पुरी शहर के पास पर्यटकों को पेशकश करने के लिए आध्यात्मिकता से लेकर साहसिक कार्यों तक कई खजाने हैं। जब इसकी प्रसिद्ध रथ यात्रा हजारों भक्तों को आकर्षित करती है, इसके कई त्योहार और वन्यजीव केंद्र भी यात्रियों के बीच काफी लोकप्रिय हैं।

बेरहामपुर

बेरहामपुर एक जीवंत औद्योगिक शहर है जो भुवनेश्वर से लगभग 171 किमी दूरी पर है। यह चिलिका झील के दक्षिण में स्थित है और यह अपने इकत रेशम वस्त्र उद्योग के लिए प्रसिद्ध है। यह शहर उन कारीगरों के लिए भी जाना जाता है जो पीतल और घंटीधातु के बर्तन, जानवरों के सींगों के खिलौने, लकड़ी की नक्काशी और कालीन जैसे उत्पाद बनाते हैं। यहां अनेक पवित्र स्थल और मंदिरे हैं जो ठुकरानी, जगन्नाथ और नीलकंठेश्वर शिव को समर्पित हैं। यहां एक संग्रहालय है जिसमें मूर्तियों का एक संग्रह है, और साथ ही यहां मानव विज्ञान (ऐन्थ्रोपॉलोजिकल) और प्राकृतिक इतिहास के नमूने भी रक्खे हैं। गोपालपुर-ऑन-सी, एक 'डीप-सी' होटल, जो पर्यटकों के लिए एक ख़ास आकर्षण का केंद्र है, इसके पास के समुद्र में ही है। एक अन्य लोकप्रिय स्थान जौगढ़, काफी उल्लेखनीय है, क्योंकि यह अशोक के पाषाण अध्यादेशों और अन्य पुरातात्विक खंडहरों की भूमि है। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि यह स्थान मौर्य सम्राट अशोक के साम्राज्य का एक हिस्सा था।

बेरहामपुर

पुरी में खरीदारी

पुरी के कई सरकार द्वारा संचालित और निजी स्वामित्व वाले स्टोर, विभिन्न प्रकार के हथकरघा और हस्तशिल्प उत्पाद बेचते हैं। पासापली, बोमकाई, संबलपुरी और इकत साड़ियों को तो जरुर हीं खरीदें। हस्तशिल्प में ताड़ का पत्तो पर उत्कीर्णन, चांदी का काम, चांदी का वर्क, पट्टचित्र, नारियल के रेशों का उत्पाद, धातु के बर्तन, पिपली, समुद्री कौड़ीयों की वस्तुएं, पत्थर की मूर्तियां, लकड़ी की मूर्तियां, कागज की लुगदी के मुखौटे और सोलापीठ (थर्मोकोल) की कलाकृतियां शामिल हैं। ओडिशा राज्य सहकारी हस्तशिल्प निगम द्वारा संचालित, उत्कलिका का ग्रैंड सेंटर बाजार में एक विक्रय केंद्र है, और जिसमें सभी उत्पादों का मूल्य निर्धारित है। नबकालाबारा रोड पर स्थित पट्टचित्र केंद्र, पट्टचित्र कला खरीदने के लिए एक शानदार जगह है।

पुरी में खरीदारी

आनंद बाज़ार

शहर से होकर जाने वाली ग्रैंड रोड के बगल में स्थित आनंद बाज़ार, महाप्रसाद, भगवान को अर्पित किया जाने वाला विशेष प्रसाद के लिए सबसे प्रसिद्ध है। यह प्रसाद (चढ़ावा) एक स्थानीय विशेषता है जिसे भक्तों द्वारा भगवान जगन्नाथ को, उनके मंदिर में चढ़ाया जाता है। आनंद बाजार को एक विशाल प्रांगण के रूप में समझा जा सकता है, जहां आप मंदिर से बाहर निकलते ही जा सकते हैं। यहां मिठाइयों की कई दुकानें हैं। इस बाजार में कई भोजन की दुकानें हैं, जहां भक्तगण कुछ स्थानीय व्यंजन का आनंद ले सकते हैं।

आनंद बाज़ार

स्वेत गंगा

पुरी के पंच मुक्ति तीर्थों में से एक, स्वेत गंगा स्नान करने के लिये एक पवित्र सरोवर है जो गंगा माता मठ के दूसरी तरफ है। भक्तों का मानना है कि देवी गंगा यहां निवास करती हैं ताकि वे नियमित रूप से भगवान जगन्नाथ के दर्शन और उनकी सेवा कर सकें। और इसीलिए, कई लोग मानते हैं कि, यह सदाबहार सरोवर कभी नहीं सूखता है।

