सेवाग्राम

महात्मा गांधी के जीवन के खूबसूरत पलों की यादों को समेटे सेवाग्राम भारत के कुछ खास स्थानों में से एक है। यह सेवा ग्राम जो महात्मा गांधी के जीवन की विस्तार से जानकारी देता है। भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान सेवाग्राम  महात्मा के निवास के रूप में जाना जाता था। आज, यह सेवाग्राम उनके महान जीवन के एक वसीयतनामा के रूप में यहां मौजूद है। यह सेवाग्राम अपनी खूबियों से देश के सभी कोनों से पर्यटकों को आकर्षित करता है। आश्रम कई भागों में अपनी अलग-अलग खूबियों से लैस है। यह सेवाग्राम पर्यटकों को महात्मा गांधी के जीवन की अनेक खूबियों को विस्तार से जानकारी देता है। पर्यटकों को चाहिये कि वे अपना सफर आदि निवास से शुरू करें, जो आश्रम में निर्मित पहली झोपड़ी थी। गांधीजी ने अपने शुरुआती दिनं यहीं बिताये थे। इसके उत्तरी बरामदे में उनकी रसोई थी। विभिन्न धर्मों की सुबह और शाम की प्रार्थना आज भी आज यहां होती है। इसे सर्वधर्म प्रार्थना कहा जाता है। पास में ही महात्मा गांधी की पत्नी कस्तूरबा गांधी का रहने का स्थान है, जिसे बा कुटी के नाम से जाना जाता है। बापू कुटी वह कमरा है, जहाँ गांधी जी रहते थे। यह अभी भी दैनिक उपयोग के अन्य सामानों के साथ उनकी खाट गांधी जी रहने-सोने का चित्रण करता है। इसके बाद गांधीजी का सचिवालय है, जहाँ से गांधीजी पूरी दुनिया के संपर्क में रहते थे। एक टेलीफोन, एक पिंजरा और लकड़ी के कैंची को प्रदर्शन के लिए रखा गया है। अगला पड़ाव बापू की रसोई होना है, जिसमें आटा पीसने की चक्की है, जिसका इस्तेमाल गांधीजी खुद करते थे। पर्यटकों को सेवाग्राम आश्रम में गांधी फोटो प्रदर्शनी देखनी चाहिये। फोटो प्रदर्शनी महात्मा गांधी के जीवन और कार्यों को दिखाती ही नहीं बल्कि शौकीन पर्यटकों यहां ध्यानमग्न हो जाते है। पर्यटक 1982 में भारत सरकार द्वारा निर्मित आश्रम के यति निवास में ठहरने का आनंद ले सकते हैं।

सेवाग्राम

नगरधन किला

शहर की परिधि में स्थित, प्राचीन शहर नगरधन राजसी नगरधन किले के लिए सबसे प्रसिद्ध है। एक जटिल परिसर, यह चैकोर आकार की संरचना एक बुर्ज और आंतरिक दीवार के साथ बाहरी प्राचीर का दावा करती है। किले का मुख्य प्रवेश द्वार इसके उत्तर-पश्चिम की ओर है और अभी भी आक्षुण्ण है। किले की एक उल्लेखनीय विशेषता पौनी प्राचीर है जो वाकाटक राजवंश के राजा प्रवरसेन द्वितीय के एक तांबे की थाली दान को धारण करती है, जो दर्शाता है कि किले के निर्माण में उपयोग की जाने वाली मिट्टी मध्ययुगीन युग से बहुत पहले की है। पर्यटक किले में एक भूमिगत मंदिर का भ्रमण भी कर सकते हैं जिसमें एक माँ दुर्गा की मूर्ति है, जो कि एक कुएं के किनारे पर स्थापित है।किले का निर्माण 18 वीं शताब्दी की शुरुआत में गोंड शासक, बख्त बुलंद ने किया था। बाद में इसे 1740 ई. में रघुजी भोंसले ने नागपुर के पूर्वी हिस्से की रक्षा करने के उद्देश्य के साथ इस पर अधिकार कर लिया।

