आप महाबलेश्वर के आसपास स्थित उम्दा जगहों की सैर करना चाहें तो प्रतापगढ़ किले का भ्रमण आपको ज़रूर करना चाहिए। शहर के बाहरी इलाके में समुद्र तल से 1,100 फीट की ऊंचाई पर स्थित इस किले के आसपास की हरी घाटियों और भव्य पर्वत श्रृंखला के शानदार दृश्य पहली नज़र में ही आपका मन मोह लेंगे। यह किला दो भागों में विभाजित है। विस्तृत निचले किले के कोनों पर 10-12 मीटर ऊँची मीनारें और मज़बूत बुर्ज बने हुए हैं। प्रतापगढ़ किला परिसर का यह भाग इस के दक्षिणी और पूर्वी हिस्से में बनाया गया है। वहीं इसका ऊपरी किला प्रत्येक तरफ से 180 मीटर लंबा है, और सभी मुख्य कार्यवाहियाँ वहीं हुआ करती थीं। इसी ऊपरी किले के उत्तर पश्चिम में भगवन शिव को समर्पित एक महादेव मंदिर स्थित है और ठीक इसके सामने छत्रपति शिवाजी महाराज का शाही दरबार आयोजित किया जाता था, क्योंकि शिवाजी को इस स्थान की पवित्रता पर दृढ़ विश्वास ​था कि यहाँ आकर कोई भी झूठ नहीं बोलेगा।

इस किले का निर्माण सन 1656 में छत्रपति शिवाजी की इच्छानुसार और उन्हीं के आदेश पर उनके प्रधानमंत्री मोरोपंत त्र्यंबक पिंगले द्वारा इस उद्देश्य से करवाया गया था कि निकट की जावली घाटी पर अपना आधिपत्य स्थापित रखा जा सके तथा उसके साथ ही नज़दीकी नीरा और कोयना नदियों व पार दर्रे के किनारों की रक्षा भी सुनिश्चित की जा सके। कहा जाता है कि इसी किले में बीजापुर आदिलशाही सेना का सेनापति अफजल खान, छत्रपति शिवाजी से मिलने आया था। अफज़ल खान की नीयत गंदी थी और जैसे ही उसने अभिवादन करते समय शिवाजी को अपने गले से लगाया, उसने उनके सीने में छुरा घोंपने की कोशिश की। 

हालाँकि शिवाजी पूरी तरह से सजग थे और उन्होंने लोहे का कवच पहन रखा था इसलिए वे इस हमले में साफ़ बच गए। पलक झपकते ही शिवाजी महाराज ने बला की तेज़ी से अपनी उंगलियों के नीचे छुपाई हुई बघनखी अर्थात लोहे से बना बाघ के पंजे जैसा हथियार निकाला, और अफ़ज़ल खान पर ज़ोरदार हमला कर दिया। 

इतना होते ही शिवाजी के सेनापति संभाजी कावड़े कोंढलकर ने फुर्ती से आगे बढ़ कर अफज़ल खान का सिर काट कर धड़ से अलग कर दिया। इसके बाद शिवाजी के आदेश पर, प्रतापगढ़ किले में अफ़ज़ल बुर्ज नामक एक दरगाह का निर्माण किया गया था। यहीं इसी किला परिसर में देवी भवानी को समर्पित एक मंदिर भी स्थापित है और कहा जाता है कि इस मंदिर में शिवाजी को देवी ने आशीर्वाद स्वरूप एक नई तलवार प्रदान की थी।

 1957 में तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने यहाँ छत्रपति शिवाजी महाराज की एक 17 मीटर ऊंची कांस्य प्रतिमा का अनावरण किया था। आज प्रतापगढ़ किले का स्वामित्व शिवाजी के वंशज और सतारा की शाही रियासत के वारिस उदय राजे भोंसले के नियंत्रण में है। आज भी इस किले में महान राजा छत्रपति शिवाजी महाराज के बहुत से वंशज रहते हैं। 

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