स्वेत गंगा

मार्कण्डेय सरोवर

पुरी में पांच पवित्र सरोवर हैं, जिन्हें पंच तीर्थ के रूप में जाना जाता है: इंद्रद्युम्न, मार्कण्डेय, स्वेता गंगा और रोहिणी कुंड। ऐसा माना जाता है कि पुरी की तीर्थयात्रा तब तक अधूरी है जब तक भक्त इन सभी पांच सरोवरों में स्नान नहीं कर लेता। कहा जाता है कि मार्कण्डेय वह स्थान है जहां देवताओं ने, समुद्र से मार्कण्डेय को बचाया था। एक और मिथक यह है कि यह वह स्नान स्थल है, जहां भगवान विष्णु, नीम के पेड़ के रूप में निवास करते हैं।

मार्कण्डेय सरोवर

रथ यात्रा

रथ यात्रा, जिसे रथ महोत्सव के रूप में भी जाना जाता है, भारत में सबसे महत्वपूर्ण हिंदू त्योहारों में से एक है। पुरी में बड़े धूमधाम से आयोजित किया जाने वाला वार्षिक उत्सव, हिंदू कैलेंडर के अनुसार प्रतिवर्ष आषाढ़ माह के दौरान मनाया जाता है, जो जून और जुलाई महीनों के दौरान शुक्ल पक्ष के दूसरे दिन पड़ता है। त्योहार के दौरान पूजे जाने वाले प्रमुख्य देवता, भगवान विष्णु के अवतार, भगवान जगन्नाथ हैं। इस त्योहार में, भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा की मूर्तियों को, तीन अलग-अलग रथों में, एक सप्ताह के लिए उनके ग्रीष्मकालीन मंदिर में ले जाया जाता है। मुख्य रथ 14 मीटर ऊंचा होता है और इसमें 16 पहिए होते हैं। इस यात्रा को पूरा करने के लिए लाखों भक्त रथ को खींचते हैं, जिसे भगवान कृष्ण की गोकुल से मथुरा की यात्रा का प्रतीक माना जाता है। इस प्राचीन रथ यात्रा उत्सव का उल्लेख वाल्मीकि की रामायण में भी मिलता है।

रथ यात्रा

पुरी रेत तट (बीच) उत्सव

पुरी बीच फेस्टिवल हर साल नवंबर में स्वर्गद्वार रेत तट पर आयोजित किया जाता है। यह एक सांस्कृतिक कार्यक्रमों का त्योहार है जो, लोक नृत्य, संगीत, स्थानीय व्यंजनों के साथ हस्तशिल्प, हथकरघा और अन्य स्थानीय कला और शिल्प को भी प्रदर्शित करता है।

पुरी रेत तट (बीच) उत्सव

चंदन यात्रा

भगवान जगन्नाथ की चंदन यात्रा, एक वार्षिक वसंत त्योहार है जो अक्षय तृतीया के दिन से शुरू होती है, और पूरे राज्य के कई मंदिरों में मनाई जाती है। यही वह दिन भी है कि जिस दिन से उस्ताद बढ़ई / सुतार, भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा के रथ को बनाने का काम शुरू करते हैं।

चंदन यात्रा

माघ सप्तमी

माघ सप्तमी हिंदू कैलेंडर के माघ माह की अमावस्या के सातवें दिन मनाया जाता है। इसमें कोणार्क में सूर्य देवता को पूजा जाता है। त्योहार का स्थान सूर्य मंदिर है। यह ओडिशा के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है, जिसका महत्व केवल प्रसिद्ध रथ यात्रा के बाद दूसरा है। इसमें तीर्थयात्रीगण चंद्रभागा रेत तट पर समुद्र में डुबकी लगाने के बाद सूर्य की पूजा करते हैं। माघ सप्तमी के दिन से शुरू होने वाला एक विशाल मेला, सात दिनों के लिए, खंडगिरी गुफाओं के पास में लगता है।

