हरे-भरे इलाके में स्थित, राजेंद्र चोल द्वारा स्थापित इस मंदिर में महिषासुरमर्दिनी, नटराज, अर्द्धनारीश्वर और चंडीकेश्वर की नक्काशीदार मूर्तियां हैं। यहां प्रवेश द्वार की रखवाली करने वाले दो राजसी द्वारपाल और नंदी बैल की एक विशाल मूर्ति भी है। चोल मंदिरों की सूची में यह मंदिर यूनेस्को द्वारा घोषित विश्व धरोहर का हिस्सा है, तथा मंदिर की खूबसूरती इसे पर्यटकों के लिए और अधिक आकर्षक बनाती है। यह मंदिर चोल वास्तुकला का एक बेहतरीन नमूना है, तथा चोल राजवंश के शासन काल की अभिन्न अवधि को दर्शाता है। मंदिर में अनोखी और असाधारण गुणवत्ता वाली मूर्तियां मौजूद हैं; भोगसक्ति और सुब्रह्मण्य की कांसे की मूर्तियां, चोल राज में बनी धातु की अदभुत कृतियां हैं। वहीं मंदिर में मौजूद सौर्यपीठ (सोलर ऑल्टर) और आठ देवताओं वाला लोटस ऑल्टर भी बहुत शुभ माना जाता है। राजराज चोल के पुत्र राजेन्द्र चोल के शासन काल (1012-1044 ई.) में गंगैकोंडचोलपुरम चोल साम्राज्य की राजधानी थी। जब राजेन्द्र चोल तंजावुर से 70 किमी दूर गंगैकोंडचोलपुरम आकर बसे, यहां उन्होंने भगवान शिव के लिए बृहदेश्वर मंदिर के समान ही एक मंदिर भी बनवाया। कहा जाता है कि अपनी यात्रा के दौरान, जब उन्होंने कई उत्तरी राज्यों पर विजय प्राप्त की, तो शिव को बलिदान रूप में चढ़ाने हेतु, वह गंगा नदी से पानी लेकर आए थे। अपनी जीत के उत्सव चिन्ह के रूप में, उन्होंने एक द्रव्य स्तंभ की स्थापना की जिसे जलमय स्तंभ भी कहा जाता है। इसी कारण से राजेंद्र चोल को गंगैकोंड़न (गंगा खोदने वाले) के नाम से भी जाना गया, जिसके बाद इस नगर का नाम उन्हीं के नाम पर गंगैकोंड़चोलपुरम पड़ गया। हाल ही में, भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग ने नगर के दक्षिणी-पश्चिमी स्थल पर राजेंद्र चोल द्वारा बनवाए गए और खंडहर हो चुके एक महल का पता लगाया है; वर्तमान में यह क्षेत्र उनके संरक्षण में है। आप जब भी इस शहर में घूमने कि लिए आएं, यहां का दौरा ज़रूर करें।

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