नगरधन किला

पवनार आश्रम

शहर के बाहरी इलाके में स्थित, पवनार एक शांत और आध्यात्मिक पड़ाव है। पर्यटक एक मध्ययुगीन किले के अवशेषों का अन्वेषण कर सकते हैं जो वाकाटक राजवंश (250 ईस्वी से 500 ईस्वी), जिसने पवनार को अपनी राजधानी बनाया, के कलाकारों की कलात्मक प्रतिभा के प्रमाण के रूप में उपस्थित है । सबसे लोकप्रिय आकर्षण परमधाम आश्रम है जिसकी स्थापना 1934 में भूदान आंदोलन के संस्थापक आचार्य विनोबा भावे ने की थी। आश्रम के निर्माण के दौरान किए गए उत्खनन से 250 ई. से 1200 ई. के बीच विभिन्न कालखंडों से संबंधित कई प्रतिमाएं और मूर्तियाँ सामने आईं, जो आश्रम में प्रदर्शित की जाती हैं। इनमें देवी गंगा की मूर्तियां और महाभारत एवं रामायण जैसे महाकाव्यों के दृश्यों को दर्शाती अन्य मूर्तियां शामिल हैं। इनमें से सबसे चित्तग्राही है अपने भाई भरत के साथ भगवान राम की मुलाकात का चित्रण। पवनार आश्रम के रास्ते में, पर्यटक क्रमशः भगवान विष्णु और भगवान हनुमान को समर्पित दो मंदिरों के दर्शन भी कर सकते हैं। आश्रम ब्रह्म विद्या मंदिर का भी घर है जिसे आचार्य विनोबा भावे, मानव अधिकारों के भारतीय समर्थक, ने स्थापित किया था और अब भारत के सभी हिस्सों की महिलाओं द्वारा संचालित किया जाता है। आश्रम की यात्रा पर्यटकों को आचार्य विनोबा भावे के जीवन और कार्यों से परिचित कराती है।

पवनार आश्रम

अंबागढ़ किला

हरे-भरे वनों से घिरा, ऐतिहासिक अंबागढ़ किला एक प्रमुख पर्यटन स्थल है जो समुद्र तल से 300 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। किले में चढ़ाई करने वालों के लिए आकर्षण है, जो किले के आस-पास के वातावरण का अन्वेषण कर सकते हैं। हालांकि संरचना खंडहर में है, इसके प्रमुख मार्ग अच्छी तरह से संरक्षित हैं और पर्यटक 12वीं शताब्दी के किले की पूर्व भव्यता को देख सकते हैं। किला परिसर के ठीक बाहर एक बड़ा तालाब निकट ही स्थित है, जिसका उपयोग आज भी आस-पास के गाँवों में जल की आपूर्ति के लिए किया जाता है।अंबागढ़ किला कभी नागपुर के तत्कालीन शासक राजा रघुजी भोंसले (1788-1816) के शासनकाल के दौरान दासों के लिए जेल के रूप में कार्य करता था। किंवदंती के अनुसार, जिन कैदियों को किले में भेजा गया था, उन्हें एक आंतरिक कुएं से जहरीला जल पीने के लिए मजबूर किया गया था। इसके पश्चात किले पर अंग्रेजों का कब्जा हो गया, जिन्होंने भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद ही इसे खाली किया। पर्यटक समीप स्थित गैमुख भी जा सकते हैं, जिसमें 9वीं शताब्दी का शिव मंदिर है।

अंबागढ़ किला

मनसार

शहर के बाहरी इलाके में स्थित, मनसार एक प्रकार का पर्यटक पड़ाव है, जो अपनी पुरातात्विक खुदाई के लिए जाना जाता है, जो 5वीं शताब्दी का है। जैसे ही आप पुरातात्विक स्थल में प्रवेश करते हैं, आपका स्वागत एक विशाल टीले द्वारा किया जाता है। टीले के शीर्ष पर पहुंचने पर, आप एक विशाल पिरामिडीय ईंट की संरचना के आसपास खुदाई की गई दीवारों के एक ढांचे (ग्रिड) को देखेंगे। आपको तुरंत नालंदा के खूबसूरत खंडहरों की याद आ जाएगी। आगे चढ़ाई करने पर, आपको हरे भरे वातावरण और रामटेक मंदिर परिसर का शानदार नजारा मिलेगा।  बहुमंजिला ईंट की संरचना 15 मीटर की ऊंचाई पर है और एकांतर आलों के साथ सजे स्तंभ या अधिष्ठाना को धारण करती है। बड़े पैमाने पर संरचना के बगल में एक बलिदान अग्नि-गड्ढे को भी देखा जा सकता है। जैसा कि आप आगे अन्वेषण करते  हैं, आप एक अन्य राजसी संरचना तक पहुँचेंगे जो वाकाटक राजा, प्रवरसेन ।। (400-415 सीई) का निवास स्थान था, और इसे प्रवरपुरा के नाम से जाना जाता है।

