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अरावली पहाड़ियों की पृष्ठभूमि के समक्ष भानगढ़ का किला स्थित है। यह किला जयपुर एवं अलवर के बीच में पड़ता है। सरिस्का वन्यजीव अभयारण्य से मात्र 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह प्रेतवाधित स्थल के रूप में प्रसिद्ध है। यद्यपि यह किला वास्तुकला रूपी समृद्ध विरासत एवं सुंदर दृश्यावली के कारण पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है।
इस किले का निर्माण 17वीं सदी में अकबर के नवरत्नों में से एक मानसिंह प्रथम द्वारा अपने पौत्र माधो सिंह प्रथम (1750-1768) के लिए किया गया था। इस किले के परिसर में मंदिर, महल एवं हवेलियां बनी हुई थीं। किले में प्रवेश के लिए चार द्वार बनाए गए थे जिनके नाम लाहौरी गेट, अजमेरी गेट, फुलबारी गेट एवं दिल्ली गेट रखे गए थे।
इस किले से जुड़ी किंवदंतियों में से एक में बताया गया है कि एक बार किले में बाबा बालानाथ नाम के संत रहा करते थे। वह चाहते थे कि उनके घर पर किसी अन्य घर की परछाई भी न पड़े। किंतु राजकुमार ने उनकी इच्छा की अनदेखी करते हुए महल का निर्माण करा दिया, जिसकी परछाई संत के मकान पर पड़ने लगी। इस बात से क्रोधित संत ने शहर को श्राप दिया जिससे कई लोगों की मौत हो गई। एक अन्य कथा के अनुसार सिंघिया नामक एक तांत्रिक काले जादू के माध्यम से भानगढ़ की राजकुमारी को अपने वश में करना चाहता था। यद्यपि वह इसमें असफल रहा और तांत्रिक को मौत की सजा सुनाई गई। ऐसा माना जाता है कि उसने शहर को श्राप दे दिया था। सूर्योदय से पूर्व एवं सूर्यास्त के पश्चात् किसी को भी किले में जाने की अनुमति नहीं है।