तंजौर के नाम से प्रसिद्ध तमिलनाडु का तंजावुर शहर, अपने शक्तिशाली और प्राचीन राजाओं की विरासत का प्रतीक है। यह शहर भव्य स्मारकों, शक्तिशाली चोल राजाओं की विरासत और प्राचीन मंदिरों की कलाकृतियों को अपने में समेटे हुए है। इस शहर के बीचों-बीच बृहदेश्वर मंदिर स्थित है, जिसे यूनेस्को ने विश्व धरोहर का दर्जा दिया है। इस मंदिर का निर्माण 11वीं सदी के आरम्भ में द्रविण शैली में किया गया था। यह मंदिर अद्भभुत नक्काशियों, मूर्तियों और हज़ार साल पहले के जीवन का लेखा-जोखा देने वाले शिलालेखों से सुशोभित है। मंदिरों के साथ-साथ यहां के शानदार महल भी हैरान कर देने वाले हैं। ये सभी स्मारक मिलकर तंजावुर शहर की प्राचीन द्रविड़ सभ्यता की गवाही देते हैं।

तंजावुर शहर दक्षिण भारतीय कला और शिल्प का भंडार है। यहां पर पारंपरिक तरीकों द्वारा हाथ से तैयार की गई वस्तुएं जैसे बॉबलहेड डॉल, आध्यात्मिक और दैविक तंजौर पेंटिंग और ताड़ के पत्तों से बनी अनेक चीजे देखने को मिलती हैं। तंजावुर शहर को शास्त्रीय संगीत और भरतनाट्यम् नृत्य के लिए भी जाना जाता है। भारतीय शास्त्रीय संगीत में प्रयोग होने वाले और लोकप्रिय वाद्य यंत्र थविल का आविष्कार भी यहीं हुआ था।

तंजावुर अनेकों शहरों से घिरा हुआ है, जिस कारण चिंदबरम और नागौर जैसे स्थानों तक आसानी से पहुंचा जा सकता। जहां चिंदबरम अपने तिल्लई नटराज मंदिर के लिए प्रसिद्ध है, वहीं तंजावुर से 85 किलो. मी. दूर स्थित नागौर को हज़रत सय्यद शाहुल हमीद की दरगाह के लिए जाना जाता है, जो मुस्लिमों का पूजनीय स्थल है।

कहा जाता है कि, तंजावुर शहर का नाम राक्षस तंजन के नाम पर रखा गया था, जिसका वध भगवान विष्णु ने किया था। तंजन राक्षस की अंतिम इच्छा यह थी कि, इस स्थान का नाम उसके नाम पर रखा जाए और भगवान विष्णु ने उसके इस अनुरोध को स्वीकार कर लिया था।

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