मनसार

केंद्रीय संग्रहालय

प्राचीन वस्तुओं, सिक्कों, प्राचीन शिलालेखों, मूर्तियों, शिलालेखों और प्रागैतिहासिक कलाकृतियों का एक अनूठा संग्रह, केंद्रीय संग्रहालय एक महत्वपूर्ण पर्यटक स्थल है। इनमें से कुछ प्रदर्शित वस्तुएं सिंघु घाटी सभ्यता की हैं। संग्रहालय को स्थानीय रूप से ‘अजब बांग्ला’ के रूप में जाना जाता है और यह देश के विभिन्न हिस्सों से आने वाले पर्यटकों के लिए एक छिपा हुआ खजाना है। नागपुर के तत्कालीन मुख्य आयुक्त सर रिचर्ड टेम्पल द्वारा 1862 में स्थापित, संग्रहालय में एक समृद्ध अच्छी तरह से भंडारित पुस्तकालय है और एक कला दीर्घा है जिसमें बॉम्बे स्कूल ऑफ आर्ट की अनूठी चित्रकारियाँ हैं। संग्रहालय का एक दिलचस्प पहलू प्राकृतिक इतिहास की दीर्घा है जिसमें बारहसींगा के सींग, मछली, सरीसृप और अकशेरुकी जीवों के भाग (ट्राफी) हैं। गोडावण और सफेद कौवा के उल्लेखनीय प्रदर्शन विशेष रूप से दिलचस्प हैं।

केंद्रीय संग्रहालय

रमन विज्ञान केंद्र

रमन विज्ञान केंद्र का नाम प्रसिद्ध भारतीय भौतिक विज्ञानी और नोबेल पुरस्कार विजेता, चंद्रशेखर वेंकट रमन के नाम पर रखा गया है। यह मुंबई के विज्ञान केंद्र से संबद्ध एक परस्पर संवादात्मक विज्ञान केंद्र है और इसे विभिन्न उद्योगों और मानव कल्याण में वैज्ञानिक दृष्टिकोण और विज्ञान और प्रौद्योगिकी की अभिवृत्ति एवं विकास को बढ़ावा देने के लिए विकसित किया गया था। विज्ञान केंद्र में आगंतुकों के लिए प्रचुर मात्रा में गतिविधियाँ हैं, जिसमें एक प्रागैतिहासिक पशु उद्यान, सूचना और संचार प्रौद्योगिकी गैलरी, एक विज्ञान प्रदर्शनी आदि शामिल हैं। यह एक ऐसा स्थान है जहाँ बच्चे मजेदार तरीके से सीखने का अनुभव कर सकते हैं, जबकि वयस्क नई चीजों को सीखने के साथ-साथ अपने विज्ञान ज्ञान को ताजा कर सकते हैं। पर्यटक विज्ञान व्याख्यान, विज्ञान फिल्म स्क्रीनिंग और रोचक 3-डी विज्ञान शो में भी भाग ले सकते हैं। केंद्र विभिन्न गतिविधियों का आयोजन करता है जैसे आगंतुकों के लिए ग्रह दर्शन। यह सप्ताह के सभी दिनों में प्रात: 9.30 बजे से सायं 6 बजे तक खुला रहता है और एक दिल्चस्प अनुभव निर्मित करता है।

रमन विज्ञान केंद्र

धम्म चक्र स्तूप

धम्म चक्र स्तूप या दीक्षाभूमि नागपुर में एक लोकप्रिय बौद्ध स्मारक है। यह एक वास्तुशिल्प चमत्कार है जो अपने परिसर के अंदर स्थित एक बड़े बौद्ध स्तूप के लिए जाना जाता है। प्रसिद्ध वास्तुकार, श्यो दान मल द्वारा निर्मित, संपूर्ण संरचना धौलपुर बलुआ पत्थर, संगमरमर और ग्रेनाइट से बनी है, और 120 फीट लंबी है। परिसर के विशाल धनुषाकार द्वार अशोक चक्र और हाथियों, घोड़ों एवं शेरों की मूर्तियों से सजे हैं। स्तूप का विशाल खोखला गुंबद फव्वारों से घिरा हुआ है, जो स्तूप परिसर में सुंदरता और भव्यता को जोड़ता है। इस स्थान पर प्रत्येक वर्ष हजारों बौद्ध तीर्थयात्री भ्रमण करने आते हैं और नागपुर विश्वविद्यालय के रूपांतरण समारोह दिवस या धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस पर यह संख्या बढ़ती है। स्तूप परिसर में एक विहार और एक बोधि वृक्ष भी है जो स्तूप के ठीक सामने स्थित है। यह ध्यान करने के लिए एक रमणीय स्थल है क्योंकि चारों ओर फैली शांति से आप आराम महसूस करते हैं।

धम्म चक्र स्तूप