माघ सप्तमी

कछुए के अंडे से बच्चों का निकलना

राज्य की राजधानी भुवनेश्वर से लगभग 130 किलोमीटर दूर गहिरमाथा रेत तट, ओलिव रिडले कछुओं के घोंसला बनाने का एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। यह रेत तट बृहत गहिरमाथा समुद्री वन्यजीव अभयारण्य का एक हिस्सा है। इन कछुओं के समूह को अंडे फोड़ कर निकलने की प्रक्रिया को देखने के लिए अनेक पर्यटक और वन्यजीव संरक्षणकर्ता यहाँ आते हैं। माना जाता है कि यह ओलिव रिडले कछुओं के लिए दुनिया का सबसे बड़ा घोंसला बनाने वाला मैदान है, और इस रेत तट पर हर साल नवंबर महीने में इन प्रजातियों के लाखों कछुओं के जोड़े, प्रजनन करने और घोंसले बनाने के लिये आते हैं। लगभग सात से दस सप्ताह के बाद, ये अंडे देकर समुद्र में वापस चले जाते हैं, और वर्षों के बाद फिर दुबारा अंडे देने के लिए यहां वापस आते हैं।

कछुए के अंडे से बच्चों का निकलना

कोणार्क नृत्य उत्सव

हर साल दिसंबर में आयोजित, कोणार्क नृत्य उत्सव अनेक उस्ताद शास्त्रीय नर्तक- नर्तकियों को साथ लाता है जो कोणार्क में सूर्य मंदिर में अपने नृत्यों का प्रदर्शन करते हैं। यह ओडिसी गुरु, गंगाधर प्रधान की उड़ीसा नृत्य अकादमी द्वारा, पूर्व क्षेत्रीय संस्कृति केंद्र, कोलकाता के सहयोग से, कोणार्क के कोणार्क नाट्य मंडप में आयोजित किया जाता है। प्रदर्शित किये जाने वाले नृत्यों में ओडिसी, भरतनाट्यम, मणिपुरी, कथक और छऊ नृत्य भी शामिल हैं। इस उत्सव में एक शिल्प मेला भी लगता है जिसमें पर्यटकों को, हस्तशिल्प कलाकृतियों को खरीदने और स्थानीय व्यंजनों का स्वाद लेने का मौका मिलता है। शास्त्रीय नृत्य प्रेमियों के लिए यह एक जरूर भाग लेने वाला उत्सव है, क्यों कि भव्य सूर्य मंदिर के परिपेक्ष में नृत्य प्रदर्शन की श्रृंखला का आनंद लेना, एक अतुलनीय नाटकीय सांस्कृतिक अतिरंजिका है।

कोणार्क नृत्य उत्सव

अंतर्राष्ट्रीय रेत कला उत्सव

यह अंतर्राष्ट्रीय रेत कला उत्सव, विश्व प्रसिद्ध कोणार्क महोत्सव के साथ साथ, 1 से 5 दिसंबर तक, प्रतिवर्ष मनाया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय रेत कला उत्सव में स्थानीय और अंतर्राष्ट्रीय रेत कलाकारों द्वारा बनाई गई भव्य कलाकृतियों को प्रदर्शित किया जाता है। कोणार्क से 3 किमीं दूर, चंद्रभागा बीच पर इसे आयोजित किया जाता है। उत्सव के दौरान कई अन्य प्रतियोगिताओं और प्रदर्शनियों का भी आयोजन किया जाता है।

अंतर्राष्ट्रीय रेत कला उत्सव

भारत सर्फ महोत्सव

भारत का सर्वप्रथम वार्षिक सर्फिंग फेस्टिवल, सर्दियों में पुरी में आयोजित किया जाता है। पुरी के रेत तट, समुद्री सर्फिंग के लिए एकदम उपयुक्त है। पुरी रेत तट पर चुनौतीपूर्ण लहरें उत्पन्न होती हैं, जो सर्फिंग के लिए लाजवाब हैं। पुरी की नीरव लहरें 'स्टैंड-अप पेडल सर्फिंग' के योग्य है, जो पेडल-आधारित पर्यटन के अनेक अवसर प्रदान करता हैं। कोणार्क के रामचंडी रेत तट के कुछ सर्फिंग सिखाने के स्कूल, देश के सबसे बेहतरीन सर्फिंग स्कूलों में से हैं।

भारत सर्फ महोत्सव

पुरी वाटर स्पोर्ट

पुरी में कई लोकप्रिय रेत तट हैं जहां सफेद लहरें और बारीक रेत हैं। ये रेत तट से कई वाटर स्पोर्ट एडवेंचर गतिविधियों की पेशकश करते हैं, जैसे 'जेट स्कीइंग' और 'बनाना बोट राइड्स', आदि। जबकि ये सभी गतिविधियां लाइटहाउस और मंगला नदी के बीच के रेत तट पर उपलब्ध हैं, साथ ही पुरी के पंथनिवास और कोणार्क के पास रामचंडी रेत तट के बीच एक 'होवरक्राफ्ट' चलता है।

पुरी वाटर स्पोर्ट