एक बार ऐसा संयोग बना कि छत्रपति शिवाजी महाराज तुलजापुर जाकर वहाँ भवानी माता के मंदिर में दर्शन प्राप्त नहीं कर पाए। इसलिए उन्होंने सन 1661 में यहाँ स्वयं ही उनका मंदिर बनाने का फैसला किया। इस 20 फीट चौड़ाई और 12 फीट ऊंचाई वाले भवानी मंदिर में 50 फीट लंबे लकड़ी के खंभे लगे हुए हैं। मंदिर के प्रवेश द्वार पर बने नगाड़ा हॉल के परिसर में त्योहारों के दौरान बड़े-बड़े ढोल और ताशों के स्वर गूँजा करते थे।
 
मराठा सैनिकों द्वारा युद्धों में प्रयोग किए जाने वाले तोपखाने और अन्य अस्त्र-शास्त्र इत्यादि भी यहां प्रदर्शन के लिए रखे गए हैं। आठ भुजाओं वाली अर्थात अष्टभुजा स्वरूप साड़ी में लिपटी माँ भवानी की दिव्य प्रतिमा इस मंदिर के भीतर गर्भगृह में शान से विराजमान है। इस मंदिर की सबसे ख़ास बात यह है कि यहाँ प्रतापगढ़ की लड़ाई में अफ़ज़ल खान की सेना के 600 सैनिकों को मौत के घात उतारने वाले छत्रपति शिवाजी महाराज के महावीर मुख्य सेनापति कन्होजी जेडे की अद्भुत तलवार की भी पूरी श्रद्धा और शौर्य के भाव से पूजा-अर्चना की जाती है।

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