अरावली रेंज में स्थित विशाल बाला किला किसी भव्य स्मारक से कम नहीं है। 15 वीं शताब्दी में, मेवात के राजपूत शासक हसन खान मेवाती द्वारा शहर के संरक्षक के रूप में निर्मित यह किला 300 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इसकी संरचना मजबूत है और नाजुक जालीदार बालकनियों व संगमरमर के स्तंभ इसे पूरा आकार देते हैं। किले के आकार की कल्पना इसके छह भव्य द्वारों: पोल, सूरज पोल, लक्ष्मण पोल, चांद पोल, कृष्ण पोल और अंधेरी गेट द्वारा की जा सकती है। पर्यटक इस किले पर चढ़ते हैं और वहाँ से वे अलवर शहर के व्यापक नज़ारे देखते हैं।

बाला किला या युवा किला अपने सुनहरे दिनों के दौरान एक शक्ति केंद्र था और इस क्षेत्र पर शासन करने वाले यादवों, मराठों व कछवाहा राजपूतों जैसे राजवंशों के बीच हस्तगत किया जाता रहा। वास्तव में अलवर शहर की नींव 1775 में कछवाहों द्वारा रखी गई थी जब उन्होंने इस किले पर कब्जा कर लिया था। मुगलों के उदय से पहले राज्य में निर्मित कुछ किलों में से एक यह किला वास्तव में एक खजाने जैसा है। कहा जाता है कि मुगल बादशाह बाबर और अकबर भी यहां रह चुके हैं।

वर्तमान में, बाला किले में एक रेडियो ट्रांसमीटर स्टेशन स्थापित है और सिटी पैलेस परिसर में पुलिस अधीक्षक की अनुमति पर भी किले के कुछ ही हिस्सों का दौरा किया जा सकता है।

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