, नेल और वेली से मिलकर बना है जिसका अर्थ है पवित्र धान की बाड़।

अन्य आकर्षण