यह मंदिर गोपाल भट्ट स्वामी द्वारा स्थापित किया गया है, जो वृंदावन के छः गो स्वामियों में से एक थे। वे चेतन्य महाप्रभु के सिद्धांतों के अनुयायी थे। ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर में स्थित देवता शालिग्राम मुस्कुराते हुए, शिलाओं से स्वयं प्रकट हुए थे।
इतिहास बताता है कि गोपाल भट्ट स्वामी काली गंण्डकी नदी के पानी से स्नान किया करते थे और उन्हें वहां 12 शालिग्राम शिलाएं मिली थीं। वे उन्हें वृंदावन ले आए और थोड़ा आराम करने के लिए आगे बढ़ने से पहले उन्होंने उन्हें उन शिलाओं को एक कपड़े से ढक दिया। जब उन्होंने अगले दिन शिलाओं को देखा तो उन्होंने उनमें भगवान कृष्ण को बांसुरी बजाते हुए देखा। उनका कहना था कि इन शिलाओं में से एक शिला भगवान कृष्ण के रूप में बदल गई थी, क्योंकि मूल रूप से रखी गई 12 शिलाओं में से केवल 11 शालिग्राम शिलाएं ही मिलीं।
गोपाल भट्ट की समाधि के पास ही श्री राधारमण की मूर्ति है, जिसका नाम श्रीमती राधा के प्रेमी के रूप में रखा गया है। इस मंदिर में देवता की प्रतिष्ठान वर्ष 1542 (अप्रैल-मई) में पूर्णिमा के दिन की गई थी। दिन में इस देवता को दूध से स्नान करवाया जाता है। देवताओं के लिए प्रसाद गोस्वामी परिवारों के पुरुष सदस्यों द्वारा मंदिर के रसोई घर में तैयार किया जाता है। इस सेवा के लिए प्रतिमाह एक अनुसूची तैयार की जाती है।

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